सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट द्वारा मुजफ्फरनगर में कंप्रेसड बायोगैस पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। 
ऊर्जा

उत्तर प्रदेश में है बायोगैस उत्पादन की क्षमता सबसे अधिक, लेकिन चुनौतियां कम नहीं

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट ने उत्तर प्रदेश में कंप्रेसड बायो गैस उत्पादन की क्षमता और चुनौतियों का विश्लेषण किया है

Raju Sajwan

उत्तर प्रदेश में कंप्रेसड (संपीड़ित) बायोगैस यानी सीबीजी उत्पन्न करने की क्षमता देश में सबसे अधिक है, इसलिए उत्तर प्रदेश को इसके उपयोग की दिशा में तेजी से काम करना चाहिए। देश की प्रमुख थिंक टैंक संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने अपनी एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अकेला उत्तरप्रदेश में देश की कुल क्षमता का 24 प्रतिशत सीबीजी का उत्पादन हो सकता है। वो भी खासकर पश्चिमी जिले मुजफ्फरनगर, मेरठ, सहारनपुर, बिजनौर, बुलंदशहर और अलीगढ़ में यह क्षमता सबसे अधिक है। 

सीएसई ने अपनी यह रिपोर्ट मुजफ्फरनगर में आयोजित एक संगोष्ठी में जारी की। संगोष्ठी का आयोजन सीएसई और उत्तर प्रदेश नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विकास एजेंसी (यूपीएनईडीए) द्वारा संयुक्त रूप से किया गया। 

उल्लेखनीय है कि सीबीजी विभिन्न तरह के कचरों या व्यर्थ चीजों जैसे कबाड़ आदि से बनाई जाती है, जिसमें नगरपालिका का ठोस अपशिष्ट, कृषि अपशिष्ट, प्रेस-मड और पशु अपशिष्ट शामिल हैं। यह बायोगैस का शुद्ध संस्करण है, और इसे बायो-सीएनजी भी कहा जाता है। सीबीजी का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा मीथेन गैस होती है और यह जैविक अपशिष्ट या बायोमास से अवायवीय पाचन के माध्यम से बनती है।

संगोष्ठी में सीएसई के औद्योगिक प्रदूषण कार्यक्रम निदेशक निवित कुमार यादव ने कहा: “भारतीय राज्यों में, उत्तर प्रदेश ने अपनी महत्वाकांक्षी जैव ऊर्जा नीति के साथ इस क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाई है। सीबीजी के लिए 750 करोड़ रुपये (2022-27) आवंटित किए जाने के अलावा सब्सिडी, पट्टे के लिए भूमि और अन्य प्रोत्साहन भी प्रदान किए गए हैं।

इस संगोष्ठी के आयोजन का मुख्य उद्देश्य सीबीजी उत्पादकों के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करने, सफल प्रथाओं को साझा करने, स्टार्ट-अप के अवसरों को प्रचारित करने, जिला स्तरीय जैव ऊर्जा समितियों के बीच जागरूकता बढ़ाने और किसान-उत्पादक समितियों को जैव ऊर्जा की क्षमता के बारे में शिक्षित करना है।” 

इस क्षेत्र में राज्य सरकार की प्रगति पर यादव की बातों को दोहराते हुए, यूपीनेडा के सचिव एवं मुख्य परियोजना अधिकारी पंकज सिंह  ने कहा: “उत्तर प्रदेश में भारत में सबसे उन्नत जैव ऊर्जा नीति है और आगामी सीबीजी परियोजनाओं की संख्या में यह सबसे आगे है। यहां 128 सीबीजी परियोजनाओं में से 15 चालू हैं, जबकि शेष 113 निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं।”

इस क्षेत्र में आनेवाली चुनौतियां  :

उप-उत्पादों/बायोस्लरी/ जैविक खाद (एफओएम) का सीमित उठान: 

