ऊर्जा

हाइड्रो पावर प्लांट से भी होता है पर्यावरण को नुकसान, एक अध्ययन में खुलासा

अब तक थर्मल की बजाय हाइड्रो (जल विद्युत) पावर को इसलिए प्रमुखता दी जाती है, क्योंकि इससे पर्यावरण को नुकसान नहीं होता, लेकिन नए अध्ययन में इसे खारिज कर दिया गया है

Dayanidhi

जलविद्युत (हाइड्रो पावर) को मोटे तौर पर जीवाश्म ईंधन (फॉसिल फ्यूल्स) से उत्पन्न बिजली की तुलना में पर्यावरण के लिए अधिक अनुकूल माना जाता है, और कई मामलों में यह सच भी है। लेकिन एक नए अध्ययन में कहा गया है कि जलविद्युत परियोजनाओं का जलवायु पर प्रभाव पूरी दुनिया में अलग-अलग होता है। कुछ जलविद्युत परियोजनाओं में जीवाश्म ईंधन को जलाने की तुलना में अधिक ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन होता है। शोधकर्ताओं ने एसीएस की पत्रिका एनवायरनमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में अपने परिणामों के तहत यह जानकारी दी है। यह अध्ययन 104 देशों के 1,473 जलविद्युत परियोजनाओं पर किया गया।  

इस बात की पुष्टि बायोसाइंस में काफी समय पहले प्रकाशित एक अध्ययन ने भी की है, इसमें कहा गया है कि, जलविद्युत बांध पहले के अनुमान से कहीं अधिक ग्लोबल वार्मिंग के लिए दोषी है। अध्ययन में दावा किया गया है कि 100 साल पुराने बांध, धान के खेतों और बायोमास जलाने से भी अधिक मीथेन का उत्सर्जन करते है।

जलविद्युत बांध मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कैसे करते हैं? इस बारे में बताया गया है कि जैविक सामग्री, वनस्पति, तलछट और मिट्टी के नदियों के पानी के साथ बहकर बांध में पहुंचने के दौरान विघटन होता है जिससे मीथेन और कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है।

अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा संघ के अनुसार दुनिया भर में अभी अक्षय स्रोतों से उत्पन्न बिजली का दो-तिहाई हिस्सा जलविद्युत (हाइड्रोपावर) से होता है, जिसमें हजारों नई जलविद्युत परियोजनाएं या तो चल रही हैं या दुनिया भर में निर्माणाधीन हैं।

जलविद्युत को पर्यावरण के अनुकूल माना जाता है तथा इसका जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रूप में उपयोग होता है। आमतौर पर यह सोचा जाता है कि पनबिजली संयंत्रों से ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन पवन-ऊर्जा उत्पादन करने के बराबर होती है। हालांकि, हाइड्रोपावर के जलवायु प्रभाव के अधिकांश अध्ययनों में कुछ कारकों की अनदेखी की गई है, जैसे कि कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में परिवर्तन जो तब होता है, जब जलविद्युत संयंत्रों के लिए बांध बनाने हेतु प्राकृतिक धारा, पारिस्थितिकी में हस्तक्षेप किया जाता है। साथ ही इसके कारण मीथेन उत्सर्जन से भविष्य में तापमन बढ़ने की आशंका रहती है। 

अमेरिकन केमिकल सोसायटी के शोधकर्ताओं ने 104 देशों के 1,473 पनबिजली के डेटासेट से कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन उत्सर्जन होने के समय जलवायु प्रभावों का विश्लेषण किया। उन्होंने बांध बनाने के कारण होने वाले उत्सर्जन का भी अनुमान लगाया। टीम ने पाया कि जलविद्युत से उत्सर्जन, परमाणु, सौर और पवन ऊर्जा प्रतिष्ठानों के उत्सर्जन की तुलना में बहुत अधिक था, जो कि जलवायु के लिए यह अच्छा नहीं है। लेकिन कोयले और प्राकृतिक गैस के उपयोग से बिजली बनाने से होने वाले उत्सर्जन की तुलना में जलविद्युत जलवायु के लिए बेहतर है।

हालांकि, कुछ जलविद्युत परियोजनाओं का उत्सर्जन कोयला और प्राकृतिक गैस संयंत्रों की तुलना में बहुत अधिक था जोकि जलवायु के लिए ठीक नहीं है। ऑक्सो कहते हैं कि फ़ॉसिल-जनित बिजली के बजाय जलविद्युत का उपयोग लंबे समय के लिए जलवायु के परिप्रेक्ष्य में फायदे मंद हो सकते है।

विश्लेषण में यह भी बताया गया है कि क्षेत्र के हिसाब से उत्सर्जन अलग-अलग था: पश्चिमी यूरोप में नई जल विद्युत परियोजनाओं का जलवायु पर पड़ने वाले प्रभावों का अनुमान लगभग न के बराबर था, जबकि पश्चिमी अफ्रीका के उन सभी जलवायु क्षेत्रों में कोयले और प्राकृतिक गैस संयंत्रों की तुलना में विद्युत परियोजनाओं का जलवायु पर अधिक प्रभाव था। शोधकर्ताओं ने कहा कि जलविद्युत संयंत्रों के योजना बनाने और निर्माण से पहले इन परिणामों पर विचार किया जाना चाहिए।