कोबाल्ट, फोटो : आईस्टॉक  
ऊर्जा

महत्वपूर्ण खनिजों की आपूर्ति में बढ़ोतरी ने पिछले साल भारी मांग के बावजूद कीमतों पर दबाव डाला: रिपोर्ट

2020 के बाद से बैटरी धातुओं की सप्लाई में जो बढ़ोतरी हुई है, वह 2010 के दशक के आखिर में देखी गई रफ्तार से दो गुनी है

Rajat Ghai

2024 में जरूरी खनिजों की आपूर्ति बढ़ने के साथ ही उनकी भारी मांग के बावजूद कीमतों में गिरावट दर्ज की गई। खासतौर से बैटरी से जुड़ी धातुओं की कीमतें काफी नीचे आईं हैं।

यह बात 21 मई 2025 को ग्लोबल क्रिटिकल मिनरल्स आउटलुक 2025 नाम से जारी एक रिपोर्ट में कही गई है।

चीन, इंडोनेशिया और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो (डीआरसी) जैसे देशों की अगुवाई में आपूर्ति में हुई बड़ी बढ़ोतरी की वजह से, खासकर बैटरी से जुड़ी धातुओं की कीमतें काफी नीचे आ गईं।

ग्लोबल क्रिटिकल मिनरल्स आउटलुक 2025 के मुताबिक, बैटरी धातुओं के उत्पादन में तेजी से हुई बढ़ोतरी ने दिखा दिया कि पारंपरिक धातुओं जैसे तांबा और जस्ता की तुलना में इस क्षेत्र में नई सप्लाई कहीं ज्यादा तेजी से लाई जा सकती है।

2020 के बाद से बैटरी धातुओं की सप्लाई में जो बढ़ोतरी हुई है, वह 2010 के दशक के आखिर में देखी गई रफ्तार से दो गुनी है। इसी वजह से, ऊर्जा क्षेत्र में इस्तेमाल होने वाले अहम खनिजों की कीमतें लगातार गिरती रहीं और अब यह महामारी से पहले के स्तर पर पहुंच गई हैं। यह 2021 और 2022 में देखी गई तेज कीमत बढ़ोतरी से बिल्कुल अलग है।

जैसे कि लिथियम की कीमतें 2021-22 के दौरान आठ गुना बढ़ गई थीं, लेकिन 2023 से अब तक इसमें 80 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आ चुकी है। ग्रेफाइट, कोबाल्ट और निकल की कीमतें भी 2024 में 10 से 20 फीसदी तक कम हो गईं।

मांग में बढोतरी

रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में ऊर्जा से जुड़े इन खनिजों की मांग लगातार बढ़ती रही। लिथियम की मांग करीब 30 फीसदी बढ़ी, जबकि 2010 के दशक में इसकी औसत सालाना मांग सिर्फ 10 फीसदी बढ़ती थी। निकल, कोबाल्ट, ग्रेफाइट और रेयर अर्थ की मांग भी पिछले साल 6 से 8 फीसदी तक बढ़ी। यह मांग ज्यादातर ऊर्जा क्षेत्र की वजह से रही, जैसे कि इलेक्ट्रिक वाहन, बैटरी स्टोरेज, रिन्यूएबल एनर्जी और ग्रिड नेटवर्क।

तांबे की मांग में सबसे बड़ा योगदान चीन में ग्रिड नेटवर्क के तेज विस्तार का रहा है। वहीं लिथियम, निकल, कोबाल्ट और ग्रेफाइट जैसे बैटरी धातुओं की मांग में जो बढ़ोतरी हुई है, उसमें ऊर्जा क्षेत्र का हिस्सा पिछले दो सालों में कुल 85 फीसदी रहा है।

आपूर्ति को झटका

हालांकि अभी सप्लाई स्थिर है, लेकिन रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इसकी सुरक्षा को लेकर खतरे लगातार बढ़ रहे हैं। 2023 से अब तक जरूरी खनिजों पर कई देशों ने निर्यात से जुड़ी पाबंदियां लगाई हैं। रिपोर्ट में बताया गया कि दिसंबर 2024 में चीन ने अमेरिका को गैलियम, जर्मेनियम और एंटिमनी जैसे सेमीकंडक्टर में इस्तेमाल होने वाले खनिजों के निर्यात पर रोक लगा दी। इसके बाद 2025 की शुरुआत में चीन ने टंगस्टन, टेल्यूरियम, बिस्मथ, इंडियम और मोलिब्डेनम और सात तरह के हैवी रेयर अर्थ एलिमेंट्स के निर्यात पर भी पाबंदी लगा दी।

फरवरी 2025 में डीआरसी ने गिरती कीमतों को रोकने के लिए कोबाल्ट के निर्यात को चार महीने के लिए रोक दिया। इस वक्त ऊर्जा से जुड़े जरूरी खनिजों के एक बड़े समूह में से आधे से ज़्यादा किसी न किसी तरह की एक्सपोर्ट कंट्रोल में हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, अब ये पाबंदियां सिर्फ कच्चे माल या रिफाइंड धातुओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि लिथियम और रेयर अर्थ की प्रोसेसिंग तकनीकों पर भी लागू हो रही हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जब किसी एक देश पर सप्लाई बहुत ज़्यादा निर्भर होती है, तो अगर किसी कारण से उस देश की सप्लाई रुक जाए, तो पूरी दुनिया की मांग और आपूर्ति का संतुलन बिगड़ जाता है। बैटरी धातुओं और रेयर अर्थ के मामले में, प्रमुख उत्पादक देश को छोड़ दिया जाए, तो बाकी देशों की सप्लाई मिलकर भी सिर्फ आधी मांग ही पूरी कर पाती है। यानी कि भले ही अभी सप्लाई ठीक दिखे, लेकिन अगर कभी मौसम खराब हुआ, तकनीकी गड़बड़ी हुई या व्यापार में कोई रुकावट आई, तो पूरी सप्लाई चेन खतरे में पड़ सकती है।

रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अगर ऐसा हुआ, तो इससे उपभोक्ताओं के लिए कीमतें बढ़ सकती हैं और इंडस्ट्री की प्रतिस्पर्धा घट सकती है। अगर बैटरी धातुओं की सप्लाई लंबे वक्त तक बाधित रही, तो बैटरी पैक की औसत कीमतें दुनिया भर में 40 से 50 फीसदी तक बढ़ सकती हैं। पहले से ही अलग-अलग देशों के बीच बैटरी बनाने की लागत में काफी अंतर है, और अगर सप्लाई रुकती रही, तो चीन के मुकाबले बाकी देशों के बैटरी निर्माता और भी पीछे हो सकते हैं। इससे दुनिया भर में बैटरी निर्माण के क्षेत्र में विविधता लाने की कोशिशों को झटका लग सकता है।