ऊर्जा

सौर ऊर्जा लक्ष्य हासिल करने में क्यों पिछड़ रहा है उत्तर प्रदेश?

देश के अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने में उत्तर प्रदेश की भूमिका अहम है

Varsha Singh

सबसे अधिक आबादी और सबसे अधिक बिजली की मांग वाला राज्य होने के बावजूद उत्तर प्रदेश अपने सौर ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने में पीछे क्यों है? 75 जिलों वाले बडे राज्य में ज्यादातर बड़ी सौर परियोजनाएं बुंदेलखंड समेत कुछ ही जिलों तक सीमित क्यों हैं। जबकि देश में नेट जीरो यानी शून्य कार्बन उत्सर्जन और अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने में उत्तर प्रदेश की भूमिका अहम है। 

नीति आयोग के साथ मिलकर काम कर रहे वसुधा फाउंडेशन की रिपोर्ट के मुताबिक जुलाई-2023 में देश में सबसे ज्यादा बिजली की मांग उत्तर प्रदेश (15.3 बिलियन यूनिट बिजली) और महाराष्ट्र में (15.3 बि.यू.) रही। लेकिन स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन में उत्तर प्रदेश नवें स्थान पर है।  

लक्ष्य बड़ा, रफ्तार धीमी

उत्तर प्रदेश में मार्च-2022 तक कुल स्थापित ऊर्जा क्षमता 30,769 मेगावाट है। राज्य सरकार ने वर्ष 2026-27 तक 22,000 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पादन का लक्ष्य तय किया है। जबकि 31 दिसंबर 2022 तक राज्य में सौर ऊर्जा उत्पादन 2,485.16 मेगावाट है। यानी हर रोज यदि लगभग 14 मेगावाट के सौर ऊर्जा प्लांट स्थापित किए जाएं, तब कहीं, तय समय में यह लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। क्या राज्य इस रफ्तार से आगे बढ़ रहा है?

यूपीनेडा की वेबसाइट पर ग्रिड से जुड़ी सौर परियोजनाओं का मैप। हालांकि ये मैप अपडेट नहीं है। 

कुछ ही जिलों में बड़ी सौर परियोजनाएं

सौर शहर, सोलर पार्क, ऑन ग्रिड और ऑफ ग्रिड परियोजनाएं, ग्रीन कॉरिडोर जैसी महत्वाकांक्षी परियोजनाएं उत्तर प्रदेश के पास हैं। लेकिन सौर ऊर्जा का बड़ा फायदा है कि इसे घर-घर, गांव-गांव में इसे पैदा किया जा सकता है। 

राज्य के नक्शे पर ग्रिड से जुड़ी सौर ऊर्जा परियोजनाएं कुछ ही जिलों तक सीमित हैं। उत्तर प्रदेश नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (यूपीनेडा) की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक 75 जिलों वाले बड़े राज्य में बड़ी सौर परियोजनाएं 18 जिलों में चल रही हैं। यानी 57 जिलों में उत्पादन नहीं या बेहद कम है। इनमें ज्यादातर परियोजनाएं बुंदेलखंड के सूखाग्रस्त इलाकों में है जहां ज़मीन खेती के लिहाज से उन्नत नहीं है। यूपीनेडा की वेबसाइट के मुताबिक राज्य में 949 मेगावाट की ग्रिड से जुडी सौर परियोजनाएं स्थापित हैं। इनमें 553 मेगावाट की परियोजनाएं बुंदेलखंड के 7 जिलों में हैं। 

ये आंकड़े यूपीनेडा की वेबसाइट से लिए गए हैं और अपडेट नहीं हैं। लेकिन ये राज्य में सौर ऊर्जा की तस्वीर को स्पष्ट करते हैं।

घर-घर कैसे पहुंचेगी सौर ऊर्जा

सौर ऊर्जा को घर-घर पहुंचाने, आम लोगों और किसानों को सोलर उद्यमी बनाने और रोजगार देने और जीवन स्तर बेहतर करने के लिहाज से रूफ टॉप सोलर (आरटीएस), प्रधानमंत्री किसान ऊर्जा सुरक्षा एवं उत्थान महाभियान  (पीएम-कुसुम योजना), दो महत्वपूर्ण योजनाएं हैं। 

नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) की वर्ष 2022-23 की सालाना रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022 में आरटीएस योजना का दूसरा चरण शुरू किया। इसके तहत 36 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को दिए गए 3408.13 मेगावाट में से उत्तर प्रदेश को 121.20 मेगावाट का लक्ष्य दिया गया है। योजना के दूसरे चरण में दिए गए इस लक्ष्य की तुलना में 31 दिसंबर 2022 तक उत्तर प्रदेश के रिहायशी क्षेत्र में 23.70 मेगावाट के सोलर प्लांट ही स्थापित हुए। 

पहले-दूसरे चरण को मिलाकर रिहायशी, कमर्शियल समेत सभी सेक्टर में आरटीएस के तहत 31 दिसंबर 2012 तक 163.34 मेगावाट क्षमता के प्लांट लगे। 

छोटे शहरों और गांवों में आरटीएस को लेकर उत्साह नहीं दिखता। पश्चिम यूपी के बिजनौर जिले में यूपीनेडा के परियोजना अधिकारी सीपी वर्मा कहते हैं “छोटे जिलों में बिजली कटौती ज्यादा है। जब बिजली होगी तभी सोलर प्लांट से बनी बिजली ग्रिड को जाएगी। बिजनौर में इसकी मांग ज्यादा नहीं है। इलाहाबाद, वाराणसी, लखनऊ जैसे बडे शहरों में लोग आरटीएस में दिलचस्पी ले रहे हैं”।

आरटीएस के लिए एकमुश्त पैसे देना भी निम्न मध्यवर्गीय परिवारों के लिए आसान नहीं है। यूपीनेडा के निदेशक अनुपम शुक्ला कहते हैं “इसमें सब्सिडी बाद में आती है और पैसे पहले देने होते हैं। इसलिए आरटीएस में हम बडे शहरों, नगर निगमों और उच्च मध्यवर्ग पर काम कर रहे हैं। साथ ही अयोध्या सोलर सिटी परियोजना में हम स्मॉल इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बैंक ऑफ इंडिया के साथ समझौता कर रहे हैं कि वे आरटीएस लगाने की खातिर उपभोक्ताओं के लिए फंड की व्यवस्था करें”।

खेतों में नहीं खिला सौर कुसुम

केंद्र सरकार की महत्वकांक्षी पीएम कुसुम योजना में भी उत्तर प्रदेश का अब तक का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। एमएनआरई रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2022-23 तक पीएम कुसुम योजना-ए  (ग्रिड से जुडे सोलर प्लांट) में उत्तर प्रदेश में 225 मेगावाट के प्लांट स्वीकृत थे। लेकिन एक भी प्लांट अस्तित्व में नहीं आया। कुसुम-बी में 36,842 स्वीकृत सौर पंपों की तुलना में से 12,773 पंप ही लगे। कुसुम-सी में 4 लाख पंप की तुलना में शून्य पंप लगे। 

कुसुम के इन नतीजों को देखते हुए, इनमें संशोधन कर कुसुम-सी2 लाया गया है। यूपीनेडा के निदेशक अनुपम शुक्ला बताते हैं कि सब्सिडी न मिलने की वजह से किसानों ने कुसुम-ए में रुचि नहीं ली। कुसुम-सी2 में प्रति मेगावाट भारत सरकार 1 करोड़ और राज्य सरकार 50 लाख रुपए सब्सिडी दे रही है। जुलाई-2023 में हमने इसका टेंडर निकाला है। योजना के पहले चरण में 2000 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य है। 

सहारनपुर के दो पावर सबस्टेशन के लिए भी कुसुम-सी2 में सौर प्रोजेक्ट स्वीकृत हुए हैं। जिले में यूपीनेडा के परियोजना अधिकारी आरबी वर्मा बताते हैं कि सोलर प्लांट के लिए जमीन का बंदोबस्त करना मुश्किल साबित हो रहा है। यहां उपजाऊ जमीन की कीमत ज्यादा है। जबकि बिजली की दर (3.10 रुपए/यूनिट) किसानों को कम लगती है। किसान को अगर 4-4.50 रुपए/यूनिट मिले तो शायद उन्हें ये मुनाफे का सौदा लगे। 

