ऊर्जा

लोकसभा चुनाव 2024: सौर लक्ष्य हासिल करने में क्यों चूक रहा है पीएम मोदी का संसदीय क्षेत्र वाराणसी

पीएम सूर्यघर योजना के तहत 3 वर्षों में वाराणसी के 75 हजार घरों को सोलर से रोशन करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया

Varsha Singh

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी के एक सोलर वेंडर जिले में रूफ टॉप सोलर से जुड़ी संभावनाओं, बिजली बिलिंग में गड़बड़ियों की शिकायतें, बिजली विभाग की लचर कार्यशैली पर लंबी बातचीत कर रहे थे, इस दौरान तकरीबन 50 वर्ष की उम्र के धीरज पांडे उनसे बात करने का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। पसीने से तरबतर उनके चेहरे और बेदम आवाज़ में अप्रैल की धूप का तीखापन महसूस किया जा सकता था। चितईपुर गांव निवासी धीरेंद्र बैट्री बैकअप के साथ सोलर प्लांट लगवाना चाहते थे। 

यह पूछने पर कि ऑन ग्रिड सोलर प्लांट क्यों नहीं लगवाना चाहते, वह चिढ़ते हैं “गांवों में दिन में 6-6 घंटे बिजली कटती है, इससे हमें कोई फायदा नहीं”। 

ग्रिड से जुड़ा सोलर प्लांट बिजली रहने पर ही काम करता है। ऑफ ग्रिड या हाइब्रिड सोलर प्लांट बैट्री से जुड़ा होता है। बिजली कटने पर बैट्री की क्षमता के मुताबिक बिजली दे सकता है।

गर्मी और बिजली कटौती से परेशान सोलर की जानकारी लेने आए धीरज पांडे व अन्य, साथ में सोलर वेंडर महेंद्र कुमार सिंह


बढ़ता तापमान, बढ़ती बिजली की मांग और जलवायु प्रतिबद्धता

पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र के लोग बेहद गर्व से ये दावा करते हैं कि यहां बिजली की कोई दिक्कत नहीं है। कुछ रुककर, ये भी जोड़ते हैं कि जब कोई फॉल्ट आ जाता है, गर्मियों में ओवरलोडिंग होती है, ट्रिपिंग होती है, तो आधे–एक घंटे के लिए बिजली कटती है। गर्मियां शुरू होने और बिजली की मांग बढ़ने के साथ ही दिन में कई-कई बार बिजली गुल होती है। ग्रामीण इलाकों में ये कटौती कई-कई घंटों के लिए होती है। ऐसा इस वर्ष भी हो रहा है।

वाराणसी में अधिकतम तापमान 2021 में 43.6, 2022 में 45.2 और 2023 में 44.5 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच चुका है। 2021 और 2022 में 20 से 25 दिन हीट वेव रिकॉर्ड की गई। पिछले 5 से अधिक वर्षों से जिला सामान्य तापमान से 4 से 6 डिग्री से अधिक तापमान झेल रहा है। इस वर्ष भी अप्रैल महीने में तापमान 40 डिग्री पार कर चुका था। 

वर्ष 2023 में वाराणसी से सटे बलिया जिले में तेज़ लू (severe heat waves) के चलते 54 मौतें हुई थीं और तकरीबन 300 लोग अस्पताल में भर्ती हुए थे। पूरा पूर्वांचल लू की लपेट में था। ऐसे में बिजली कटौती इस स्थिति को असहनीय बना देती है।

पिछले तीन वित्त वर्ष में देश में बिजली की मांग और आपूर्ति में 4 से 8 प्रतिशत तक का अंतर दर्ज किया गया है। वर्ष 2023-24 में बिजली की मांग और आपूर्ति में 4 बिलियन यूनिट का फर्क था। 2022-23 में यह फर्क 8 बिलियन यूनिट का था। यानी जितनी बिजली हम बना रहे हैं, मांग उससे कहीं अधिक है। 

