ऊर्जा

क्यों परमाणु दुर्घटनाओं की रिपोर्ट नहीं करता डब्ल्यूएचओ?

अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी और डब्ल्यूएचओ के बीच एक गुप्त समझौता है, जिसके खिलाफ 10 साल तक लड़ाई लड़ी गई, लेकिन समझौता जारी है

Raju Sajwan

रेडियो एक्टिव के संपर्क में आने वाले पीड़ितों के प्रति अपने दायित्व न निभाने पर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के खिलाफ लोगों ने 10 साल तक रोजाना प्रदर्शन किया। हालांकि दो साल पहले यह धरना खत्म हो गया, लेकिन ये लोग अभी भी लोगों को जागरूक कर रहे हैं और लगातार सवाल कर रहे हैं कि आखिर डब्ल्यूएचओ रेडियो एक्टिव से होने वाले दुर्घटनाओं केे मामलों में दखल नहीं देता।

हिरोशिमा दिवस के मौके पर यह सवाल अभी भी बना हुआ है कि आखिर ये लोग क्यों दस साल रोजाना (साप्ताहिक अवकाश को छोड़कर) सुबह आठ बजे और छह बजे जेनेवा स्थित विश्व स्वास्थ्य संगठन के दफ्तर के बाहर प्रदर्शन करते थे। ये लोग स्वतंत्र डब्ल्यूएचओ की मांग करते थे। इन लोगों का आरोप है कि अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी और डब्ल्यूएचओ के बीच एक गुप्त समझौता है, जिस वजह से रेडिएशन की वजह से होने वाली दुर्घटनाओं को डब्ल्यूएचओ रिपोर्ट ही नहीं करता।

इस बारे में डाउन टू अर्थ ने वर्ष 2015 में व्यापक पड़ताल के बाद एक रिपोर्ट प्रकाशित की थी। रिपोर्ट में बताया गया था कि 1959 में आईएईए और डब्ल्यूएचओ के बीच एक समझौता हुआ था, जिसके आर्टिकल 3 में कहा गया था कि जब भी कोई ऐसी घटना होती है, जो एक दूसरे को प्रभावित होती है तो उसकी रिपोर्ट करने से पहले आपस में विचार विमर्श करेंगे। इस समझौते की पालना सबसे पहले चिरनोबिल में की गई।

चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना मानव इतिहास की सबसे बड़ी परमाणु दुर्घटना है, जो 25-26 अप्रैल 1986 की रात यूक्रेन स्थित चेर्नोबिल परमाणु संयंत्र के 4 नंबर रिएक्टर में हुई| यह परमाणु संयंत्र उत्तरी सोवियत यूक्रेन में स्थित प्रिप्यत शहर (जहाँ अब कोई नही रहता) के पास बनाया गया था | यह हादसा देर रात को उस वक्त हुआ, जब इस संयंत्र के रक्षा उपकरणों की जांच की जा रही थी।

उस समय रिएक्टर नंबर 4 के उपकरणों को बंद किया गया। परन्तु निर्माण में हुई कमियों और संचालन गड़बड़ियों के कारण रिएक्टर कोर में होने वाली परमाणु अभिक्रिया अत्यंत तेज हो गयी, जिससे उत्पन्न गर्मी के कारण सारा पानी भाप में बदल गया, दवाब अधिक बढ़ जाने के कारण रिएक्टर में विस्फोट हुआ और ग्रेफाइट में आग लग गई, जो लगातार 9 दिनों तक जलती रही और वातावरण में रेडियोधर्मी पदार्थों को उगलती रही।

माना जाता है कि इस वजह से इतने रेडियो धर्मी पदार्थ फैल गए, जो हिरोशिमा नागासाकी में हुए परमाणु हमले से लगभग 10 गुणा अधिक थे। ये रेडियोधर्मी पदार्थ दक्षिणी सोवियत यूनियन और यूरोपियन देशों के वातावरण में मिल गए, जिससे जान और माल का काफी नुकसान हुआ, जो अब तक बदस्तूर जारी है।

लेकिन डब्ल्यूएचओ ने विश्व के इतिहास की इस घटना को दर्ज ही नहीं किया। ऐसी ही घटना 2011 में जापान के फुकूशीमा में हुई। तब जापानी मीडिया को इस समझौते के बारे में पता चला। यह समझौता अब तक जारी रहा।