सरकार के पास सौर ऊर्जा क्षेत्र के लिए एक अरब रुपये की पूंजी सब्सिडी योजना पर कोई प्रस्ताव विचाराधीन नहीं है। यह जानकारी नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा तथा विद्युत राज्य मंत्री श्रीपद येसो नाइक ने 19 अगस्त, 2025 को राज्यसभा में दी।
सौर ऊर्जा क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए क्या ऐसी सब्सिडी योजना को अंतिम रूप दिया गया है, इस सवाल के जवाब में मंत्री ने कहा कि कोई अलग से पूंजी सब्सिडी योजना प्रस्तावित नहीं है। हालांकि उन्होंने बताया कि मंत्रालय देश में सौर ऊर्जा को प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न योजनाओं और कार्यक्रमों का संचालन कर रहा है, जिनमें केंद्रीय वित्तीय सहायता (सीएफए) का प्रावधान शामिल है।
बीटी कॉटन अपनाने का असर और भारत की कपास आयात स्थिति
भारत में कपास उत्पादन और खपत के बीच असंतुलन लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है। सदन में पूछे गए एक एक सवाल के जवाब में, 19 अगस्त, 2025 को लोकसभा में कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने जानकारी दी कि देश में कपास के आयात में हाल के वर्षों में वृद्धि हुई है। इसका मुख्य कारण घरेलू खपत का उत्पादन से अधिक होना है।
सदन में मंत्री ने स्पष्ट किया कि बीटी कॉटन अपनाने से कपास आयात बढ़ा है, ऐसा कोई ठोस आंकड़ा मंत्रालय के पास उपलब्ध नहीं है। यानी बीटी कॉटन को आयात में वृद्धि का सीधा कारण नहीं माना जा सकता।
ठाकुर ने कहा कपास का आयात और निर्यात एक संतुलन तंत्र की तरह काम करता है। जब घरेलू उत्पादन और मांग में असंतुलन होता है, तब आयात की मदद से वस्त्र उद्योग की जरूरतें पूरी की जाती हैं। ये जरूरतें केवल भारत की स्थिति पर निर्भर नहीं करती, बल्कि वैश्विक बाजार की मांग और शर्तों से भी प्रभावित होती हैं।
पिछले एक दशक में भारत ने औसतन 20 लाख गांठ कपास का आयात किया है, जो कुल उत्पादन का लगभग छह प्रतिशत है। आयातित कपास का बड़ा हिस्सा विशेषीकृत किस्मों का होता है। इनमें प्रमुख रूप से एक्स्ट्रा-लॉन्ग स्टेपल कपास की किस्में शामिल हैं, जैसे गीजा, सुपीमा और ऑस्ट्रेलियाई कपास है, इनका उपयोग मुख्य रूप से मूल्य-वर्धित वस्त्र बनाने में होता है। इसके अलावा, कई बार आयात वैश्विक ब्रांड के साथ बैक-टू-बैक कमिटमेंट्स के तहत भी किया जाता है।
इस तरह साफ है कि बीटी कॉटन अपनाने का भारत की कपास आयात स्थिति से सीधा संबंध साबित नहीं हुआ है। आयात में वृद्धि का मुख्य कारण घरेलू उत्पादन और खपत के बीच का अंतर है, साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार की मांग भी इसमें बड़ी भूमिका निभाती है।
देश में उपजाऊ कृषि भूमि का अधिग्रहण
केंद्र और राज्य सरकारें शहरीकरण, औद्योगिक परियोजनाओं, राष्ट्रीय राजमार्गों तथा अन्य अवसंरचना विकास के लिए भूमि अधिग्रहण करती हैं। हालांकि कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के पास विभिन्न उद्देश्यों के लिए अधिग्रहित कृषि भूमि का कोई केंद्रीकृत आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। यह जानकारी कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री रामनाथ ठाकुर ने 19 अगस्त 2025 को लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में दी।
