दुनिया भर में फ्लोटिंग (तैरते) सोलर परियोजनाओं के पक्षियों और अन्य वन्यजीवों पर पड़ने वाले अच्छे या बुरे प्रभावों के बारे में बहुत कम जानकारी है। अब कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, डेविस के शोधकर्ताओं के द्वारा किए गए शोध में अक्षय ऊर्जा और जैव विविधता के लक्ष्यों को बेहतर ढंग से हासिल करने के लिए अहम सुझाव दिए गए हैं।
पक्षियों को कई खतरों का सामना करना पड़ता है जिनमें आवास की कमी, जलवायु परिवर्तन से लेकर प्रदूषण और एवियन इन्फ्लूएंजा तक कई कारण शामिल हैं।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि यह समझना बहुत जरूरी है कि जलपक्षी फ्लोटिंग या तैरते सोलर पर कैसे प्रतिक्रिया देंगे और क्या नई फ्लोटिंग सोलर सुविधाओं में संरक्षण रियायतों की संभावना है। स्वस्थ वातावरण को बढ़ावा देते हुए स्वच्छ ऊर्जा को आगे बढ़ाना जरूरी है।
इस संतुलन को हासिल करने के लिए इस बात का गहन अध्ययन कर समझना होगा कि वन्यजीव फ्लोटिंग सोलर पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं ताकि बुरे प्रभावों से बचा जा सके और संभावित पारिस्थितिकी लाभ हासिल किया जा सकें।
शोध में पक्षियों द्वारा फ्लोटिंग फोटोवोल्टिक प्रणाली के साथ तालमेल बैठाने के लिए विभिन्न तरीकों की जांच-पड़ताल की गई। ऐसी प्रणालियां पक्षियों को कैसे प्रभावित कर सकती हैं। साथ ही शोधकर्ताओं ने एफपीवी-वॉटरबर्ड इंटरैक्शन पर भविष्य के शोध में निम्नलिखित की जांच-पड़ताल के सुझाव दिए:
जलपक्षी फ्लोटिंग पी.वी. इंफ्रास्ट्रक्चर के प्रत्येक हिस्से के साथ किस प्रकार से संपर्क करते हैं।
जलपक्षी और फ्लोटिंग सोलर परियोजना का एक दूसरे पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभाव हो सकता है।
पक्षी संरक्षण की रणनीतियां जगह, क्षेत्र या मौसम के अनुसार कैसे अलग-अलग हो सकती हैं।
फ्लोटिंग सोलर वाली जगहों पर जलपक्षियों की सबसे अच्छी तरह से निगरानी कैसे की जा सकती है।
फ्लोटिंग सोलर इंफ्रास्ट्रक्चर से प्रदूषकों के निकलने या रिसने की आशंका और खतरों को कम करने के लिए क्या किया जा सकता है।
नेचर वाटर नामक पत्रिका में प्रकाशित शोध पत्र में शोधकर्ताओं के हवाले से कहा गया है कि फ्लोटिंग पीवी के साथ पक्षियों के व्यवहार व विविधता का दस्तावेजीकरण किया जा रहा है। इससे पता चला कि इनके बीच कुछ प्रभाव शुरू हो चुके है, खासकर वैश्विक स्तर पर जलपक्षियों की संख्या में भारी गिरावट को देखते हुए। मनुष्य भी फ्लोटिंग पीवी पर जलपक्षियों के प्रति अपने तर्क रख रहे हैं।
शोधकर्ताओं ने इन खतरों और इनसे निपटने के रास्तों की पहचान करने के लिए पारिस्थितिकी और ऊर्जा प्रणाली विज्ञान में विशेषज्ञता का फायदा उठाया ताकि जलपक्षी और फ्लोटिंग पीवी एक साथ रह सकें।
क्या होनी चाहिए विकास की जरूरी सीमा?
शोध में कहा गया है कि वाइल्ड एनर्जी सेंटर इनमें से कुछ सवालों के जवाब देने के लिए शोध कर रहा है। क्षेत्र में शोध के दौरान शोधकर्ताओं ने भोर से पहले तैरते हुए सौर ढांचे पर आराम करते हुए काले मुकुट वाले रात के बगुले, अनुकूल जगह की तलाश में डबल-ब्रेस्टेड कॉर्मोरेंट को पैनलों के नीचे घोंसला बनाते हुए देखा गया।
शोधकर्ताओं ने गौर किया की जबकि कई प्रकार के वन्यजीव कृत्रिम जल निकायों का उपयोग करते हैं, जब जलपक्षियों पर गौर किया गया तो वे तैरते हुए सौर पैनलों के ऊपर और नीचे आराम से रह रहे थे।
अब तक वैज्ञानिकों ने फ्लोटिंग सोलर के साथ जलपक्षियों के ज्यादातर अच्छे संपर्क और लोगों के लिए अतिरिक्त फायदे देखे हैं। उदाहरण के लिए, जब कोई सिंचाई वाले तालाब पर फ्लोटिंग सोलर स्थापित करता है, तो वह वाष्पीकरण को कम करके पानी बचा सकता है, साथ ही खेती की जमीन पर कब्जा किए बिना स्वच्छ ऊर्जा का उत्पादन कर सकता है।
शोध में कहा गया है कि जलीय वातावरण में एक बड़ी, अपेक्षाकृत नई तकनीक को आजमाने के खतरों और फायदों को पूरी तरह से समझने के लिए और अधिक शोध किए जाने की जरूरत है।
शोध पत्र में शोधकर्ता के हवाले से कहा गया है कि कुछ ऐसी चीजें हैं जिनके बारे में हम चाहते हैं कि हमें अन्य प्रकार की अक्षय ऊर्जा विकसित होने से पहले उनकी जानकारी हो। जबकि हम अक्षय ऊर्जा विकास की इस महत्वपूर्ण दहलीज पर हैं, हम उस डिजाइन पर अधिक विचार करना चाहते हैं जो आगे बढ़ने पर लोगों के साथ-साथ पक्षियों और अन्य वन्यजीवों को फायदा पहुंचा सके।