ऊर्जा

भारत की कोयला आधारित बिजली उत्पादन क्षमता में 2020 में दर्ज की गई 0.7 गीगावाट की वृद्धि

2020 में जहां देश में 2 गीगावाट क्षमता के कोयला आधारित नए बिजली संयंत्रों को शुरु किया गया था, वहीं कुल 1.3 गीगावाट क्षमता के बिजली संयंत्रों को रिटायर कर दिया गया है

Lalit Maurya

भारत में कोयला आधारित बिजली उत्पादन क्षमता में 2020 के दौरान केवल 0.7 गीगावाट की वृद्धि हुई है, जोकि पर्यावरण के दृष्टिकोण से एक अच्छी खबर है। 2020 में जहां देश में 2 गीगावाट क्षमता के कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को शुरु किया गया था, वहीं कुल 1.3 गीगावाट क्षमता के बिजली संयंत्रों को रिटायर कर दिया गया है।

हालांकि देश में अभी भी 65.9 गीगावाट क्षमता के थर्मल पावर प्लांट विकास के विभिन्न चरणों में हैं। उनमें से 29.3 गीगावाट क्षमता के निर्माण का काम अभी शुरू नहीं हुआ है, जबकि 36.6 क्षमता के थर्मल पावर प्लांट के निर्माण का काम चल रहा है। यह जानकारी ग्लोबल एनर्जी मॉनिटर द्वारा जारी रिपोर्ट बूम एंड बस्ट 2021: ट्रैकिंग द ग्लोबल कोल प्लांट पाइपलाइन में सामने आई है।

देखा जाए तो भारत, चीन के बाद दुनिया का दूसरा ऐसा देश है जहां थर्मल पावर  की क्षमता में इजाफा किया जा रहा है। इसके बावजूद इन दोनों देशों के बीच काफी बड़ा अंतर है, जहां एक तरफ चीन अपनी कोयला आधारित बिजली क्षमता को बढ़ाने में लगा हुआ है, वहीं भारत इसमें कमी करने का प्रयास कर रहा है।

जिसका सबसे बड़ा सबूत भारत की कोयला आधारित बिजली क्षमता में 2020 में हुई शुद्ध वृद्धि है जोकि केवल 0.7 गीगावाट दर्ज की गई है। 2004 के बाद यह पहला मौका है, जब भारत की कोयला आधारित बिजली क्षमता में इतनी कम वृद्धि हुई है। वहीं 2019 में भारत की कोयला आधारित बिजली क्षमता में 7 गीगावाट की वृद्धि हुई थी, जबकि 2010 से 2017 के बीच जब भारत में थर्मल पावर प्लांट का निर्माण अपने चरम पर था तब उसके कोयला आधारित बिजली उत्पादन क्षमता में औसत रूप से 17.3 गीगावाट प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि हो रही थी।

भारत में कोयला आधारित बिजली में आने वाली गिरावट की सबसे बड़ी रिन्यूएबल एनर्जी की घटती लागत है, जिससे कोयला आधारित बिजली की मांग में लगातार कमी आ रही है। यह वजह है कि जहां 2015 में निर्माण के लिए प्रस्तावित कोयला आधारित बिजली क्षमता 238.2 गीगावाट थी वो 2020 में 90 फीसदी की गिरावट के साथ 2020 में 29.3 गीगावाट तक पहुंच गई है। इसी तरह जो परियोजनाएं निर्माण के विभिन्न चरणों में हैं उनकी क्षमता भी लगभग आधी हो गई है। जहां 2015 में 71.4 गीगावाट क्षमता निर्माण के विभिन्न चरणों में थी वो 2020 में घटकर 36.6 गीगावाट पर पहुंच गई है।

