साल 2022 तक 1.70 लाख मेगावाट अक्षय ऊर्जा का लक्ष्य हासिल करने के लिए सरकार ने एक ओर कदम उठाया है। सरकार ने पवन ऊर्जा परियोजनाओं के सामने आ रही दिक्कतों को दूर करने के लिए निविदा प्रक्रिया में संशोधन किया है।
ग्रिड से जुड़ी पवन ऊर्जा परियोजनाओं से बिजली की खरीद के लिए शुल्क आधारित प्रतिस्पर्धी निविदा प्रक्रिया के लिए दिशा-निर्देश 8 दिसंबर, 2017 को अधिसूचित किए गए थे, लेकिन अब इसमें संशोधन किए गए हैं।
पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण की समय सीमा सात महीने से बढ़ाकर निर्धारित कमीशनिंग की तारीख यानी 18 महीने तक कर दी गई है। सरकार का दावा है कि यह उन राज्यों में पवन ऊर्जा परियोजना डेवलपर्स को मदद करेगा, जहां भूमि अधिग्रहण में अधिक समय लगता है।
इसके अलावा पवन ऊर्जा परियोजना की घोषित क्षमता उपयोग घटक (सीयूएफ) के संशोधन की समीक्षा की अवधि को बढ़ाकर तीन साल कर दिया गया है। घोषित सीयूएफ को अब वाणिज्यिक संचालन की तारीख के तीन साल के भीतर एक बार संशोधित करने की अनुमति है, जिसे पहले केवल एक वर्ष के भीतर अनुमति दी गई थी।
सरकार की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि संशोधन का उद्देश्य न केवल भूमि अधिग्रहण और सीयूएफ से संबंधित निवेश जोखिमों को कम करना है, बल्कि परियोजना की जल्द शुरूआत के लिए प्रोत्साहन प्रदान करना भी है। इसलिए दंड प्रावधानों की शर्तों को हटा दिया गया है और दंड की दर तय कर दी गई है। पीएसए या पीएसए पर हस्ताक्षर करने की तारीख से, परियोजना के कार्यान्वयन की समय सीमा शुरू करने तक, जो भी बाद में हो, पवन ऊर्जा डेवलपर्स के जोखिम को कम कर दिया गया है।
गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने 2022 तक 1 लाख 70 हजार मेगावाट बिजली अक्षय ऊर्जा से हासिल करने का लक्ष्य रखा है। इसमें सबसे अधिक 1 लाख मेगावाट सौर ऊर्जा से और 60 हजार मेगावाट पवन ऊर्जा से हासिल करने का लक्ष्य है। अक्षय ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक अब तक 36368 मेगावाट क्षमता के पवन ऊर्जा परियोजना स्थापित की जा चुकी है। 2019-20 का लक्ष्य 3000 मेगावाट का रखा गया था, लेकिन अप्रैल से जून 2019 के बीच 742.51 मेगावाट क्षमता के संयंत्र स्थापित किए जा सके हैं। इससे जुड़े उद्योगों की शिकायत रही है कि पवन ऊर्जा परियोजनाओं को शुरू करने की सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि भूमि अधिग्रहण में काफी समय लग जाता है, लेकिन अब सरकार ने इस दिशा में अहम कदम उठाया है।