पर्यावरण

ऑल वेदर रोड: सरकार ने नहीं कराया पर्यावरण आकलन, भूस्खलन की बनी वजह

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बनी पर्यावरणीय समिति ने ऑल वेदर रोड के निर्माण में कई खामियां पाई हैं, जो पर्यावरण के साथ-साथ स्थानीय लोगों को नुकसान पहुंचा रही हैं

Varsha Singh

उत्तराखंड के चार धाम को जोड़ने वाली ऑल वेदर रोड को लेकर फिर से सवाल उठने लगे हैं। इस बार सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पर्यावरणीय कमेटी ने सरकार की जल्दबाजी पर सवाल खड़े किए हैं। कमेटी इस समय मंदाकिनी और अलकनंदा घाटी का निरीक्षण कर रही है। 16 अक्टूबर से ऑल वेदर रोड के विभिन्न मार्गों के स्थलीय निरीक्षण पर निकली कमेटी 24 अक्टूबर तक इस कार्य को करेगी।

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर अगस्त में ये कमेटी बनायी गई थी। पर्यावरणविद और पीपुल्स साइंस इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ रवि चोपड़ा इस कमेटी के अध्यक्ष हैं। वह बताते हैं कि अभी हमने दो घाटियां देखी हैं। बड़कोट से लेकर जानकी चट्टी तक यमुना घाटी और  चंबा से लेकर गंगोत्री तक भागीरथी घाटी।

डॉ चोपड़ा बताते हैं कि 16 अक्टूबर को उनकी टीम देहरादून से चली तो पाया कि टिहरी में नरेंद्र नगर के पास कुंजापुरी क्षेत्र काफी बड़ा भूस्खलन हो रहा है। जिससे सड़क बाधित है। लोगों को दूसरे रास्ते से आवाजाही करनी पड़ रही है। 20 अक्टूबर तक मिली जानकारी के मुताबिक भूस्खलन जारी था। इसकी जगह जिस वैकल्पिक मार्ग से डॉ रवि चोपड़ा की अगुवाई में टीम आगे के सफर पर निकली, वह सड़क बेहद खस्ता हालत में थी। चोपड़ा कहते हैं कि इस परियोजना के तहत सड़क निर्माण के दौरान जहां भूस्खलन के खतरे नजर आते हैं, उनके लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जानी चाहिए। लेकिन ये सब तब होता, जब हमने ईआईए (इनवायरमेंटल इम्पैक्ट एसेसमेंट) किया होता। भूस्खलन के रूप में इसके नतीजे सामने आ रहे हैं। वह कहते हैं कि इस सड़क के निर्माण से कुछ नए लैंड स्लाइड जोन सक्रिय हो गए हैं।

चोपड़ा के मुताबिक ऑल वेदर रोड को अपनी साख का सवाल बना चुकी सरकार ने इसके जल्द निर्माण के लिए पर्यावरण से जुड़े पहलुओं को नजर अंदाज किया। तकरीबन 900 किलोमीटर लंबी सड़क को ईआईए से बचाने के लिए 53 टुकड़ों में बांटा गया। कानून के मुताबिक कोई भी सड़क यदि 100 किलोमीटर या उससे अधिक लंबी होती है तो उसका ईआईए कराना होता है।

इस परियोजना को पूरा करने का जिम्मा तीन एजेंसियों पर है। सबसे ज्यादा हिस्सा पीडब्ल्यूडी के पास है। उससे कम बीआरओ के पास है और फिर एनएचआईडीसीएल (नेशनल हाईवे डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया)। चोपड़ा कहते हैं कि ये तीनों एजेंसियां इस प्रोजेक्ट को किसी इंजीनियरिंग प्रोजेक्ट की तरह बड़ी तेजी से पूरा करने में जुटी हैं। इसके निर्माण के दौरान जो बड़ी चिंता जतायी जा रही है वो भूस्खलन पर नियंत्रण को लेकर है। मलबे को कहां और कैसे डंप किया जा रहा है, ये भी एक समस्या दिखाई देती है। यमुना घाटी में बड़कोट से जानकी चट्टी तक के स्ट्रेच की मिट्टी काट दी गई, ज्यादातर मिट्टी सड़क पर पड़ी हुई है, ये पता ही नहीं है कि इसे कैसे डंप करना है।

चोपड़ा कहते हैं कि हालांकि बीआरओ ने फिर भी बेहतर तरीके से काम किया है। वे एक सीमित स्ट्रेच लेते हैं। उस पर मिट्टी काटने के बाद डंप किया जाता है। फिर उसकी रीटेनिंग वॉल बनाई जाती है। एक स्ट्रेच का कार्य खत्म होता है फिर वे आगे बढ़ते हैं। मिट्टी काटने का बहुत ज्यादा काम एक ही समय में करना ठीक नहीं है। मलबे को संभालने का काम बहुत सोच समझ कर नहीं किया जा रहा है। डम्पिंग जोन की लोकेशन के साथ भी समस्या है।

चोपड़ा कहते हैं कि ऑल वेदर रोड के तहत सड़क निर्माण कार्य के दौरान कोई डिजास्टर मैनेटमेंट प्लान ही नहीं बनाया गया। पर्यावरणीय हिस्से की बहुत अधिक उपेक्षा की गई। हमने कार्यदायी एजेंसियों से डीटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट यानी डीपीआर मांगी, तो उन्होंने एक किस्म का वर्क प्लान दिखाया। जिसमें सिर्फ ये बताया गया कि कितना काम कब करना है। अगर सड़क निर्माण के पर्यावरणीय हिस्से पर ध्यान दिया गया होता तो डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान भी बनाया गया होता। 

पहाड़ से मिट्टी-मलबे को रोकने के लिए बनाई गई रिटेनिंग वॉल को लेकर भी समिति अभी पड़ताल कर रही है। अलग-अलग हिस्सों में अलग तरह से रिटेनिंग वॉल बनाई गई है। समिति ये जानकारी जुटाएगी कि कौन सी रिटेनिंग वॉल कहां बननी चाहिए। ये पूछने पर कि क्या ये ऑल वेदर रोड है, जिस पर हर मौसम में यात्रा की जा सकेगी। डॉ चोपड़ा कहते हैं कि मेरी समझ से ये कहना कठिन है कि ये ऑल वेदर रोड होगी।

इसके साथ ही ये समिति सड़क निर्माण के दौरान मिट्टी काटने से होने वाले कार्बन की क्षति का आंकलन भी करेगी। जो मिट्टी के नीचे जमा होती है और निर्माण कार्य के दौरान पहाड़ काटने से हवा में मिल जाती है। हवा में ऑक्सीडाइज होने के बाद ये कार्बन डाई ऑक्साइड में तब्दील हो जाती है, जो ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह बनती है। तो ये समझना जरूरी हो जाता है कि ऑल वेदर रोड हिमालयी पर्यावरण पर किस तरह असर डाल रही है।

स्थलीय निरीक्षण के बाद समिति के सदस्य परियोजना से जुड़े अधिकारियों से मिलेंगे। डॉ चोपड़ा के मुताबिक सड़क के कुछ हिस्सों को लेकर इस पर काम कर रहे इंजीनियर के साथ मतभेद हो सकते हैं। वे एक बार फिर उन हिस्सों का निरीक्षण करेंगे। इस सबके बाद समिति ऑल वेदर रोड के निर्माण कार्यों को लेकर जरूरी विश्लेषण करेगी। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक 8 दिसंबर तक समिति को अपनी रिपोर्ट पेश करनी है।