पीएम सूर्यघर योजना के तहत रूफ टॉप सोलर प्लांट का उद्देश्य इसी कमी को भरने की दिशा में योगदान देना है। इस कार्यक्रम में 1,000 बिलियन यूनिट उत्पादन क्षमता के प्लांट स्थापित करना है। इसके लिए वर्ष 2026-27 तक, छत पर सौर ऊर्जा के माध्यम से 30 गीगावॉट सौर क्षमता हासिल करनी है। इससे अगले 25 वर्षों में 720 मिलियन टन  कार्बन डाई ऑक्साइड के समान (CO2eq) उत्सर्जन कम होगा।

पीएम सूर्यघर योजना में 24 घंटे बिजली की उपलब्धता वाले बड़े शहरों पर फोकस किया जा रहा है। उत्तर प्रदेश में शहरी क्षेत्र में 24 घंटे, तहसील मुख्यालयों में 20 घंटे और ग्रामीण फीडर्स में 18 घंटे बिजली आपूर्ति की व्यवस्था है।

सोलर की राह पर

8 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में 31 मार्च 2024 तक 25 हजार घरों में रूफ टॉप सोलर लगवाने का महत्वकांक्षी लक्ष्य दिया था। 

22 जनवरी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के एक करोड़ घरों पर सोलर प्लांट लगाने के लिए पीएम सूर्यघर योजना लॉन्च की। इसके तहत 3 वर्षों में वाराणसी के 75 हजार घरों को सोलर से रोशन करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया।

वर्ष 2023 तक जिले के 500 घरों पर भी प्लांट नहीं लगे थे। पीएम की घोषणा के साथ ही उत्तर प्रदेश नवीकरणीय ऊर्जा प्राधिकरण (यूपीनेडा) ने वाराणसी के लिए तय लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूरी ताकत झोंक दी। 

इसके लिए अन्य विभागों के दस अधिकारियों को वाराणसी में परियोजना प्रभारी का जिम्मा दिया गया। इनमें मुख्य चिकित्साधिकारी, नगर निगम के अधिकारी, कृषि, उद्यान, आबकारी, पीडब्ल्यूडी, वन विभाग, पर्यटन, हैंडलूम, खाद्य सुरक्षा जैसे विभागों के वरिष्ठ अधिकारी शामिल हैं। 

पीएम सूर्यघर-मुफ्त बिजली योजना लॉन्च करने के बाद सभी विभागों को रूफ टॉप सोलर के टारगेट निर्धारित किए गए। प्रधानमंत्री की घोषणा का असर ये था कि शिक्षकों, डॉक्टरों, ड्रग इंस्पेक्टरों, खेती, बगीचे, आबकारी समेत 34 विभागों को 32 दिन के भीतर (आचार संहिता लगने से पहले) सोलर रजिस्ट्रेशन के लिए लगाए गए।

मिसाल के तौर पर जिला विद्यालय निरीक्षक को एक हजार घरों का लक्ष्य दिया गया। यह लक्ष्य हासिल करने के लिए उन्होंने सभी प्रधानाचार्यों, शिक्षक, शिक्षिकाओं और कर्मचारियों को भी अपने घरों पर प्लांट लगवाने के लिए प्रेरित किया।

युद्दस्तर पर चलाए गए इस सोलर अभियान से अन्य विभागों के कामकाज पर जो भी असर पड़ा हो, मार्च तक प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में रजिस्ट्रेशन का आंकड़ा 28 हजार जरूर पहुंच गया। लेकिन ये रजिस्ट्रेशन का आंकड़ा था, प्लांट लगने की संख्या 10 प्रतिशत भी नहीं हुई।

यूपीनेडा लखनऊ दफ्तर से डाउन टू अर्थ को मिले आंकड़ों के मुताबिक 4 अप्रैल तक जिले में 4,187 किलोवाट क्षमता के 859 रूफ़ टॉप सोलर प्लांट लगे थे। 

जबकि वाराणसी यूपीनेडा दफ्तर ने, अप्रैल के दूसरे हफ्ते में, जिले में 2,000 घरों पर औसतन 5 किलोवाट के लिहाज से 10 मेगावाट के सोलर प्लांट स्थापित होने का डाटा साझा किया।

इसके अलावा, वाराणसी की सरकारी इमारतों पर 7848 किलोवाट के 46, कमर्शियल इमारतों पर 14,395 किलोवाट के 36 प्लांट लगे थे। इसके अलावा शहर में 174 किलोवाट की सोलर स्ट्रीट लाइटें लगाई गई हैं।

