गुजरात में कचरे को जलाकर ऊर्जा बनाने की परियोजना को मिलने वाली धनराशि पर विश्व बैंक ने रोक लगा दी है। ध्यान रहे कि विश्व बैंक की शाखा अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (आईएफसी) द्वारा धनराशि दी जानी थी। लेकिन अब इस पर रोक लगा दी गई है।
इसका कारण है कि राज्य के पर्यावरण समूह लगातार इस परियोजना का विरोध करते आ रहे हैं क्योंकि उनका कहना है कि इससे जल व वायु दोनों क्षेत्रों में जमकर प्रदूषण फैलेगा। ध्यान रहे कि आईएफसी गुजरात में अपशिष्ट से ऊर्जा (डब्ल्यूटीई) परियोजनाओं के लिए 40 मिलियन डॉलर का कर्ज देने वाली थी।
लेकिन अब उसने अपने इस निर्णय को बदल दिया है। आईएफसी ने यह निर्णय स्थानीय समुदायों, पर्यावरण समूहों और समाजिक संगठनों के लगातार विरोध के बाद लिया है। अधिकांश नागरिक संगठनों ने इस परियोजना से होने वाले प्रदूषण से सार्वजनिक स्वास्थ्य को भारी खतरा बताया है।
नागरिक समूह एलायंस फॉर इंसिनेरेटर फ्री गुजरात के अनुसार प्रस्तावित ऋण का उद्देश्य राजकोट, वडोदरा, अहमदाबाद और जामनगर में चार डब्ल्यूटीई प्लांट में कुल मिलाकर प्रतिदिन 3,750 टन नगरपालिका ठोस अपशिष्ट को जलाना था।
हालांकि स्थानीय निवासियों और पर्यावरण समूहों के कार्यकर्ताओं को डर था कि ये परियोजना वायु और जल प्रदूषण को और बढ़ाएंगी और इससे स्थायी अपशिष्ट प्रबंधन प्रथाओं को और कमजोर करेगी। ध्यान रहे कि एबेलन क्लीन एनर्जी लिमिटेड (एसीईएल) चार संयत्रों का निर्माण कर रही है।
प्रस्तावित संयंत्रों से होने वाले प्रभावित समुदायों ने आईएफसी और विश्व बैंक के कर्यकारी निदेशकों को पत्र लिख कर अपनी चिंताओं से अवगत कराया था। समुदाओं ने विश्व बैंक के निदेशक मंडल से फंडिंग को रोकने का आह्वान किया था। आाखिरकार आईएफसी ने इस बात की पुष्टि की कि वह निवेश के साथ आगे नहीं बढ़ेगा।
संयंत्रों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे समुदाय के सदस्यों ने आईएफसी के निर्णय का स्वागत किया है लेकिन साथ ही इस बात के लिए भी सतर्क रहने की बात कही है कि इन संयंत्रों में लगातार निगरानी रखनी जरूरी है।
एलायंस फॉर इंसिनेरेटर फ्री गुजरात ने आईएफसी के फैसले को एक महत्वपूर्ण जीत करार दिया लेकिन इस बात पर भी जोर दिया कि प्रभावित समुदायों को राहत पहुंचाने के लिए संयंत्रों को पूरी तरह से बंद करना आवश्यक था।
अहमदाबाद की एक कार्यकर्ताअस्मिता चावड़ा ने कहा, “यह पिछले 10-12 वर्षों में हमारी पहली सफलता है। हम अन्य वित्तीय संस्थानों से भी आईएफसी के निर्णय का अनुसरण करने और भारत में सभी डब्ल्यूटीई परियोजनाओं को पैसा देने पर रोक लगाने का आग्रह करते हैं, क्योंकि यह परियोजनाएं अत्यधिक प्रदूषणकारी और विनाशकारी व इससे सार्वजनिक स्वास्थ्य को एक बड़ा खतरा है।”
ध्यान रहे कि डब्ल्यूटीई परियोजनाओं की वित्तीय व्यवहार्यता पर भी सवाल उठाए गए हैं। कंपनी को कथित तौर पर अच्छा खासा नुकसान भी झेलना पड़ा है, जिसका शुद्ध लाभ 2021 में लगभग 11.1 करोड़ रुपए था, लेकिन 2023 में परियोजना को 19 करोड़ रुपए का घाटा हुआ।
पर्यावरण कार्यकर्ता अब पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन और भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी से एसीईएल को दिए गए अपने कर्जों पर पुनर्विचार करने का भी आग्रह किया है जो क्रमशः 195 करोड़ रुपए और 133 करोड़ रुपए है। राजकोट के एक पर्यावरण कार्यकर्ता शैलेंद्रसिंह आर. जडेजा ने कहा है कि हम डब्ल्यूटीई के हानिकारक प्रभावों के मद्देनजर आईएफसी के निर्णय का स्वागत करते हैं, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि पीएफसी और आईआरईडीए भविष्य में इसी तरह की परियोजनाओं को वित्तीय मदद से बचे।
पर्यावरण कार्यकर्ताओं का तर्क है कि डब्ल्यूटीई संयंत्र की जगह भारत को टिकाऊ अपशिष्ट प्रबंधन समाधानों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जिसमें एकल-उपयोग प्लास्टिक को कम करना, अपशिष्ट पृथक्करण को बढ़ावा देना और विकेन्द्रीकृत अपशिष्ट प्रसंस्करण में निवेश करना शामिल है। जबकि आईएफसी का यह निर्णय पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए लड़ रहे अधिवक्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण जीत है।
हालांकि अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा अपशिष्ट परियोजनाओं को लगातार वित्तीय मदद देने पर चिंता बनी हुई है। कार्यकर्ताओं को अब उम्मीद है कि इसमें शामिल नगर निगम अपनी अपशिष्ट प्रबंधन रणनीतियों पर पुनर्विचार करेगा और अधिक टिकाऊ विकल्प अपनाए जाएंगे।