जय सिंह, विवेक आर्य और नचिकेता पिछले साल तक अपने छोटे-छोटे धंधों में व्यस्त थे लेकिन अचानक ही पिछले कुछ माहों से तीनों ने अपने पुराने काम धंधों को छोड़ सौर ऊर्जा की ओर अपना रुख किया।
इसके पीछे का कारण बताते हुए विवेक आर्य कहते हैं कि कल तक जो प्रयागराज कुंभ की खबरों के कारण सुखिर्यों में रहता था अब आने वाले समय में यह सौर ऊर्जा नगरी के रूप में जाना जाएगा।
ऐसे कैसे होगा? पूछने पर विवेक के दूसरे साथी जय सिंह कहते हैं कि इस साल उत्तर प्रदेश राज्य सरकार के बजटीय घोषणा ने हमें यह सोचने पर मजबूर किया है कि यदि हम सौर ऊर्जा क्षेत्र में हाथ डालें तो अगले कुछ सालों में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं।
ध्यान रहे कि वित्तीय वर्ष 2025-26 तक उत्तर प्रदेश सरकार ने 2.65 लाख सौर पैनल लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इसके लिए अब 5,000 वर्ग मीटर से बड़े भवनों पर सौर पैनल अनिवार्य कर दिया गया है। यहीं नहीं अगर कोई नक्शा स्वीकृत भवन में पैनल नहीं लगाएगा तो उसका नक्शा ही रद्द कर दिया जाएगा।
इसके कारण अकेले प्रयागराज जिले में ही युवाओं का रुख इस ओर नहीं मुड़ रहा है बल्कि इस जिले के आसपास के कम से कम छह से सात जिलों के शहरी इलाको में रुफटॉप सोलर पैनल लगवाने की होड़ सी लगी है।
इस संबंध में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायमेंट के नवीकरणीय ऊर्जा विभाग के कार्यक्रम प्रबंधक बिनीत दास का कहना है कि सौर ऊर्जा ने प्रयागराज में एक मौन क्रांति को जन्म दिया है। कभी आध्यात्मिक समागमों के लिए जाना जाने वाला यह शहर अब स्वच्छ ऊर्जा उद्यमिता का केंद्र बन रहा है।
सरकारी सब्सिडी और अत्याधुनिक तकनीक के चलते युवा पारंपरिक व्यवसायों से सौर उद्यमों की ओर रुख कर रहे हैं। वह कहते हैं कि बढ़ते बिजली बिलों से परेशान होकर स्थानीय लोग भी सौर पैनल लगाने के मामले में अतिरिक्त उत्साह दिखा रहे हैं।
वहीं प्रयागराज में उत्तर प्रदेश नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विकास अभिकरण (यूपीनेडा) के प्रभारी मोहम्मद सिद्दकी ने डाउन टू अर्थ को बताया कि इसमें कोई दो राय नहीं कि इस समय प्रयागराज के शहरी इलाको में रुफटॉप सोलर पैनल लगवाने की होड़ सी मची हुई है और इसका एक बड़ा कारण है कि इसमें केंद्र व राज्य सरकार दोनों के द्वारा दी जाने वाली सब्सिडी और इसका सबसे अधिक लाभ युवाओं को हो रहा है।
युवा उद्यमियों द्वारा वर्तमान में प्रयागराज जिले के शहरी इलाकों में ही अपना-अपना काम कर रहे हैं लेकिन अब वे शहरी इलाकों के साथ-साथ ग्रामीण इलाकों में भी सौर पैनल लगाने का काम शुरू किया है।
नचिकेता कहते हैं कि इस कार्य में अकेले हम ही नहीं कूदे हैं बल्कि हमारे जैसे सैकड़ों युवा इन दिनों इसी काम में जुटे हुए हैं।
इस संबंध में मोहम्मद सिद्दकी ने बताया कि अकेले प्रयागराज के शहरी इलाकों में हमारे साथ पिछले कुछ माहों में 80 से अधिक वेंडर जुड़ चुके हैं। चूंकि किसी भी व्यक्ति को यदि सोलर पैनल लगवाना है तो उसे वेंडर के माध्यम से ही लगवाना होगा।