जैसे-जैसे देश में अक्षय ऊर्जा की मांग और लागत घट रही है, इसके कारण निजी क्षेत्र कोयला संयंत्रों के निर्माण से अपना हाथ पीछे खींच रहा है। आज सक्रिय रूप से निर्माणाधीन लगभग सभी कोयला संयंत्र सार्वजनिक क्षेत्र से जुड़े हैं, जिनका स्वामित्व या तो राज्य या केंद्र सरकार के पास है। इन निर्माणाधीन 36.6 गीगावाट क्षमता में से करीब 14.1 गीगावाट क्षमता निर्माण के प्रारंभिक चरणों में है। ऐसे में यदि भविष्य में यह परियोजनाएं लाभकारी नहीं रहती हैं तो इनसे जनता के करीब 92,000 करोड़ रुपए का नुकसान होगा।

2020 में लगातार दूसरे वर्ष कोयला आधारित ऊर्जा के उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई है, जो दर्शाता है कि देश में थर्मल पावर का उत्पादन गिर रहा है। हालांकि 2021 में होने वाले तीव्र आर्थिक सुधार स्थिति को बदल सकता है। लेकिन इतना तो स्पष्ट है कि भारत में कोयला आधारित बिजली उत्पादन क्षमता अपने शिखर के करीब है। जिनमें जल्द ही व्यापक रूप से गिरावट आएगी। नेशनल इलेक्ट्रिसिटी प्लान ने भी 48 गीगावाट क्षमता के थर्मल पावर प्लांटस की पहचान की है जिन्हें 2027 तक रिटायर किया जाना है।

वहीं हाल ही में जारी एक विश्लेषण में सुझाव दिया गया है कि पुराने कोयला संयंत्रों को रिटायर करने और उनकी जगह उन उन संयंत्रों को अक्षय ऊर्जा के लिए इस्तेमाल करने से देश को वित्तीय फायदा हो सकता है। साथ ही यह पर्यावरण के दृष्टिकोण से भी लाभदायक होगा।

विश्व की 76 फीसदी नई कोयला आधारित बिजली क्षमता का अकेले चीन ने किया है निर्माण

वैश्विक स्तर पर देखें तो 2020 में 50.3 गीगावाट क्षमता के नए कोयला आधारित बिजली संयंत्रों को शुरु किया गया है। इस 50.3 गीगावाट में से 76 फीसदी (38.4 गीगावाट) क्षमता के विस्तार के लिए अकेला चीन जिम्मेवार है। इसमें 2019 के मुकाबले 34 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। जिसके लिए काफी हद तक कोविड-19 भी जिम्मेवार है जिसके कारण इन परियोजनाओं में देरी हुए है और उन्हें वित्त के लिए संघर्ष करना पड़ा था।

2020 में जहां 37.8 गीगावाट क्षमता के थर्मल पावर प्लांट को रिटायर किया गया है जिसमें सबसे बड़ा योगदान अमेरिका (11.3 गीगावाट) और यूरोपियन यूनियन (10.1 गीगावाट) का है। यदि चीन को अलग कर दिया जाए तो वैश्विक स्तर पर सभी देशों ने कुल 11.9 गीगावाट क्षमता का विस्तार किया है। जिसका मतलब है कि चीन को छोड़कर शेष विश्व में कोयला आधारित बिजली उत्पादन क्षमता में 2020 के दौरान 17.2 गीगावाट की कमी आई है, ऐसा लगातार तीसरे साल हुआ है।

इसी तरह विश्व में जितने कुल नए थर्मल पॉवर प्लांट प्रस्तावित किए गए हैं उनमें से करीब 85 फीसदी और 87.4 गीगावाट क्षमता के थर्मल पावर प्लांट अकेले चीन द्वारा प्रस्तावित किए गए हैं। जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि चीन बड़ी तेजी से अपनी कोयला आधारित बिजली क्षमता में विस्तार कर रहा है। वहीं उसके विपरीत बांग्लादेश, फिलीपींस, वियतनाम और इंडोनेशिया ने संयुक्त रूप से प्रस्तावित कोयला आधारित बिजली क्षमता में 62 गीगावाट तक की कटौती करने की घोषणा की है।