सीबीजी प्लांट बायोस्लरी उत्पन्न करते हैं, जिसका उपयोग उर्वरक के रूप में किया जा सकता है। हालांकि, सीबीजी प्लांट द्वारा उत्पादित बायोस्लरी के लिए कोई खरीदार नहीं हैं। सी एस ई  के अक्षय ऊर्जा के उप कार्यक्रम प्रबंधक और सीबीजी पर सीएसई की रिपोर्ट के लेखक डॉ राहुल जैन कहते हैं: “ राजस्व का संभावित स्रोत माने जाने के बजाय, बायोस्लरी को अपशिष्ट के रूप में देखा जाता है। प्लांट मालिक या तो इसे आस-पास के किसानों को मुफ्त में उपलब्ध करा रहे हैं या खाली जमीन पर इसका निपटान कर रहे हैं। बायोस्लरी की विशेषताओं, उपयुक्त अनुप्रयोग विधियों और संभावित लाभों के बारे में जागरूकता की कमी है।” 

  • तेल और गैस विपणन कंपनियों द्वारा आंशिक गैस उठाव: ये कंपनियाँ बाज़ार की मांग के आधार पर सीबीजी संयंत्रों से ‘सर्वोत्तम प्रयास’ के आधार पर गैस प्राप्त करती हैं। इससे संयंत्र मालिक अपने पूरे गैस उत्पादन को नहीं बेच पाते हैं। कुछ संयंत्र अपनी क्षमता से कम पर केवल इसलिए काम कर रहे हैं क्योंकि वे अपनी पूरी गैस नहीं बेच पाते।

संयंत्रों  के पास सीएनजी गैस पाइपलाइनों का न होना इस दिशा में  एक और चुनौती है। यह देखा गया है कि 5 टन प्रति दिन (टीपीडी) से कम क्षमता वाले प्लांट के लिए कैस्केड के माध्यम से गैस परिवहन एक व्यवहार्य विकल्प है; इस सीमा से ऊपर की किसी भी चीज़ के लिए, सबसे प्रभावी ऑफटेक मॉडल गैस पाइपलाइनों के माध्यम से है। 

  • कुशल तकनीकी मानव बल की कमी: इन संयंत्रों को अक्सर परिचालन संबंधी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जिसके परिणामस्वरूप गैस रिसाव, अकुशलता और क्षमता से कम उत्पादन जैसी समस्याएँ होती हैं। इस समस्या का कारण बायोगैस उत्पादन प्रणालियों और संयंत्र संचालन की पर्याप्त समझ रखने वाले कामगारों की अनुपस्थिति है। 

वित्तपोषण संबंधी मुद्दे: बैंक शायद ही कभी सीबीजी परियोजनाओं के वित्तपोषण में कोई रुचि दिखाते हैं - उनकी चिंताएं जोखिम, कम मार्जिन और उद्योग की गैर-मानकीकृत प्रकृति के इर्द-गिर्द घूमती हैं। बैंकों को आम तौर पर उच्च संपार्श्विक की आवश्यकता होती है, और ब्याज दरें न्यूनतम 11.5 प्रतिशत से शुरू होती हैं। इसके अलावा, ऋण देने वाले संस्थानों में सीबीजी प्रस्तावों का मूल्यांकन करने की क्षमता नहीं है, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया में बाधा आती है।

जैन ने बताया कि अपस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम दोनों तरफ उचित योजना के अभाव के कारण, ज़्यादातर सीबीजी संयंत्र अपनी वास्तविक डिजाइन की गई क्षमता से कम पर चल रहे हैं। अपस्ट्रीम दिशा में, संयंत्र को चलाने के लिए पर्याप्त मात्रा में फीडस्टॉक नहीं मिल पा रहा है। संयंत्र में सालाना ज़रूरत से ज़्यादा फीडस्टॉक की उपलब्धता के लिए योजना बनाये जाने की आवश्यकता है। इसके लिए संयंत्र संचालकों को फीडस्टॉक प्राप्त करने के लिए आपूर्तिकर्ताओं (किसानों, गन्ना मिल मालिकों और शहर की नगर पालिकाओं) के साथ मिलकर काम करना होगा। डाउनस्ट्रीम दिशा में, सीबीजी संयंत्र के पास सीएनजी इंफ्रास्ट्रक्चर की गैर मौजूदगी के कारण गैस की बिक्री एक बड़ी चुनौती है। संयंत्रों को या तो सीएनजी गैस ग्रिड के पास या फिर जहां औद्योगिक या परिवहन अनुप्रयोगों के लिए सीएनजी की उच्च मांग है, वहां स्थापित करना महत्वपूर्ण है।”