उनका कहना है कि इस कार्य में युवा बढ़ चचढ़ कर हिस्सा ले रहे हैं चूंकि वे अपने इलाकों को अच्छी से जानते-समझते हैं तो स्थानीय लोगों को सोलर पैनल के बारे में जानकारी भी वे अपने ही स्तर पर ही दे कर उनको संतुष्ट करने का कार्य भी वही करते हैं।
एक मध्यम वर्गीय परिवार का बिल यदि तीन हजार आ जाए तो वह परेशान हो जाता है। नचिकेता कहते हैं कि अब बिजली हमारी नियमित दिनचर्या का हिस्सा है और वर्तमान डिजिटल युग में बिना बिजली के जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
बिजली के इस्तेमाल के बाद जब भारी-भरकम बिल मध्यम वर्गीय किसी घर में 1500 से 3000 तक आ जाता है तो घर का मालिक सोचने पर मजबूर हो जाता है कि अब कैसे इतना बिल भरें।
वह आगे कहते हैं कि ऐसे में उसे अपना बिल कम करने के लिए सौर पैनल का रास्ता दिखा क्येांकि यदि वह इसे अपनाता है तो कम से कम ये भारी भरकम बिजली बिल सिमट कर पांच सौ से एक हजार के अंदर आ जाएगा।
प्रयागराज के नैनी में सोलर पैनल लगवा चुकी रमा द्विवेदी कहती हैं कि अब जाकर जान में जान आई, नहीं तो पिछले साल तक तो दो से ढाई हजार तक बिल आने लगा था लेकिन अब यह पांच से सात सौ के बीच आ रहा है।
ध्यान रहे कि रूफटॉप सोलर के संबंध में गत वर्ष 15 फरवरी 2024 को जब केंद्र सरकार ने घरों की छत पर सोलर पैनल इंस्टाल करवाकर बिजली आपूर्ति पर सब्सिडी की घोषण की तब आम जनमानस इस पर सोचने पर मजबूर हुआ और इसके बाद उत्तर प्रदेश राज्य सरकार ने भी अपनी ओर से अलग सब्सिडी की घोषणा कर दी।
सब्सिडी के गणित को समझाते हुए जय सिंह कहते हैं कि सोलर पैनल पर केंद्र सरकार 78 हजार रुपए की सब्सिडी देता है, जो कि सभी राज्यों में लागू है। लेकिन उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड जैसे कुछ राज्य हैं जो इस पर 30 हजार रुपए की अतिरिक्त सब्सिडी भी ग्राहकों को दे रहे हैं यानि अगर आप उत्तर प्रदेश के निवासी हैं और 3 किलोवाट का सोलर पैनल लगवाना चाहते हैं तो आपको केंद्र और राज्य सरकार द्वारा 1 लाख 8 हजार रुपए कि सब्सिडी मिलेगी।
जबकि 1 किलोवाट और 2 किलोवाट का सोलर प्लांट लगाने पर क्रमश: 60 और 90 हजार रुपए की सब्सिडी ही मिलती है। वह बताते हैं कि 3 किलोवाट का सोलर पैनल लगाने का कुल खर्च लगभग 2 लाख रुपए है और आपको सब्सिडी मिलने के बाद यह लगभग 90 हजार रुपए का पड़ता है।
जो कि लगभग 2 से 3 साल तक की बिजली बिल के बराबर है, उसके बाद आपका सोलर प्लांट मुफ्त हो जाता है यानी आपको बिजली लगभग मुफ्त में मिलने लगती है। बिनीत कहते हैं कि छतों को बिजलीघरों में बदलने की दर और सौर प्रणालियों के अब कॉम्पैक्ट, किफायती और तेजी से कुशल होने के साथ ऊर्जा क्षेत्र में स्वतंत्रता का लक्ष्य प्राप्त करने में अब अधिक देर नहीं होगी।
