योगेन्द्र आनंद / सीएसई
ऊर्जा

सौर ऊर्जा से उपजे यक्ष प्रश्न

असली सवाल यह है कि रूफ टॉप सोलर तकनीक मौजूदा बिजली वितरण प्रणालियों के साथ कैसे एकीकृत होगी

Sunita Narain

आज अगर आप एक छत की कल्पना करेंगे तो आपको सौर पैनल दिखाई देंगे। सौर ऊर्जा के बारे में सोचें तो आपको दिन के दौरान उत्पन्न होने वाली ऊर्जा दिखाई देगी जो उपकरणों को शक्ति देती है और यहांं तक कि ग्रिड में भी संग्रह की जाती है, जहां से इसे रात में जब सूरज नहीं चमक रहा होता है, तब वापस खरीदा जा सकता है। यह दुनिया का सबसे “ऊबर” (बेहतरीन) समाधान है जहां हममें से प्रत्येक व्यक्ति बिजली का उत्पादक बन जाता है। यह इसलिए काम करता है क्योंकि सौर ऊर्जा मॉड्यूलर है सौर पैनल लगभग कहीं भी फिट हो सकते हैं जो थर्मल या परमाणु जनरेटर के मामले में संभव नहीं है। बड़े पैमाने पर सौर संयंत्रों के निर्माण के लिए बड़ी मात्रा में भूमि की आवश्यकता होती है जो हमेशा दुर्लभ और अक्सर विवादित होती है लेकिन इस मॉडल में हर उपलब्ध छत एक ऊर्जा संयंत्र बन जाती है।

आप पूछ सकते हैं कि मैं “रूफटॉप” सौर ऊर्जा के उन लाभों की बात क्यों कर रही हूं जिनसे हम सब वाकिफ हैं। मेरा मानना है कि इसकी क्षमता विशाल है। ऐसी स्थिति में केंद्र सरकार के कार्यालयों और घरों में रूफटॉप सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित करने वाले कार्यक्रमों के बावजूद प्रगति अब भी एक परिवर्तनकारी पैमाने पर क्यों नहीं हुई है? यह नीति या इरादे की कमी नहीं है। असली सवाल यह है कि यह तकनीक मौजूदा बिजली वितरण प्रणालियों के साथ कैसे एकीकृत होगी।

यह चुनौती केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। सभी नई प्रौद्योगिकियां एक समान मार्ग का अनुसरण करती हैं। ऊर्जा जगत के आसमान पर सूरज की तरह चमकने के लिए उन्हें पुराने स्रोतों को विस्थापित करने के तरीके खोजने होंगे। तथ्य यह है कि सौर ऊर्जा अंतराल पर प्राप्त होती है और सौर प्रौद्योगिकी केवल तभी बिजली पैदा करती है जब सूरज चमकता है, इसलिए इसे किसी न किसी प्रकार के बैकअप की आवश्यकता होती है। याद रखें कि रात के समय ऊर्जा की खपत अक्सर दिन के उपयोग जितनी या उससे भी अधिक होती है क्योंकि दिन में प्राकृतिक प्रकाश उपलब्ध होता है और आमतौर पर हीटिंग या कूलिंग की कम आवश्यकता होती है। आदर्श व्यवस्था यह है कि सौर पैनल दिन के दौरान बिजली पैदा करते हैं, जिसका एक हिस्सा साइट पर ही उपयोग किया जाता है, जबकि अतिरिक्त बिजली या तो ग्रिड में “निर्यात” की जाती है या बैटरी में संग्रहित की जाती है, जिसका उपयोग उन घंटों के दौरान किया जाता है जब धूप नहीं होती। चूंकि बैटरी अब भी महंगी हैं, इसलिए ग्रिड को निर्यात करना सबसे व्यावहारिक विकल्प बना हुआ है। इस सेटअप में वितरण कंपनी (डिस्कॉम) या पावर यूटिलिटी बैकअप के रूप में कार्य करती है।

यह वह जगह है जहां मुश्किलें बढ़ जाती हैं। इस संबंध में केरल का उदाहरण लेते हैं। एक ऐसा राज्य जो भारत की सबसे सफल रूफटॉप सौर परियोजनाओं में से एक है। पूरे राज्य में कुल 1.5 गीगावाट की रूफटॉप प्रणालियां स्थापित की गई हैं। यह इसके 20 लाख घरेलू ग्राहकों के 2 प्रतिशत हिस्से तक पहुंच गई हैं। अगस्त 2025 में कार्यक्रम को लागू करने वाले केरल राज्य बिजली बोर्ड (केएसईबी) ने कहा कि उसके वित्तीय नुकसान असहनीय हो गए हैं। समस्या यह थी कि केएसईबी दिन के दौरान रूफटॉप जनरेटर से बिजली खरीद रहा था, जब दरें कम थीं और रात में उन्हें उतनी ही मात्रा वापस बेच रहा था, जब उसके द्वारा खरीदी गई बिजली की लागत अधिक थी। इस सौर कार्यक्रम के माध्यम से केवल 2 प्रतिशत उपभोक्ताओं को सेवा मिलने के कारण बिजली दरों पर बोझ बढ़ गया, जिसके फलस्वरूप शेष उपभोक्ताओं के बिल बढ़ गए। इसलिए केएसईबी ने एक मसौदा आदेश जारी किया, जो नेट-मीटरिंग क्षमता को सीमित करेगा, ग्रिड शुल्कों पर एक उपकर लगाएगा और दिन के समय पर आधारित गणना के आधार पर टैरिफ पेश करेगा। जैसे ही यह आदेश आया, रूफटॉप कार्यक्रम रुक गया और एक महीने के भीतर इंस्टॉलेशन आधे से कम हो गए।

