ऊर्जा

वैश्विक बिजली उत्पादन में घट रही जीवाश्म की हिस्सेदारी, लेकिन साथ ही बढ़ रहा उत्पादन

2000 में कोयले की मदद से 5,809 टेरावाट-घंटे के बराबर बिजली उत्पादन किया गया, जो 2023 में 80 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 10,434 टेरावाट-घंटे पर पहुंच गया

Lalit Maurya

दुनिया में बिजली उत्पादन के क्षेत्र में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी लगातार बढ़ रही है। 2023 में यह हिस्सेदारी पहली बार रिकॉर्ड 30 फीसदी से ज्यादा हो गई। वहीं दूसरी तरफ ऊर्जा उत्पादन में जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी कम हुई है, जोकि पर्यावरण और जलवायु के लिहाज से बेहद अच्छी खबर है।

हालांकि यह नहीं भूलना चाहिए कि भले ही वैश्विक स्तर पर बिजली उत्पादन में जीवाश्म ईंधन की हिस्सेदारी घटी है, लेकिन साथ ही इसकी मदद से पहले से कहीं ज्यादा बिजली पैदा की जा रही है, जोकि चिंता का विषय है। इसकी पुष्टि एनर्जी क्षेत्र में काम कर रहे थिंकटैंक एम्बर ने अपनी नई ‘रिपोर्ट ग्लोबल इलेक्ट्रिसिटी रिव्यु 2024’ में भी की है।

इस रिपोर्ट में जो आंकड़े साझा किए गए हैं उनके मुताबिक वैश्विक बिजली उप्तादन में जीवाश्म की हिस्सेदारी 2007 में 68 फीसदी पर पहुंच गई। जो 2023 में घटकर 61 फीसदी रह गई है। इसका सबसे बड़ा कारण यह बताया गया है कि बिजली की बढ़ती मांग की तुलना में जीवाश्म ईंधन की दर धीमी पड़ गई है। देखा जाए तो यह गिरावट जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने के लिए बेहद मायने रखती है।

लेकिन दूसरी तरफ आंकड़े एक और गंभीर तस्वीर प्रस्तुत करते हैं, वो यह है कि दुनिया में जीवाश्म ईंधन की मदद से पैदा हो रही कुल बिजली की मात्रा अभी भी बढ़ रही है। गौरतलब है कि 2023 में कोयले और गैस की मदद से किया जा रहा बिजली उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया।

आंकड़े भी गवाह है कि जहां साल 2000 में कोयले की मदद से 5,809 टेरावाट-घंटे के बराबर बिजली उत्पादन किया गया, जो 2023 में करीब 80 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 10,434 टेरावाट-घंटे पर पहुंच गया।

इसी तरह गैस की मदद से हो रहा बिजली उत्पादन भी इस दौरान बढ़कर दोगुना हो गया। बता दें कि जहां साल 2000 में गैस की मदद से 2,745 टेरावाट-घंटे के बराबर बिजली पैदा की गई, वहीं 2023 में 142 फीसदी की वृद्धि के साथ यह आंकड़ा 6,634 टेरावाट-घंटे पर पहुंच गया। हालांकि, इस दौरान तेल जैसे अन्य जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम हुआ।

नतीजन इनकी मदद से किया जा रहा बिजली उत्पादन साल 2000 में 1,324 टेरावाट-घंटे से घटकर 2023 में 786 टेरावाट-घंटे रह गया।

2023 में दो फीसदी से ज्यादा बढ़ी बिजली की मांग

एम्बर ने अपनी इस नई रिपोर्ट में 215 देशों के बिजली संबंधी आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इसमें 80 देशों के 2023 के लिए जारी नवीनतम आंकड़े भी शामिल हैं। यह 80 देश दुनिया भर में पैदा हो रही बिजली की मांग के 92 फीसदी हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 2023 में वैश्विक स्तर पर बिजली की मांग में 2.2 फीसदी का इजाफा हुआ, जो 627.26 टेरावाट-घंटे की वृद्धि को दर्शाता है। देखा जाए तो यह करीब-करीब कनाडा की बिजली की कुल मांग के बराबर है। हालांकि इसके बावजूद बिजली की मांग में हुई यह वृद्धि हाल के वर्षों के औसत से कम रही। बता दें कि भारत में भी बिजली की मांग में 2023 के दौरान 99.44 टेरावाट-घंटे का इजाफा दर्ज किया गया।

2023 के ऊर्जा उत्पादन में हिस्सेदारी की बात करें तो अभी भी कोयला पहले स्थान पर है, जो दुनिया की 35.4 फीसदी बिजली पैदा कर रहा है। इसके बाद 22.5 फीसदी के साथ गैस दूसरे स्थान पर है। वहीं 14.3 फीसदी (4,210 टेरावाट-घंटे) के साथ जल विद्युत तीसरे स्थान पर है।

इसके साथ ही परमाणु ऊर्जा की हिस्सेदारी 9.1 फीसदी (2,686 टेरावाट-घंटे), पवन ऊर्जा की 7.8 फीसदी, सौर ऊर्जा 5.5 फीसदी, अन्य जीवाश्म ईंधन 2.7 फीसदी, बायोएनर्जी 2.4 फीसदी और 0.3 फीसदी के साथ अक्षय ऊर्जा के अन्य स्रोत अंतिम स्थान पर हैं।

ऊर्जा क्षेत्र से हो रहे उत्सर्जन के बारे में भी इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) ने भी अपनी नई रिपोर्ट में जानकारी दी है कि 2023 में ऊर्जा क्षेत्र से हो रहे उत्सर्जन में 41 करोड़ टन या 1.1 फीसदी की वृद्धि हुई थी, इसकी वजह से ऊर्जा क्षेत्र से होता उत्सर्जन बढ़कर रिकॉर्ड 3740 करोड़ टन पर पहुंच गया। हालांकि यह 2022 में हुई 49 करोड़ टन की वृद्धि से कम थी।