आमतौर पर सोलर पैनल को लेकर लोगों की धारणा बनी हुई कि यह बहुत अधिक क्षेत्र कवर करता है और यदि किसी के पास जगह नहीं है तो वह इसे नहीं लगवा सकता। इस संबंध में विवेक आर्य कहते हैं कि सोलर पैनल पर लोगों का रुझान बढ़ने के पीछे एक बड़ा कारण यह भी है कि 3 किलोवाट का सोलर प्लांट लगाने के लिए अब पूरे छत की नहीं बल्कि केवल एक कमरे के बराबर छत की ही जरूरत पड़ेगी।
उनका कहना था कि पहले एक सोलर पैनल 300 वाट का आता था तो 3 किलोवाट के लिए 10 पैनल लगते थे लेकिन अब 550 से 580 वाट के पैनल आने लगे हैं जिससे केवल 5 या 6 पैनल से ही 3 किलोवाट पूरा हो जाता है।
उनका कहना है कि आने वाले समय में और ज्यादा वॉट के पैनल आएंगे तो और कम जगह में ही सोलर पैनल लगाया जा सकेगा। सोलर पैनल की तकनीक में तेजी से बदलाव आ रहा है।
ध्यान रहे कि पहले मोनोफेशियल सोलर पैनल आते थे जो एक तरफ से काम करते थे, अब बाईफेशियल सोलर पैनल बाजार में उपलब्ध हैं जो कि आगे और पीछे दोनों तरफ से चार्ज होकर बिजली बनाते हैं। सोलर पैनल बनाने वाली कंपनियां पैनल पर 25 से 30 साल की गारंटी और वारंटी प्रदान करती हैं।
यहां यह भी ध्यान रखना होगा कि सराकारी सब्सिडी देने में भी कई प्रकार की अड़चने हैं। इस पर जय सिंह कहना है कि प्रधानमंत्री सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना के तहत केवल ऑन ग्रिड और हाइब्रिड सोलर सिस्टम लगाने पर ही सब्सिडी मिलती है, ऑफ ग्रिड सिस्टम लगाने पर कोई सब्सिडी नहीं मिलती।
ऑन ग्रिड सोलर सिस्टम सीधे पॉवर हाउस से कनेक्ट रहता है और इससे बनने वाली बिजली पॉवर हाउस में सप्लाई होती है। उनका कहना है कि ऑन ग्रिड सोलर प्लांट तभी तक काम करता है जब तक बिजली रहती है, पॉवर कट होने के बाद प्लांट भी काम करना बंद कर देता है। जबकि हाइब्रिड सोलर सिस्टम बिजली रहने पर सप्लाई सीधे पॉवर हाउस को करता है और जैसे ही पॉवर कट होता इसमें ऑटोमैटिक इनपुट सिस्टम ऑन हो जाता है और आपके घर पर बिजली सोलर पैनल से मिलने लगती है।
यानी बिजली कटने के बाद भी आपके घर पर पॉवर सप्लाई सीधे सोलर पैनल के जरिए मिलने लगती है। यही कारण है कि इन दिनों बाजार में हाइब्रिड सोलर पैनल सिस्टम की मांग ज्यादा हो गई है।
ध्यान रहे कि 2017 में जहां उत्तर प्रदेश में सौर ऊर्जा से केवल 288 मेगावाट बिजली का उत्पादन होता था, वहीं आज यह आंकड़ा 10 गुना से ज्यादा हो गया है। राज्य सरकार ने 2022 में सौर ऊर्जा नीति लागू की और 2027 तक 22,000 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य तय किया है।
इसके तहत झांसी, ललितपुर, कानपुर नगर, चित्रकूट और जालौन जैसे जिलों में सोलर पार्क बनाए जा रहे हैं। सरकार अब बुंदेलखंड एक्सप्रेस-वे को भी सोलर एक्सप्रेस-वे में बदलने की तैयारी में है। यानी एक्सप्रेस वे के किनारे सोलर ग्रिड लगाए जाएंगे, जिससे सड़क रोशनी और आसपास की ऊर्जा जरूरतें पूरी की जा सकेंगी। हालांकि कुछ देश के कुछ एक्सप्रेस वे पर इस प्रकार का प्रयोग किया गया है, वह अब तक सफल नहीं हुआ है।