नवंबर में केरल राज्य विद्युत नियामक आयोग (केएसईआरसी) ने ग्रिड से जुड़े रूफटॉप प्रणालियों के लिए अंतिम अधिसूचना जारी की। इसका उद्देश्य नए जुड़े हुए घरों के लिए बैटरी स्टोरेज स्थापित करना अनिवार्य करके डिस्कॉम पर बोझ को कम करने का प्रयास करता है ताकि उनकी रात की बिजली खरीद कम हो जाए। 10 किलोवाट से ऊपर के रूफटॉप सौर प्रणालियों में 10 प्रतिशत बैटरी स्टोरेज की आवश्यकता होगी और 15-20 किलोवाट वालों के लिए 20 प्रतिशत की आवश्यकता होगी। 2027 के बाद 5 किलोवाट जैसी छोटी प्रणालियों के लिए भी स्टोरेज की आवश्यकता होगी। यह नीति सकल मीटरिंग तंत्र के माध्यम से प्रोत्साहन भी पेश करती है, जो उन ग्राहकों को उच्च टैरिफ प्रदान करती है जो पीक आवर्स के दौरान सौर ऊर्जा की आपूर्ति करते हैं। ग्राहकों के बिल प्रत्येक वित्तीय वर्ष के अंत में निपटाए जाएंगे। निश्चित और ग्रिड शुल्कों की कटौती के बाद किसी भी “अधिशेष या बैंक की गई इकाइयों” का भुगतान मौजूदा ग्राहकों के लिए 3.08 रुपए प्रति किलोवाट आवर और नए कनेक्शनों के लिए 2.79 रुपए प्रति किलोवाट आवर की दर से किया जाएगा, जो उच्चतम ऊर्जा दरों से काफी कम है।

सवाल यह है कि क्या यह प्रणाली रूफटॉप सौर उत्पादकों और डिस्कॉम के लिए बेहतर काम करेगी। या फिर, क्या ऐसे तरीके संभव हैं जिनसे वितरण मार्ग पर निर्भर हुए बिना सौर भविष्य का निर्माण किया जा सके, खासकर उन देशों और क्षेत्रों में जहां आज ग्रिड विकसित नहीं है?

पड़ोसी पाकिस्तान से आने वाली खबरें एक अलग रास्ता सुझाती हैं। बिजली की कमी के कारण देश को अत्यधिक ऊर्जा लागत का सामना करना पड़ रहा है। हालांकि, पाकिस्तान ने चीनी सौर पैनलों और लीथियम बैटरियों पर आयात शुल्क हटा दिया है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा विश्लेषकों का अनुमान है कि 2024 तक पाकिस्तान ने न केवल 50 गीगावट स्थापित ग्रिड बिजली की तुलना में 25 गीगावाट नेट-मीटर वाले वितरित सौर ऊर्जा को स्थापित किया बल्कि ऑफ-ग्रिड प्रणालियों का समर्थन करने के लिए 1.25 गीगावाट लीथियम बैटरियों का आयात भी किया। इस गति से पाकिस्तान 2030 तक अपनी 100 प्रतिशत दिन के समय की बिजली की मांग और 25 प्रतिशत रात के समय की मांग को सौर ऊर्जा के माध्यम से पूरा कर सकता है। लेकिन रिपोर्टें संकेत देती हैं कि यह संक्रमण डिस्कॉम की लागत में इजाफा कर रहा है, जिससे विरोध होता है और नीति की समीक्षा को बल मिलता है। यह स्पष्ट नहीं है कि यह राह कहां जाएगी।

यह हमारे युग का प्रमुख ऊर्जा प्रश्न है, नई ऊर्जा प्रणालियां मौजूदा जीवाश्म ईंधन आधारित ग्रिड को कैसे विस्थापित, प्रतिस्थापित या रेट्रोफिट करेंगी और हमें क्या अलग करना चाहिए? यह एक ऐसा प्रश्न है जिस पर हम सभी को बारीकी से नजर रखनी चाहिए।