प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 जुलाई 2020 को मध्यप्रदेश के रीवा में 750 मेगावाट क्षमता के सोलर पावर प्लांट का उद्घाटन किया। दावा किया गया कि यह प्लांट एशिया में सबसे बड़ा है, लेकिन उसके कुछ देर बाद ही कर्नाटक सरकार की ओर से जवाब दिया कि उनके राज्य में 2000 मेगावाट क्षमता का सोलर पावर प्लांट है। इसे लेकर बहस का सिलसिला भी शुरू हो गया, लेकिन इस बात पर बहस आम नहीं हो रही है कि क्या देश को मेगा सोलर प्लांट की जरूरत है या सरकार को छतों पर लगने वाले सोलर प्लांट की ओर फोकस बढ़ाना चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार रूफटॉप सोलर प्लांट्स की ओर ध्यान नहीं दे रही है।
2014 में जब नरेंद्र मोदी सरकार बनी थी तो उसके कुछ समय बाद ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में अक्षय ऊर्जा का उत्पादन बढ़ाने के प्रति जबरदस्त रुझान दिखाया था और घोषणा की थी कि 2022 तक देश में अक्षय ऊर्जा से 1.70 लाख मेगावाट बिजली पैदा की जाएगी। इसमें सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी 1 लाख मेगावाट रखी गई। इसमें से 40 हजार मेगावाट रूफटॉप का लक्ष्य रखा गया।
लेकिन रूफटॉप सोलर पावर के लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा है। हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट ने रूफटॉप सोलर प्लांट की एक फेक्टशीट तैयार की। इसमें बताया गया है कि केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (एमएनआरई) के मुताबिक, देश में देश में मार्च 2020 तक रूफटॉप सोलर की उत्पादन क्षमता 2600 मेगावाट है, लेकिन मंत्रालय के इस आंकड़े में लोगों द्वारा व्यक्तिगत रूप से लगाए गए रूफटॉप सोलर पैनल के बारे में जानकारी नहीं है। सीएसई ने कहा कि ऐसे में सही से यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि अभी छतों के ऊपर लगे सोलर पैनल से कुल कितनी बिजली मिल रही है।
हालांकि सीएसई की इस फैक्टशीट में एक प्राइवेट रिन्यूएबल एनर्जी कंसलटेंसी एजेंसी ब्रिज टू इंडिया के हवाले से बताया गया है कि दिसंबर 2019 में भारत में लगभग 5400 मेगावाट बिजली छतों पर लगे सोलर प्लांट से हासिल हो रही है। एजेंसी का दावा है कि 2019 में भारत में कुल उत्पादन क्षमता में लगभग 1800 मेगावाट रूफटॉप सोलर एनर्जी जोड़ी गई। जबकि एजेंसी का अनुमान है कि 2020 में लगभग 1400 मेगावाट रूफटॉप सोलर एनर्जी और जुड़ जाएगी।
इससे अनुमान लगाया जा सकता है कि 2022 तक देश में रूफटॉप सोलर एनर्जी से 40 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन कैसे संभव है। रूफटॉप सोलर प्लांट को लेकर एमएनआरई की चुनौतियां गिनाता है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार की प्राथमिकता रूफटॉप सोलर एनर्जी नहीं है, बल्कि सरकार का ध्यान बड़े-बड़े सोलर प्रोजेक्ट्स की ओर है। इन प्रोजेक्ट्स से कॉरपोरेट जुड़े हुए हैं।
भारत सरकार में ऊर्जा सचिव रह चुके ईएएस सरमा ने डाउन टू अर्थ से कहा कि देश में अल्ट्रा मेगा सोलर प्लांट लगाकर सरकार पूंजीपतियों को खुश करना चाहती है, जबकि इससे जमीन की बर्बादी हो रही है। ये प्लांट खेती योग्य जमीन या वन भूमि पर लगाए जा रहे हैं। जबकि सरकारी गैर-सरकारी संस्थानों और भवनों की छतों पर सोलर प्लांट लगाने की दिशा में काम नहीं हो रहा है।
पावर पॉलिसी एनालिस्ट शंकर शर्मा भी कहते हैं कि बड़े सोलर प्लांट लगाकर हम जमीन को नुकसान पहुंचा रहे हैं। कर्नाटक में 2000 मेगावाट क्षमता का सोलर प्लांट लगाया गया है। यह प्लांट लगभग 13 हजार एकड़ जमीन पर यह प्लांट लगा है। सरकार इसके बजाय रूफटॉप सोलर प्लांट पर ध्यान दे तो इतनी जमीन का इस्तेमाल दूसर कार्यों के लिए किया जा सकता है।