ठाकुर ने ‘लैंड यूज स्टैटिस्टिक्स-एट ए ग्लांस 2023-24’ नामक रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि सकल बोया गया क्षेत्र (सकल फसल क्षेत्र) में भारी बढ़ोतरी हुई है। यह वर्ष 2013-14 में 201.3 मिलियन हेक्टेयर था, जो बढ़कर 2023-24 में 217.8 मिलियन हेक्टेयर हो गया। वहीं, कुल बोया गया क्षेत्र (नेट एरिया सोन) अपेक्षाकृत स्थिर रहा है और 2023-24 में यह 138.99 मिलियन हेक्टेयर दर्ज किया गया।
मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि कृषि एवं किसान कल्याण विभाग ने अब तक उपजाऊ भूमि के बड़े पैमाने पर गैर-कृषि उपयोग में बदलाव के लंबे समय के प्रभावों पर, चाहे वह राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण रोजगार अथवा कृषि स्थिरता हो, पर कोई व्यापक अध्ययन न तो किया है और न ही किसी अन्य संस्था से करवाया है।
भारत में हाइड्रोजन फ्यूल सेल तकनीक का अपनाना
भारत सरकार नेशनल ग्रीन हाइड्रोजन मिशन (एनजीएचएम) को लागू कर रही है, जिसका उद्देश्य भारत को ग्रीन हाइड्रोजन और उसके डेरिवेटिव्स के उत्पादन, उपयोग और निर्यात का वैश्विक केंद्र बनाना है।
राज्यसभा में 19 अगस्त, 2025 को पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर में नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा तथा विद्युत राज्य मंत्री श्री श्रीपाद येसो नाइक ने बताया कि सड़क परिवहन क्षेत्र में ग्रीन हाइड्रोजन के उपयोग के लिए पांच पायलट परियोजनाएं स्वीकृत की गई हैं।
इन परियोजनाओं में कुल 37 वाहन (बसें और ट्रक) और नौ हाइड्रोजन रिफ्यूलिंग स्टेशन शामिल हैं। इन 37 वाहनों में से नौ बसें और छह ट्रक फ्यूल सेल आधारित तकनीक पर कार्य करते हैं।
नाइक ने कहा कि यह पहल भारत को स्वच्छ ऊर्जा के क्षेत्र में मजबूती प्रदान करेगी और सड़क परिवहन को अधिक टिकाऊ तथा पर्यावरण हितैषी बनाने में सहायक होगी।
भारत में नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को हासिल करने में देरी
भारत ने अपनी स्वच्छ ऊर्जा यात्रा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि तय समय से पांच साल पहले हासिल कर ली है। नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा तथा विद्युत राज्य मंत्री श्री श्रीपद येसो नाइक ने 19 अगस्त, 2025 को राज्यसभा में यह जानकारी दी।
नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों की प्राप्ति में पिछड़ने से जुड़े एक प्रश्न के उत्तर में मंत्री ने बताया कि भारत ने जून 2025 तक ही अपनी कुल स्थापित विद्युत क्षमता का 50 फीसदी हिस्सा गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों से हासिल कर लिया है, जो कि 2030 तक का वैश्विक संकल्प था।
केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) की ऑप्टीमल जनरेशन मैक्स रिपोर्ट (2029-30, संस्करण 2.0) के अनुसार, भारत में 2030 तक 292.56 गीगावाट सौर ऊर्जा और 99.89 गीगावाट पवन ऊर्जा की क्षमता हासिल करने की दिशा में अग्रसर है। वर्तमान में (30 जून, 2025 तक) देश में 116.25 गीगावाट सौर और 51.67 गीगावाट पवन ऊर्जा स्थापित क्षमता उपलब्ध है।
