अध्ययन के अनुसार, शहरी घरों को कम गर्म करने से वातावरण में कम गर्मी निकलेगी, जिससे वर्तमान जलवायु की तुलना में शहरों का तापमान कम बढ़ेगा। फोटो साभार: आईस्टॉक
ऊर्जा

बदलती जलवायु में शहरों को गर्म व ठंडा करने के लिए ऊर्जा की मांग में होगी भारी बढ़ोतरी

भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जारी रहा तो साल 2099 तक शहरी घरों को गर्म व ठंडा करने की प्रणाली पर 50 फीसदी तक जलवायु परिवर्तन का असर पड़ेगा।

Dayanidhi

एक नए अध्ययन में ऊर्जा को लेकर लगाए गए अनुमानों के अनुसार, यदि भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन जारी रहा तो साल 2099 तक शहरी घरों को गर्म व ठंडा करने (हीटिंग और कूलिंग) प्रणाली पर 50 फीसदी तक जलवायु परिवर्तन का असर पड़ेगा। इसके कारण ऊर्जा की मांग बहुत अधिक बढ़ जाएगी साथ ही जलवायु में और अधिक बदलाव होगा।

यह अध्ययन मुख्य रूप से ऊर्जा उपयोग, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन और वायुमंडल के बीच जटिल क्रियाओं से जुड़ी प्रक्रियाओं पर निर्भर हैं। इलिनोइस विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं की अगुवाई में किए गए शोध में शहरी बुनियादी ढांचे और वायुमंडल के बीच अक्सर अनदेखी की जाने वाली आंतरिक रूप से चलने वाली क्रियाओं पर गौर किया गया है, जो स्थानीय स्तर पर जलवायु में छोटा सा प्रभाव डालकर, दुनिया भर में जलवायु में बदलाव कर सकते हैं।

इस नए अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया है कि आवासीय और व्यावसायिक रूप से गर्म व ठंडा करने के प्रयासों से छोटे पैमाने पर शहरों में बर्बाद होने वाली गर्मी स्थानीय जलवायु और ऊर्जा उपयोग पर बड़ा प्रभाव डाल सकती है। इस अध्ययन के निष्कर्ष नेचर क्लाइमेट चेंज नामक पत्रिका में प्रकाशित किए गए हैं।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा गर्म व ठंडा करने की प्रणाली से उत्पन्न होने वाली गर्मी शहरी इलाकों में उत्पन्न कुल गर्मी का एक बड़ा हिस्सा है। ये प्रणाली बहुत अधिक गर्मी उत्पन्न करते हैं जो शहरों के भीतर वायुमंडल में मिल जाती है, जिससे वे गर्म हो जाते हैं और घरों के अंदर या इनडोर कूलिंग सिस्टम की मांग बढ़ जाती है, जो स्थानीय जलवायु को और अधिक गर्म कर देती है।

यह उस प्रक्रिया का हिस्सा है जिसे शोधकर्ता इमारतों को ठंडा करने की प्रणाली के उपयोग और स्थानीय शहरी वातावरण के गर्म होने के बीच की प्रतिक्रिया लूप कहते हैं। शोधकर्ता इस बात पर भी गौर करते हैं कि जलवायु परिवर्तन के तहत बढ़ते तापमान से ठंडे महीनों के दौरान ऊर्जा की मांग में कमी आ सकती है।

अध्ययन के अनुसार, शहरी घरों को कम गर्म करने से वातावरण में कम गर्मी निकलेगी, जिससे वर्तमान जलवायु की तुलना में शहरों का तापमान कम बढ़ेगा।

शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, यह प्रक्रिया एक खराब प्रतिक्रिया लूप बनाती है जो गर्म करने की मांग को कम कर सकती है। लेकिन यह किसी भी तरह से अच्छे प्रतिक्रिया लूप प्रभाव को खत्म नहीं करता है। इसके बजाय, मॉडल सुझाव देता है कि यह मौसमी आधार पर बिजली की मांग को और बढ़ा सकता है, जो अपनी तरह की समस्याओं को जन्म देता है जिसके लिए सावधानीपूर्वक योजना बनाने की आवश्यकता है।

जलवायु परिवर्तन की बड़ी तस्वीर में इन अनदेखी समस्याओं को शामिल करने के लिए, टीम ने एक हाइब्रिड मॉडलिंग ढांचे का उपयोग किया। यह शहरी जलवायु परिवर्तन और अनिश्चितताओं के तहत दुनिया भर में शहरी घरों को गर्म या ठंडा करने के लिए ऊर्जा की मांग का पता लगाने के लिए तेज पृथ्वी प्रणाली मॉडलिंग और मशीन लर्निंग को जोड़ती है।

जिसमें इस कारण उत्पन्न स्थानीय और अन्य चुनौतियां शामिल हैं कि शहर आय, बुनियादी ढांचे, जनसंख्या घनत्व, तकनीक और तापमान को सहने में किस तरह अलग-अलग हैं।

अध्ययन के मुताबिक, अच्छा और खराब प्रतिक्रिया लूप के प्रभावों को एक साथ जोड़ने वाले ऊर्जा अनुमानों की जरूरत है और यह अधिक व्यापक जलवायु प्रभाव आकलन, विज्ञान-आधारित नीति निर्माण और जलवायु में बदलाव करने वाली ऊर्जा नियोजन के लिए आधार तैयार करेगा।

शोधकर्ताओं ने शोध के हवाले से कहा कि कैसे नमी, निर्माण सामग्री और भविष्य के जलवायु में बदलाव को कम करने के प्रयासों जैसे अनिश्चितताओं के बावजूद ऊर्जा की मांग के अनुमानों को बेहतर बनाया जा सकता है।