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धंसता जोशीमठ: 567 भवनों में आई दरारें, तपोवन विष्णुगाड़ परियोजना और बाइपास निर्माण पर रोक

Raju Sajwan

उत्तराखंड के ऐतिहासिक शहर जोशीमठ में धंसाव को गंभीरता से लेते हुए प्रशासन सुरक्षित स्थानों पर 4,000 प्रीफ्रेबिकेटेड कमरे बनाने की तैयारियों में जुट गया है। साथ ही, एनटीपीसी की तपोवन विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना और हेलंग बाइपास के निर्माण पर रोक लगा दी है। इससे पहले प्रशासन ने एशिया के सबसे बड़े (जोशीमठ से औली) रोप-वे को बंद करा दिया था।

अब तक जोशीमठ के वार्ड एक गांधीनगर, वार्ड दो मारवाड़ी, वार्ड तीन लोअर बाजार, वार्ड 4 सिंहधार, वार्ड 5 में मनोहर बाग, वार्ड 6 में अपर बाजार डाडो, वार्ड 7 सुनील, वार्ड 8 परसारी, वार्ड नौ रविग्राम में कुल 561 घरों में दरारें आ चुकी हैं। साथ ही, सिंहधार वार्ड में दो होटलों में दरारें आने पर खाली करा दिया गया है।

रोजाना घरों-भवनों में बढ़ती दरारों के मद्देनजर डीएम अभिषेक त्रिपाठी ने पांच जनवरी 2023 को एनटीपीसी और हिंदुस्तान कंस्ट्रक्शन लिमिटेड को पत्र लिखकर कहा है कि वे आपदा प्रभावितों को शिफ्ट करने के लिए दो-दो हजार प्रीफेब्रिकेटेड भवन तैयार कर लें।

इसके अलावा डीएम ने एनटीपीसी की विष्णुगाड़ जल विद्युत परियोजना और हेलंग बाइपास के निर्माण पर भी रोक लगाने के आदेश जारी किए हैं।

जोशीमठ में दरारें आने का सिलसिला अक्टूबर 2021 में ही शुरु हो गया था, लेकिन तबसे सरकार व प्रशासन ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। अब हालात बेकाबू हो चुके हैं।

डरे और आक्रोशित लोगों ने 4 जनवरी 2022 को शहर भर में जुलूस निकाला और आरोप लगाया कि सरकार इसे गंभीरता से नहीं ले रही है। बल्कि जोशीमठ में आ रही दरारों के लिए जिम्मेवार नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) को बचाया जा रहा है। स्थानीय लोग इससे पहले 24 अक्टूबर को भी बाजार बंद रख कर प्रदर्शन कर चुके हैं।

एनटीपीसी की टनल कितनी दोषी

जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक अतुल सती कहते हैं कि सरकार और प्रशासन की ओर से यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि जोशीमठ के नीचे से निकल रही टनल के कारण भू-धंसाव की घटनाएं नहीं हो रही हैं, लेकिन हकीकत यह है कि एक ओर जहां तपोवन विष्णुगाड परियोजना की एनटीपीसी की सुरंग ने जमीन को भीतर से खोखला कर दिया है दूसरी तरफ बाईपास सड़क के लिए जोशीमठ की जड़ पर खुदाई की जा रही है।

लोगों की आशंका उस समय और बल मिला, जब जोशीमठ के नीचे मारवाड़ी में पानी का स्रोत फूट पड़ा। पानी मटमैला होने के कारण लोगों को आशंका है यह पानी एनटीपीसी की टनल से ही निकल रहा है।

इस स्रोत से निकल रहे पानी को लेकर विशेषज्ञ भी सवाल उठा रहे हैं। भूगर्भ वैज्ञानिक एवं कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री, रानीचौड़ी, टिहरी गढ़वाल के बेसिक एवं सोशल साइंस विभाग के अध्यक्ष एसपी सती ने डाउन टू अर्थ से कहा कि जोशीमठ में धंसाव का कारण सीधे-सीधे एनटीपीसी की टनल जिम्मेवार है या नहीं, इसका वैज्ञानिक अध्ययन होना बेहद जरूरी है।

सती सुझाव देते हैं कि फिलहाल जोशीमठ के मारवाड़ी में जो पानी निकल रहा है, उसका सैंपल लेकर धौलीगंगा के पानी के सैंपल से मिलान करके आसानी से देखा जा सकता है कि क्या यह पानी टनल से लीक हो रहा है या नहीं।

सती उन वैज्ञानिकों में शामिल हैं, जिन्होंने स्थानीय लोगों की अपील पर जोशीमठ में हो रहे धंसाव का अध्ययन किया था। उनके साथ भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद से जुड़े नवीन जुयाल और शुभ्रा शर्मा शामिल भी थे।

इन वैज्ञानिकों ने अपनी इस रिपोर्ट में कहा था कि जोशीमठ की आसपास की ढलानें बेहद नाजकु स्थिति में हैं और इन ढलानों में अस्थितिरता देखी गई है।

सती कहते हैं कि 2013 में जब राज्य में हाइड्रो प्रोजेक्ट्स पर रोक लगाई गई थी, तब इस तरह की आशंका भी जताई गई थी कि हाइड्रो प्रोजेक्ट्स की टनल आपदाओं का कारण बन सकती हैं।

दिसंबर के प्रथम सप्ताह में नगर पालिका की ओर से एक सर्वे में पाया गया कि इस आपदा की वजह से 2882 लोग प्रभावित हो सकते हैं। नगर पालिका अध्यक्ष शैलेंद्र पंवार बताते हैं कि अब तक 550 घरों को असुरिक्षत पाया गया है, जिनमें से 150 घर ऐसे हैं, जो कभी भी गिर सकते हैं। जिन्हें तत्काल दूसरी जगह बसाया जाना चाहिए।

चमोली आपदा के बाद बिगड़े हालात

दरअसल 7 फरवरी, 2021 की चमोली आपदा तबाही के बाद से पूरी नीती घाटी में भूधंसाव की खबरें आ रही हैं। पहले जून 2021 और फिर अक्टूबर 2021 की भारी बारिश से यह सिलसिला और तेज हो गया। जून 2021 में चिपको आंदोलन की नायिका गौरा देवी के गांव रैणी से भी भूधंसाव की खबरें आई।  

अगर बात जोशीमठ की बात करें तो यहां 1970 के दशक में भी भूधंसाव की घटनाएं हुई थी। तब गढ़वाल आयुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में धंसाव के कारणों की जांच के लिए एक कमेटी बनी थी। 1978 में दी गई  अपनी रिपोर्ट में उन्होंने कहा था कि जोशीमठ के साथ-साथ नीती माणा घाटियों में बड़े निर्माण कार्य नहीं किये जाने चाहिए, क्योंकि ये इलाके हिमोढ़ (मोरेन) पर बसे हुई हैं। हिमोढ़ उस जगह को कहा जाता है, जहां ग्लेशियर पिघलने के बाद मलबा जमा हो जाता है।

जिन घरों को खतरा है, वहां से लोग या ता ेकिराए के घरों में जा रहे हैं या प्रशासन उन्हें अस्थायी इलाकों में ठहरा रहा है, लेकिन इतनी बड़ी संख्या में यदि घर टूटते हैं तो इन लोगों को कहां जगह दी जाएगी, यह एक बड़ा सवाल है। डाउन टू अर्थ, हिंदी के नवंबर अंक में इस विषय पर व्यापक विश्लेषण किया गया था। इसे पढ़ने के लिए क्लिक करें। फिलहाल सरकार के लिए बड़ी चुनौती जोशीमठ को धंसने से बचाना है।