ऊर्जा

1950 से बढ़ती ऊर्जा खपत ने पर्यावरण को भारी नुकसान पहुंचाया

18 वैज्ञानिकों ने एक समूह ने 1950 से लेकर अब तक हुई ऊर्जा खपत का विश्लेषण किया है

Dayanidhi

एक नए अध्ययन में कहा गया है कि ऊर्जा का बढ़ता उपयोग, आर्थिक उत्पादकता और बढ़ती वैश्विक आबादी की गति ने पृथ्वी को एक नए भूवैज्ञानिक युग की ओर धकेल दिया है, जिसे एंथ्रोपोसीन के रूप में जाना जाता है। शोध में पाया गया कि वर्ष 1950 के आसपास पृथ्वी की सतह की परतों में भौतिक, रासायनिक और जैविक परिवर्तन शुरू हुए थे।

सीयू बोल्डर की प्रोफेसर एमेरिटा और इंस्टीट्यूट ऑफ अल्पाइन आर्कटिक रिसर्च (इन्स्टार) के पूर्व निदेशक जया सिवित्स्की की अगुवाई में किया गया अध्ययन नेचर कम्युनिकेशंस अर्थ एंड एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुआ है। पिछले 11,700 वर्षों से पर्यावरण में बदलाव करने वालों को होलोसीन युग के रूप में जाना जाता है। 1950 के बाद से इसमें नाटकीय तरीके से मानव जनित बदलाव हुए। ऐसे व्यापक परिवर्तन से महासागरों, नदियों, झीलों, तटीय इलाकों, वनस्पति, मिट्टी, रसायन और जलवायु में परिवर्तन हुए हैं।

सिवित्स्की ने कहा कि यह पहली बार है कि जब वैज्ञानिकों ने इतने व्यापक पैमाने पर लोगों द्वारा किए गए बदलाव का दस्तावेजीकरण किया है।

11,700 वर्ष पहले की गई ऊर्जा खपत को हम लोग पिछले 70 वर्षों में ही पार कर कर चुके हैं। इसमें बड़े पैमाने पर जीवाश्म ईंधन का उपयोग किया गया है। ऊर्जा खपत में इस भारी वृद्धि ने तब मानव आबादी, औद्योगिक गतिविधि, प्रदूषण, पर्यावरणीय गिरावट और जलवायु परिवर्तन में नाटकीय वृद्धि की है।

यह अध्ययन एंथ्रोपोसीन वर्किंग ग्रुप (एडब्ल्यूजी) द्वारा किए गए काम का परिणाम है। यह वैज्ञानिकों का एक ऐसा समूह है जो पृथ्वी पर भारी मानव प्रभाव की विशेषता वाले आधिकारिक  भूवैज्ञानिक समय के भीतर एंथ्रोपोसीन को एक नया युग बनाने के लिए मामले का विश्लेषण करता है।

एन्थ्रोपोसीन शब्द भूगर्भीय रूप से परिभाषित लंबे समय को निर्दिष्ट करने के लिए उपयोग किया जाता है। वर्तमान में मानव पृथ्वी प्रणालियों पर हावी हो रहा है।

भूवैज्ञानिक समय, एक युग एक आयु से अधिक है, लेकिन एक अवधि से कम है, जिसे लाखों वर्षों में मापा जाता है। होलोसीन युग के भीतर, कई युग हैं- लेकिन एंथ्रोपोसीन को पृथ्वी के ग्रह के इतिहास के भीतर एक अलग युग के रूप में प्रस्तावित किया गया है।

एंथ्रोपोसीन के स्पष्ट निशान

18 अध्ययनकर्ताओं ने मौजूदा शोध को संकलित किया, जो 1950 से अब तक ऊर्जा की खपत और अन्य मानवीय गतिविधियों के कारण ग्रह पर पड़ने वाले 16 प्रमुख प्रभावों को उजागर कर रहे हैं।

1952 से 1980 के बीच मनुष्यों ने वैश्विक परमाणु हथियार परीक्षण को लेकर जमीन के ऊपर 500 से अधिक थर्मोन्यूक्लियर विस्फोट किए, जिसने पूरे ग्रह की सतह पर या उससे अधिक परमाणु ऊर्जा वाले रेडियोन्यूक्लाइड्स-परमाणुओं को धरती पर छोड़ा।

लगभग 1950 के बाद से मनुष्यों ने कृषि के लिए औद्योगिक उत्पादन के माध्यम से ग्रह पर निश्चित नाइट्रोजन की मात्रा को दोगुना कर दिया है। उद्योगों से भारी पैमाने पर क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) वातावरण में रिलीज हुई जिसने ओजोन परत को काफी नुकसान पहुंचाया। जीवाश्म ईंधन से ग्रह पर ग्रीनहाउस गैसों का स्तर बढ़ा। जिसके कारण जलवायु परिवर्तन हुआ और इसने पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाले हजारों सिंथेटिक खनिज जैसे यौगिकों का निर्माण किया और दुनिया भर में लगभग 20 फीसदी नदियों का तलछट (सेडीमेंट ) बांधों, जलाशयों के कारण अब समुद्र तक नहीं पहुंच रहा है।

अध्ययन के अनुसार मानव ने 20वीं शताब्दी के मध्य से हर साल इतने टन प्लास्टिक का उत्पादन किया है कि आज हर जगह माइक्रोप्लास्टिक्स बढ़ता जा रहा है।

सिवित्स्की ने कहा हम लोगों ने सामूहिक रूप से खुद को इस मुसीबत में डाल लिया है, हमें इन पर्यावरण प्रवृत्तियों को बदलने के लिए एक साथ काम करने और खुद को इससे बाहर निकालने की जरूरत है।