ऊर्जा

सतत विकास लक्ष्य के लिए अक्षय ऊर्जा की नई तकनीकों को बढ़ावा देना जरूरी

अध्ययन में कहा गया है कि किस तरह हमें अक्षय ऊर्जा के सही उपयोग से पारिस्थितिक स्थिरता और संरक्षण के साथ कम कार्बन वाले भविष्य के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में काम करना चाहिए।

Dayanidhi

ऊर्जा का विकास लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है, लेकिन इसके परिणामों से पर्यावरण भी प्रभावित होता है। दुनिया भर में जीवाश्म ईंधन के बदले अक्षय ऊर्जा को अपनाने से जलवायु परिवर्तन को कम किया जा सकता है, लेकिन सभी 17 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के बजाय इनमें से कुछ को प्राप्त किया जा सकता है। इसी को लेकर कैलिफोर्निया कि डेविस और जॉन हॉपकिंस विश्वविद्यालय के द्वारा एक अध्ययन किया गया है, इसका उद्देश्य निर्णयकर्ताओं को अक्षय ऊर्जा के विकास से पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों से बचने में मदद करना है।

जलवायु परिवर्तन के दबाव को कम करने के लिए अक्षय ऊर्जा में तकनीकी विकास और इन्हें तुंरत अपनाने की जरुरत पर जोर दिया गया है। अध्ययन बताता है कि किस तरह पारिस्थितिक स्थिरता और संरक्षण के साथ कम कार्बन वाले भविष्य के लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में काम करना चाहिए।

जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ एडवांस्ड इंटरनेशनल स्टडीज के सहायक प्रोफेसर, सह-अध्ययनकर्ता सारा जोर्डन ने कहा अक्षय या रिन्यूएबल्स हमेशा टिकाऊ नहीं होते हैं, लेकिन उनमें लगातार सुधार एंव तकनीकी विकास से उन्हें ऐसा बनाया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र सतत विकास और जलवायु लक्ष्यों के बीच एक बहुत बड़ा असंतुलन है। इसके समाधान के लिए अगुवाई करने वाले, नेताओं को एक साथ आकर कार्रवाई  करनी चाहिए।

रोडमैप बनाने के लिए अध्ययनकरताओं ने अक्षय ऊर्जा में सार्वजनिक और निजी निवेशों का आकलन किया और स्वच्छ ऊर्जा के व्यापार और तालमेल का विश्लेषण किया। उन्होंने 2019 में इलेक्ट्रिक पॉवर रिसर्च इंस्टीट्यूट द्वारा आयोजित दो दिवसीय कार्यशाला से प्राप्त किए गए शोध विषयों की पहचान की, जिसमें अक्षय ऊर्जा, उद्योग, सरकारी क्षेत्रों से अक्षय ऊर्जा और स्थिरता क्षेत्र के 58 प्रमुख विशेषज्ञ शामिल थे।

स्थायी सौर और पवन ऊर्जा के विकास के लिए प्रमुख शोध प्राथमिकताओं में जगह का चयन करना और वन्य जीवन पर इसके पड़ने वाले प्रभावों की समझ इसमें शामिल है। उदाहरण के लिए, फ्लोरिडा के सबसे लंबे देवदार के जंगल देश में कार्बन को स्टोर करने, पानी की गुणवत्ता की बनाए रखने और वन्यजीवों को आवास प्रदान करने में मदद करते है। अब राज्य में लंबी पत्ती वाले चीड़ के जंगलों की ऐतिहासिक श्रेणी का केवल एक हिस्सा ही शेष है। फिर भी उस बचे हुए एक भाग में सौर ऊर्जा की स्थापना की जानी है।

इसी बीच उसी राज्य में कुछ ही मील की दूरी पर वाटरबर्ड्स स्कवॉक, अपनी चोंच से अपने पंखों को संवारते हुए, भोजन के लिए सौर पैनलों के ऊपर रेंगने वाले कीड़ों का शिकार करते हैं, यहां एक तरह के तैरने वाले "फ्लोटोवोल्टिक" सौर पैनलों की स्थापना की गई हैं। यहां वन्यजीव और ग्रीनहाउस गैस में कमी दोनों लक्ष्य एक साथ हासिल होते हुए दिखाई देते हैं। यह अध्ययन फ्रंटियर्स इन सस्टेनेबिलिटी में प्रकाशित हुआ है।

प्रोफेसर रेबेका आर. हर्नानडेज़ ने कहा हम आंखे बंद करके जलवायु परिवर्तन का पीछा नहीं कर सकते हैं। हम, हमारे द्वारा लगाए गए कुछ अक्षय ऊर्जा प्रणालियों से पारिस्थितिक तंत्रों पर पड़ने वाले प्रभावों पर विचार कर सकते हैं। रेबेका आर. हर्नानडेज़, यूसी डेविस में सहायक प्रोफेसर और जॉन मुइर इंस्टीट्यूट ऑफ एनवायरनमेंट में वाइल्ड एनर्जी इनिशिएटिव के निदेशक हैं।

वैज्ञानिकों ने जिन अन्य महत्वपूर्ण विचारों और प्राथमिकताओं की पहचान की, वे स्वच्छ ऊर्जा परियोजनाओं की सार्वजनिक स्वीकृति और पवन और सौर ऊर्जा के प्रबंधन से संबंधित अध्ययन थे। उदाहरण के लिए, पवन ऊर्जा में लगने वाली ब्लेड में लगे सामग्री रिसाइकिल नहीं होती हैं और सौर पैनल बढ़ते इलेक्ट्रॉनिक कचरे की समस्या को बढ़ा देते हैं।

अध्ययनकर्ताओं ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि स्थायी अक्षय ऊर्जा का क्षेत्र अभी भी अपनी प्रारंभिक अवस्था में है, जिसमें कई प्रश्न और उनके समाधान स्पष्ट नहीं हैं। रोडमैप में जोर दिया गया है कि इस दिशा में अभी काफी सुधार करने की आवश्यकता है।

हर्नान्डेज़ ने अक्षय ऊर्जा के बारे में बताया कि, अपने क्षेत्रों में हर कोई चीजों को जल्दी से जल्दी निकालने की कोशिश कर रहा है। यह रोडमैप इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि हम सभी को ज्ञान, नवाचार और परिणामों को साझा करने के लिए संगठित होने और एक साथ काम करने की आवश्यकता है।

जॉर्डन ने कहा हमें उन चीजों पर शोध करने की आवश्यकता है जिन्हें हम नहीं जानते हैं, उन समाधानों को लागू करें जिन्हें हम जानते हैं, और आवश्यकतानुसार तकनीक विकसित करें और जवाबदेही सुनिश्चित करें।