रूफटॉप सौर ऊर्जा पर जानकारी देते हुए मंत्री ने बताया कि ग्रिड कनेक्टेड रूफटॉप सोलर प्रोग्राम द्वितीय-चरण, जिसे 2019 में शुरू किया गया था, अब पीएम सूर्य घर: मुफ्त बिजली योजना (फरवरी 2024 में शुरू) के अंतर्गत समाहित कर दिया गया है। इस योजना का लक्ष्य 2026–27 तक एक करोड़ घरों में रूफटॉप सौर पैनल लगाना है।
यह उपलब्धि दर्शाती है कि भारत नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में निर्धारित समय से पहले कदम बढ़ा रहा है और स्वच्छ ऊर्जा के वैश्विक लक्ष्यों को पूरा करने में अग्रणी भूमिका निभा रहा है।
प्रोसेस्ड फूड्स में वनस्पति वसा का उपयोग
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के पास प्रोसेस्ड फूड्स में वनस्पति वसा,जिसमें हाइड्रोजनीकृत तेल और पाम ऑयल शामिल हैं, इनके उपयोग, मात्रा या पैटर्न से संबंधित कोई आंकड़े उपलब्ध नहीं है। यह जानकारी स्वास्थ्य और परिवार कल्याण राज्य मंत्री श्री प्रतापराव जाधव ने 19 अगस्त, 2025 को राज्यसभा में दी।
वैज्ञानिक अध्ययनों और उपभोक्ता प्रभाव आकलन से जुड़े सवालों के जवाब में मंत्री ने कहा कि अल्ट्रा-प्रोसेस्ड फूड्स आमतौर पर वसा, शर्करा और नमक से भरपूर होते हैं। इनमें पाम ऑयल (जिसमें संतृप्त वसा अधिक होती है) और आंशिक रूप से हाइड्रोजनीकृत तेल (जिसमें ट्रांस फैट पाया जाता है) का उपयोग शेल्फ लाइफ बढ़ाने के लिए किया जाता है।
पर्यवेक्षण आधारित अध्ययनों का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि संतृप्त वसा से भरपूर आहार से मृत्यु दर और हृदय संबंधी रोगों (सीवीडी) का खतरा बढ़ जाता है। वहीं, ट्रांस फैट और भी अधिक हानिकारक है, क्योंकि यह एलडीएल (खराब कोलेस्ट्रॉल) को बढ़ाता है और एचडीएल (अच्छा कोलेस्ट्रॉल) को घटाता है।
नियमन से जुड़े प्रश्न पर मंत्री ने स्पष्ट किया कि फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स (फूड प्रोडक्ट्स स्टैंडर्ड्स एंड फूड एडिटिव्स) रेगुलेशन्स, 2011 में प्रोसेस्ड फूड्स में वनस्पति वसा के उपयोग की कोई विशिष्ट सीमा निर्धारित नहीं की गई है। केवल चॉकलेट इसका अपवाद है, जिसमें अधिकतम पांच फीसदी तक वनस्पति वसा की अनुमति है और यह नियम या कोडेक्स अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप है।
भारत में वायु प्रदूषण और श्वसन रोगों के बीच संबंध
वायु प्रदूषण श्वसन रोगों और उनसे जुड़ी बीमारियों का एक प्रमुख कारण माना जाता है। लेकिन देश में ऐसा कोई ठोस आंकड़े उपलब्ध नहीं है, जिससे केवल वायु प्रदूषण के कारण हुई मृत्यु या बीमारी का सीधा संबंध स्थापित किया जा सके। यह जानकारी स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री श्री प्रतापराव जाधव ने 19 अगस्त, 2025 को राज्यसभा में दी।
मेट्रो शहरों में बढ़ती श्वसन बीमारियों से जुड़े प्रश्नों के उत्तर में मंत्री ने कहा कि वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य पर प्रभाव कई कारणों के सम्मिलित रूप से सामने आते हैं। इनमें व्यक्ति की खानपान की आदतें, व्यवसायिक परिस्थितियां, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, चिकित्सकीय इतिहास, रोग प्रतिरोधक क्षमता और आनुवंशिकता जैसी बातें शामिल हैं।
इस प्रकार, श्वसन रोगों और वायु प्रदूषण का सीधा कारण-परिणाम संबंध स्थापित करना कठिन है, लेकिन यह स्पष्ट है कि वायु प्रदूषण इन रोगों के आसार और गंभीरता को बढ़ाने वाला एक बड़ा कारण है।