सीएसई के सुझाव  

  • किसानों को शेयरधारकों के रूप में शामिल करें: जागरूकता अभियानों के माध्यम से किसान-उत्पादक संगठनों को तीसरे पक्ष की निजी संस्थाओं की जगह फीडस्टॉक एग्रीगेटर की भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित करें। इससे परियोजना में साझेदारों के रूप में उनकी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित होगी , जिससे जैव ऊर्जा परियोजनाओं में समग्र लाभ साझाकरण को बढ़ावा मिलता है।

  • गैस विपणन कंपनियों द्वारा पूर्ण गैस उठाव सुनिश्चित करें: इसे सुनिश्चित करने के लिए, सीबीजी संयंत्रों के पास गैस पाइपलाइन बुनियादी ढांचे का विस्तार करने के लिए एक रणनीतिक योजना तैयार करने की आवश्यकता है। ग्रामीण क्षेत्रों में मांग को बढ़ावा देने के लिए, ट्रैक्टरों और दोपहिया वाहनों को सीएनजी पर चलाने के लिए प्रोत्साहन देना या सीएनजी से चलने वाली कृषि मशीनरी को अपनाने की दिशा में जागरूकता बढ़ानी चाहिए।

किसानों को बायोस्लरी/एफओएम का उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित/संवेदनशील बनाएं: किसानों को कार्बन-समृद्ध एफओएम के उपयोग के संभावित लाभों के बारे में जागरूक किया जाना चाहिए। एफओएम के उपयोग हेतु किसानों के लिए प्रोत्साहन कार्यक्रमों को संस्थागत बनाने की संभावना का पता लगाया जा सकता है। एफओएम के सकारात्मक प्रभावों के बारे में किसानों के बीच जागरूकता बढ़ाने के लिए, कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके) शिक्षा और आउटरीच प्रयासों में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।

  • बैंक ऋण प्राप्ति में चुनौतियों का समाधान करें: यादव बताते हैं: " अगर यहां  व्यावहारिक दृष्टिकोण से देखें  तो संपार्श्विक आवश्यकताओं को कम करने के लिए सरकार समर्थित गारंटी कार्यक्रम शुरू करना होगा, जिससे वित्तीय संस्थानों को अधिक आसानी से ऋण देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।" ऋण आवेदन प्रक्रिया में पारदर्शिता और दक्षता बढ़ाने के लिए, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) को एक केंद्रीकृत ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से सीबीजी परियोजना आवेदनों की देखरेख और निगरानी करनी चाहिए और सुव्यवस्थित प्रगति ट्रैकिंग के लिए निश्चित समय सीमा को लागू करना चाहिए।

  • सीबीजी प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करें: सीबीजी परियोजनाओं को संचालित करने के लिए लोगों को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है। कुशल कर्मियों को तैयार करने के लिए प्रशिक्षण केंद्रों को अल्पकालिक सीबीजी पाठ्यक्रमों के साथ स्थापित किया जाएगा।

  • फीडस्टॉक की विविधता को व्यापक बनाएं: जैन कहते हैं कि "क्योंकि 80 प्रतिशत सीबीजी संयंत्र वर्तमान में प्रेसमड पर निर्भर हैं,अतः स्रोतों में विविधता लाने की आवश्यकता है।" ठोस जैविक कचरे के अलावा, डिस्टिलरी से निकलने वाले अपशिष्ट, कागज और लुगदी निर्माण से औद्योगिक निर्वहन, और अन्य तरल औद्योगिक कचरे जैसे तरल अपशिष्टों का उपयोग करने की दिशा में प्रयास किए जाने चाहिए।

 सीएसई के इनपुट की सराहना करते हुए, यूपीनेडा के सचिव एवं मुख्य परियोजना अधिकारी पंकज सिंह ने कहा: "सभी  चुनौतियों और नीति सिफारिशों को नोट किया गया है और हमारे विभाग द्वारा प्रभावी नीति संशोधनों और परिवर्धन के माध्यम से उनका समाधान किया जाएगा।