रिपोर्ट के मुताबिक इसके बढ़ोतरी के पीछे की सबसे बड़ी वजह चीन और अमेरिका जैसे देशों में पड़ा गंभीर सूखा था। इसकी वजह से जल विद्युत के उत्पादन में गिरावट देखी गई थी। इस कमी को पूरा करने के लिए कई देशों ने जीवाश्म ईंधन का सहारा लिया। इसकी वजह से उत्सर्जन में 40 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई।

मानव इतिहास में पहली बार ऊर्जा उत्पादन में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी बढ़कर 30 फीसदी से ज्यादा हो गई है। देखा जाए तो यह सौर और पवन ऊर्जा में हुई वृद्धि से प्रेरित थी। इससे पहले 2019 के ऊर्जा उत्पादन में अक्षय ऊर्जा की हिस्सेदारी महज 19 फीसदी थी।

आंकड़ों के मुताबिक 2023 में रिकॉर्ड संख्या में सौर पैनल और टरबाइन स्थापित किए गए। सौर और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में हुई वृद्धि इसी बात से आंकी जा सकती है कि जहां 2000 के ऊर्जा उत्पादन में सौर और पवन की हिस्सेदारी 0.2 फीसदी थी, वो 2023 में बढ़कर करीब 13.4 फीसदी पर पहुंच गई।

यह कहीं न कहीं इस ओर भी इशारा करता है कि हम अपनी बिजली सम्बन्धी जरूरतों के लिए अक्षय ऊर्जा के करीब और जीवाश्म ईंधन से दूर जा रहे हैं। 2023 को उस वर्ष के रूप में भी देखा जा सकता है, जब बिजली क्षेत्र से होने वाला उत्सर्जन अपने रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया और इसके बाद भविष्य में हम एक सकारात्मक बदलाव देखने की उम्मीद कर सकते हैं।

एम्बर का यह भी अनुमान है कि 2024 में जीवाश्म ईंधन का उपयोग थोड़ा घट जाएगा, वहीं अगले कुछ वर्षों में हम और भी बड़ी गिरावट की उम्मीद कर सकते है। अनुमान है कि 2023 की तुलना में इस साल बिजली की मांग 968 टेरावाट-घंटे अधिक रह सकती है।

सौर ऊर्जा उत्पादन के मामले में भारत ने लगाई छलांग

वहीं अनुमान है कि ऊर्जा के साफ सुथरे स्रोतों से पैदा की जा रही बिजली में इस साल 1,300 टेरावाट-घंटे की वृद्धि हो सकती है। कयास लगाए जा रहे हैं इसकी वजह से जीवाश्म ईंधन से होते बिजली उत्पादन में दो फीसदी की कमी आ सकती है, जो 333 टेरावाट-घंटे के बराबर है।

रिपोर्ट के मुताबिक ऊर्जा के साफ सुथरे साधनों ने पिछले दस वर्षों में जीवाश्म ईंधन की वृद्धि को करीब दो-तिहाई तक धीमा करने में मदद की है। दुनिया की करीब आधी अर्थव्यवस्थाएं जीवाश्म ईंधन आधारित बिजली उत्पादन के अपने चरम स्तर को कम से कम पांच साल पहले ही पार कर चुकी हैं।

एम्बर के अनुसार, 2023 के बिजली उत्पादन में जो वृद्धि हुई थी उसमे सौर ऊर्जा का बहुत बड़ा हाथ था। इसने बिजली उत्पादन में हुई वृद्धि में कोयले की तुलना में दोगुना योगदान दिया था। मतलब साफ है कि दुनिया बड़ी तेजी से अपनी सौर ऊर्जा क्षमता में इजाफा कर रही है। इसी तरह यह लगातार 19वां वर्ष है जब सौर ऊर्जा, बिजली के किसी भी अन्य स्रोत की तुलना में तेजी से बढ़ी है।

एम्बर द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक भारत ने भी सौर ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में बड़ी सफलता हासिल की है। जहां 2009 में भारत 6.57 टेरावाट-घंटे के साथ सौर ऊर्जा उत्पादन के मामले में भारत नौवें स्थान पर था। वो 2023 में 113.41 टेरावाट-घंटे के साथ जापान और जर्मनी को पीछे तीसरे स्थान पर आ गया गया है।

बता दें कि अब इस मामले में भारत केवल चीन (584.15 टेरावाट-घंटे) और अमेरिका (238.12 टेरावाट-घंटे) से ही पीछे है। गौरतलब है कि पिछले कुछ वर्षों से भारत सौर ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र पर काफी ध्यान दे रहा है। यह कामयाबी उसी का नतीजा है।

रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि 2015 की तुलना में वैश्विक स्तर पर सौर ऊर्जा उत्पादन 2023 में छह गुणा अधिक था। वहीं भारत में यह आंकड़ा 17 गुणा रहा। यही वजह है कि जहां भारत के बिजली उत्पादन में सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी 2015 में महज 0.5 फीसदी था, वो 2023 में बढ़कर 5.8 फीसदी पर पहुंच गई है।

जलवायु विशेषज्ञों की मानें तो बिजली क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन के उपयोग और उत्सर्जन में कटौती, वैश्विक जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है।

यही वजह है कि पिछले साल दुबई में हुए जलवायु शिखर सम्मेलन कॉप-28 के दौरान 100 से भी ज्यादा देशों ने 2030 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने पर सहमति व्यक्त की थी। इसके साथ ही 2030 तक ऊर्जा दक्षता में सालाना हो रहे सुधार को दोगुना करने का लक्ष्य रखा गया था।