व्यवहारिक लक्ष्य बनाएं

सौर ऊर्जा के लक्ष्यों को व्यवहारिक बनाने और यूपीनेडा और यूपीपीसीएल के कर्मचारियों को तकनीकी प्रशिक्षण देने की जरूरत भी महसूस होती है। उत्तर प्रदेश रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष नीरज वाजपेयी कहते हैं कि “वित्त वर्ष 2022-23 में एक लाख घरेलू उपभोक्ताओं को रूफ टॉप सोलर से जोड़ने का लक्ष्य था। लेकिन डेढ़ साल में मात्र 4000 लोगों ने आरटीएस लगाया। 500 किलोवाट से 2 मेगावाट तक के सोलर प्लांट जुड़ी कुसुम योजना का टेंडर ही सरकार पिछले दो साल से नहीं करवा पाई। टेंडर में लगातार तकनीकी खामियां रहीं। इसलिए यूपीनेडा को जमीनी स्तर पर आ रही तकनीकी-व्यवहारिक दिक्कतों को दूर करने की आवश्यकता है”।

उत्तर प्रदेश में क्षेत्र के लिहाज से सौर ऊर्जा एक्शन प्लान की जरूरत

क्षेत्र आधारित हो एक्शन प्लान

उत्तर प्रदेश एक बड़ा और विविधता वाला राज्य है। उपजाऊ कृषि भूमि वाले पश्चिम या पूर्वी यूपी की तुलना में सूखाग्रस्त होने के नाते बुंदेलखंड में जमीनें सस्ती हैं। इसलिए ज्यादातर बडी सौर परियोजनाएं बुंदेलखंड में हैं। 

गैरसरकारी संस्था ग्रामीण विकास ट्रस्ट में एग्रीवॉलटेक्स (खेतों के ऊपर सौर प्लांट) शाखा के अध्यक्ष विकाश शर्मा कहते हैं “एक सौर नीति से आप बुंदेलखंड और सहारनपुर को एक समान नहीं रख सकते। जमीन की कम कीमत के चलते बुंदेलखंड में निवेश करने वाले 2- 2.50 रुपए/यूनिट तक बोली लगाते हैं। जबकि अन्य जिलों के लिए ये दरें व्यवहारिक नहीं होतीं। इसीलिए किसान या उद्यमी को इन जिलों में सोलर प्लांट में निवेश करने में फायदा नहीं दिखता”। 

दिल्ली स्थित गैर-सरकारी संस्था काउंसिल ऑफ एनर्जी एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईई डब्ल्यू) राज्य को रिन्यूएबल एनर्जी ट्रांजिशन में मदद कर रही है।

क्या यूपी का हर एक जिला सौर ऊर्जा उत्पादन में योगदान दे सकता है?   संस्था की सीनियर प्रोग्राम एसोसिएट दिशा अग्रवाल कहती हैं “राज्य में सोलर डेवलपर, डिस्कॉम और यूपीनेडा को मिलकर क्षेत्र विशेष के लिहाज से बिजनेस मॉडल बनाना होगा। जो बिजनेस मॉडल जिस क्षेत्र के लिए सही है, उसी आधार पर वहां का लक्ष्य निर्धारित किया जा सकता है। एक-दो साल तक प्रयोग के तौर पर कुछ पायलट प्रोग्राम चलाए जा सकते हैं”। 

दिशा कहती हैं कि बडी सौर परियोजनाओं के लिए बुंदेलखंड के अलावा अन्य जिलों में जमीन की उपलब्धता बडी चुनौती है। इसलिए रूफ टॉप सोलर से लेकर 1-2 मेगावाट तक के प्लांट लोगों की सामर्थ्य के भीतर लाने की जरूरत है। तभी लोग इन्हें ज्यादा से ज्यादा अपनाएंगे”। 

सौर ऊर्जा नीति-2022 के जरिये उत्तर प्रदेश सरकार ने जो लक्ष्य तय किए हैं, अब जमीनी मुश्किलों को दूर कर और तकनीकी पेंच को सरल बनाकर लागू करने के लिए काम करना होगा।

(This story was produced with support from Internews’s Earth Journalism Network)