पीएम सूर्यघर के तहत रजिस्ट्रेशन कराने वाले रविंद्र प्रजापति और शंभुनाथ तिवारी

“हमें सोलर चाहिए”

एक तरफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुफ्त बिजली योजना का प्रचार कर रहे हैं, वहीं सोलर प्लांट लगाने के लिए एकमुश्त पैसों की व्यवस्था सबसे बड़ी अड़चन के तौर पर सामने आ रही है।

एक किलोवाट सोलर प्लांट की अनुमानित लागत 65 हजार है। जिस पर 45 हजार की सब्सिडी केंद्र और राज्य से मिलती है। 2 किलोवाट की अनुमानित लागत 1.30 लाख और सब्सिडी 90 हजार है। 3 किलोवाट की लागत 1.80 लाख और सब्सिडी 1.08 लाख है।

वाराणसी के रोहनिया क्षेत्र के सगहट गांव निवासी और पेशे से इलेक्ट्रिशियन रविंद्र कुमार प्रजापति ने पीएम सूर्यघर योजना में 2 किलोवाट का प्लांट लगाने के लिए रजिस्ट्रेशन करवाया है। वे इसके लिए पैसों की व्यवस्था में जुटे हैं। वह कहते हैं “ हमारे परिवार में 5 सदस्य हैं। गर्मी बहुत है। हम सिर्फ पंखा और बल्ब चलाते हैं। अगर हमारा सोलर प्लांट लग गया तो हम भी कूलर लगा लेंगे”। वह बताते हैं कि उनके क्षेत्र में रोजाना 6-8 घंटे बिजली कटौती होती है। 

रविंद्र की तरह वाराणसी में कई ऐसे लोगों से मुलाकात हुई, जिन्होंने पीएम सूर्यघर के तहत रजिस्ट्रेशन करवाया है लेकिन पैसों की व्यवस्था कर पाना उनके लिए मुश्किल साबित हो रहा है। ऐसे में ये लोग सोलर स्थापित करने वाले वेंडर से उम्मीद करते हैं कि वे सब्सिडी काटकर प्लांट लगा दें।

जिले के एक सोलर वेंडर महेंद्र कुमार सिंह कहते हैं “जिस वर्ग को टारगेट कर योजना लाई गई है, उनके हाथ में पैसा कहां हैं? मार्च में हमने करीब 10 लोगों के घर पर सब्सिडी काटकर प्लांट लगाया है। उनकी सब्सिडी अभी नहीं आई, हमारा पैसा फंसा हुआ है। बिजनेस करना है तो ये सब भी करना पड़ जाता है”।

वहीं सोलर वेंडर प्रिंस पांडे कहते हैं “प्रधानमंत्री की घोषणा के बाद रूफ टॉप सोलर को लेकर जबरदस्त माहौल बन गया लेकिन लोग एक साथ इतने पैसे देने की स्थिति में नहीं हैं”।

उत्तर प्रदेश नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा विकास अभिकरण (यूपीनेडा के निदेशक अनुपम शुक्ला बताते हैं  “हमने बैंक और गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाओं से लोन की व्यवस्था शुरू की है। साथ ही, सोलर प्लांट लगाने के लिए वर्ष 2024-25 में राज्य में तकरीबन 100 करोड़ रुपए सब्सिडी का बजट रखा गया है”।

वाराणसी में बिजली उपभोक्ता और सोलर वेंडर से हुई बातचीत के मुताबिक बैंक से लोन लेकर सोलर प्लांट लगाने में लोग रुचि नहीं दिखा रहे। हर महीने किस्त भरने के तनाव की जगह बिजली बिल भरना उन्हें आसान विकल्प लग रहा है।

