ऊर्जा

वैज्ञानिकों ने बेहतर दक्षता के लिए नए सौर सेल किए विकसित

सिलिकॉन सौर सेलों की दक्षता की कुछ सीमाएं हैं, इनमें शॉर्ट-वेव विकिरण से कुछ ऊर्जा बिजली में नहीं, बल्कि अनचाही गर्मी में बदल जाती है

Dayanidhi

वैज्ञानिक ने पहले से उपलब्ध सौर सेलों की तुलना में अधिक कुशल सौर सेलों के लिए एक नया डिजाइन विकसित किया है। इसे अंजाम देने के लिए उन्होंने जटिल कंप्यूटर सिमुलेशन का उपयोग किया। कार्बनिक पदार्थ की एक पतली परत, जिसे टेट्रासीन कहा जाता है, दक्षता बढ़ाने के लिए जिम्मेदार होता है। यह कारनामा पडरबोर्न विश्वविद्यालय के भौतिकविदों की अगुवाई में किया गया है तथा इसके परिणाम फिजिकल रिव्यू लेटर्स में प्रकाशित किए गए हैं। 

शोध के मुताबिक, पृथ्वी पर सौर विकिरण की वार्षिक ऊर्जा एक ट्रिलियन किलोवाट घंटे से अधिक है, जो कि दुनिया भर में ऊर्जा की मांग से 5,000 गुना से अधिक है। स्वच्छ और नवीकरणीय ऊर्जा की आपूर्ति में फोटोवोल्टिक, यानी, सूर्य के प्रकाश से बिजली का उत्पादन अभी भी बड़े पैमाने पर पूरी क्षमता प्रदान करता है।

शोध के हवाले से, पडरबोर्न विश्वविद्यालय में प्राकृतिक विज्ञान संकाय के भौतिक विज्ञानी डॉ. वोल्फ गेरो श्मिट बताते हैं कि इस उद्देश्य के लिए उपयोग किए जाने वाले सिलिकॉन सौर सेल वर्तमान में बाजार पर हावी हैं, लेकिन उनकी दक्षता की कुछ सीमाएं हैं। इसका एक कारण यह है कि शॉर्ट-वेव विकिरण से कुछ ऊर्जा बिजली में नहीं, बल्कि अनचाही गर्मी में बदल जाती है।

डॉ. श्मिट बताते हैं, दक्षता बढ़ाने के लिए, सिलिकॉन सौर सेल पर एक कार्बनिक परत चढ़ाई जा सकती है, उदाहरण के लिए टेट्रासिन से बनी सेमीकंडक्टर। शॉर्ट-वेव प्रकाश इस परत में अवशोषित होता है और उच्च-ऊर्जा इलेक्ट्रॉनिक में परिवर्तित हो जाता है, इसलिए ये एक्साइटॉन कहलाते हैं।

ये एक्साइटॉन टेट्रासिन में दो कम-ऊर्जा उत्तेजनाओं में नष्ट हो जाते हैं। यदि इन उत्तेजनाओं को सफलतापूर्वक सिलिकॉन सौर सेल में स्थानांतरित किया जा सकता है, तो उन्हें कुशलता से बिजली में परिवर्तित किया जा सकता है और उपयोग करने योग्य ऊर्जा की समग्र उपज में वृद्धि हो सकती है।

शोध में कहा गया है, सिलिकॉन में टेट्रासिन के उत्तेजना में बदलाव की जांच श्मिट की टीम द्वारा विश्वविद्यालय के उच्च-प्रदर्शन कंप्यूटिंग केंद्र, पडरबोर्न  सेंटर फॉर पैरेलल कंप्यूटिंग (पीसी2) में जटिल कंप्यूटर सिमुलेशन का उपयोग करके की जा रही है। अब एक निर्णायक सफलता अब हासिल की गई है।

पडरबोर्न विश्वविद्यालय के डॉ. मार्विन क्रेंज और प्रोफेसर डॉ. उवे गेर्स्टमैन के साथ मिलकर किए गए एक अध्ययन में, वैज्ञानिकों ने दिखाया है कि टेट्रासीन के बीच रासायनिक बंधनों के रूप में विशेष तरह का दोष है जो फिल्म और सौर सेल से एक्साइटन स्थानांतरण को तेज करते हैं।

श्मिट कहते हैं, ऐसे दोष हाइड्रोजन के अवशोषण के दौरान होते हैं और उतार-चढ़ाव वाली ऊर्जा के साथ इलेक्ट्रॉनिक इंटरफेस स्थिति का कारण बनते हैं। ये उतार-चढ़ाव टेट्रासीन से इलेक्ट्रॉनिक उत्तेजनाओं को उठाकर सिलिकॉन में ले जाते हैं।

सौर सेल में ऐसे "दोष" वास्तव में ऊर्जा के नुकसान से जुड़े हैं। यह भौतिकविदों की तिकड़ी के परिणामों को और अधिक आश्चर्यजनक बनाता है।

श्मिट कहते हैं, सिलिकॉन टेट्रासीन इंटरफेस के मामले में, तेजी से ऊर्जा हस्तांतरण के लिए आवश्यक है। हमारे कंप्यूटर सिमुलेशन के परिणाम वास्तव में आश्चर्यजनक हैं। वे काफी बढ़ी हुई दक्षता के साथ एक नए प्रकार के सौर सेल के डिजाइन के लिए सटीक संकेत भी प्रदान करते हैं।