वाराणसी में नेट मीटरिंग और बिजली बिल में गड़बड़ी एक बड़ी समस्या है।

तकनीकी अड़चनें

उत्तर प्रदेश में सोलर अभियान की एक और बड़ी दिक्कत अलग-अलग डिविजन से जुड़ी जिम्मेदारी भी है। यूपीनेडा को सोलर का लक्ष्य दिया गया है। जबकि स्मार्ट मीटर की सेटिंग करना या नेट मीटर लगाना बिजली विभाग की ज़िम्मेदारी है। सोलर प्लांट चालू होने पर विद्युत वितरण कंपनी इसे सॉफ्टवेयर से लिंक करती है। 

मीटर रीडिंग से पता चलता है कि रोजाना प्लांट से कितने यूनिट बिजली बनी, कितनी खर्च हुई, कितनी सरप्लस या इम्पोर्ट हुई।

वाराणसी में यूपीनेडा के परियोजना अधिकारी शशि कुमार गुप्ता कहते हैं “सबसे बड़ी चुनौती मीटर और उसके सॉफ्टवेयर की दिक्कत है। इसलिए कुछ लोगों की बिलिंग सही नही आ रही और वे शिकायत करते हैं कि सोलर के चलते परेशानी आ रही है”। 

गुप्ता कहते हैं “अलग-अलग विभाग में कार्य बांटने की जगह, एक ही विभाग को सोलर अभियान की सारी ज़िम्मेदारी संभालनी चाहिए। इससे तकनीकी अड़चनें कम होंगी”। 

एनर्जी ट्रांजिशन में सभी लोगों की स्वच्छ ऊर्जा तक पहुंच सुनिश्चित करनी होगी।

‘गीगावाट’ से ज्यादा जरूरी है ‘आम आदमी’ पर फोकस 

31 मार्च तक वाराणसी में 25 हजार रूफ टॉप सोलर प्लांट लगाने का लक्ष्य हासिल करने के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से लेकर उत्तरप्रदेश शासन और जिला स्तर पर सभी वरिष्ठ अधिकारियों के पूरा ज़ोर लगाने के बावजूद ये लक्ष्य हासिल क्यों नहीं हो सका?

फ़ोरम फॉर द फ्यूचर में एनर्जी सिस्टम ट्रांजिशन के ग्लोबल हेड, ऊर्जा और जलवायु मुद्दों पर कार्यरत कुनाल शर्मा अपने एक लेख में लिखते हैं कि एनर्जी सिस्टम में बदलाव को महज गीगावाट में डिलिवरी के नज़रिये से नहीं देखना होगा। “जब हम अपने एनर्जी लैंडस्केप की कल्पना दोबारा कर रहे हैं, ये जरूरी है कि ये न्यायपूर्ण हो और सभी की इस तक पहुंच हो”। 

“हमें पावर डायनामिक्स को नए तरीके से व्यवस्थित करना होगा। इसके लिए प्रशासनिक ढांचे, बिजनेस मॉडल, इसमें भागीदारी के तरीके को बेहतर बनाने के लिए काम करना होगा। ताकि निर्णय प्रक्रिया में नागरिकों की सशक्त भागीदारी सुनिश्चित हो सके और एनर्जी ट्रांजिशन के फायदे को समान तौर पर सब तक पहुंचाया जा सके”

इस लेख में ज़ोर दिया गया है कि ऊर्जा सिर्फ अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए नहीं है बल्कि सामाज और पर्यावरण सभी की बेहतरी के लिए है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा क्षेत्र के निवासी धीरज और रविंद्र, सोलर के ज़रिये अपने परिवार के लिए ऊर्जा सुरक्षा हासिल करना चाहते हैं।

वहीं, वाराणसी के आलोकनगर कॉलोनी में दुकान चलाने वाले रवीश कुमार चौधरी, कड़ी धूप में, अपने घर की छत पर लगा 3 किलोवाट का सोलर प्लांट दिखाते हैं,“हमारा बिजली का बिल थोड़ा भी कम होगा तो मेरे लिए ये फायदेमंद है। मेरे आसपास के अन्य लोग भी इसमें रुचि ले रहे हैं”। भारत सरकार ने वर्ष 2030 तक कुल ऊर्जा क्षमता का 50% अक्षय ऊर्जा स्रोतों से हासिल करने का लक्ष्य रखा है। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अगली सरकार का कार्यकाल बेहद अहम होगा।

(This story was produced with support from Internews’s Earth Journalism Network.)