ऊर्जा

कोरोनावायरस के चलते 6 फीसदी तक घट जाएगी ऊर्जा की मांग

आईईए के अनुसार साल के अंत तक ऊर्जा की मांग करीब 6 फीसदी तक कम हो जाएगी| साथ ही वैश्विक उत्सर्जन में भी करीब 8 फीसदी की कमी आने का अंदेशा है

Lalit Maurya

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी(आईईए) के अनुसार साल के अंत तक दुनिया भर में ऊर्जा की मांग करीब 6 फीसदी तक कम हो जाएगी| जोकि भारत की कुल ऊर्जा मांग के बराबर है| गौरतलब है कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे ज्यादा ऊर्जा उपभोग करने वाला देश है| ऐसे में यह कमी बहुत मायने रखती है| एजेंसी के मुताबिक यदि एक और महीना लॉकडाउन रहता है तो दुनिया की वार्षिक ऊर्जा मांग में लगभग 1.5 फीसदी की कमी आ जाएगी| आईईए का अनुमान है कि ऊर्जा की मांग में यह कमी, 2008 में आई वैश्विक मंदी के मुकाबले 7 गुना ज्यादा है।

रिपोर्ट के अनुसार भारत में यदि सभी राज्यों में पूर्णतः तालाबंदी कर दी जाये, तो ऊर्जा की मांग में करीब 30 फीसदी की गिरावट आने की सम्भावना है| जिसका मतलब होगा कि प्रति सप्ताह लॉकडाउन बढ़ाए जाने से ऊर्जा की सालाना मांग में करीब 0.6 फीसदी की कमी आएगी। अमेरिका में भी इसके चलते ऊर्जा की मांग में 9 फीसदी की कमी आएगी| जबकि यूरोपियन यूनियन में भी 11 फीसदी की कमी आने की सम्भावना है। यह जानकारी इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी (आईईए) द्वारा जारी एक नयी रिपोर्ट में सामने आयी है| जिसमें ऊर्जा की इस घटती मांग के लिए कोरोनावायरस और उसके कारण हुए लॉकडाउन को बड़ी वजह माना है|

दुनिया में बढ़ेगी रिन्यूएबल एनर्जी की मांग

इंटरनेशनल एनर्जी एजेंसी के अनुसार 70 सालों में यह पहला मौका है जब ऊर्जा के क्षेत्र में इतना बड़ा फेरबदल हुआ है| रिपोर्ट के अनुसार ऊर्जा की गिरती मांग के बावजूद रिन्यूएबल एनर्जी की मांग में करीब 5 फीसदी का इजाफा हो सकता है| इसके साथ ही अनुमान है कि साल के अंत तक एनर्जी सप्लाई में रिन्यूएबल की हिस्सेदारी 30 फीसदी तक पहुंच जाएगी| जोकि स्पष्ट तौर से उस और इशारा है कि ऊर्जा का आने वाला कल क्या होगा| इसलिए ऊर्जा के सतत स्रोतों पर ज्यादा ध्यान दिया जाना चाहिए|

फॉसिल फ्यूल पर घट जाएगी निर्भरता

रिपोर्ट के अनुसार फॉसिल फ्यूल में भी भारी कमी आने का अंदेशा है| अनुमान है कि 2019 की तुलना में इस वर्ष कोयले की मांग करीब 7.7 फीसदी तक गिर जाएगी| जोकि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद से सबसे बड़ी गिरावट है| वहीँ पिछले एक दशक से लगातार बढ़ रही गैस की मांग भी इस साल करीब 5 फीसदी तक कम हो जाएगी| जोकि पिछली सदी के उत्तरार्ध से यह सबसे बड़ी गिरावट होगी। वहीँ दुनिया भर में लॉकडाउन के चलते जिस तरह पहियों की गति थम गयी है उसके चलते तेल की कीमतें लगातार कम हो रही है| लॉकडाउन के चलते तेल की मांग में भी करीब 9.1 फीसदी की कमी आ जाएगी| जोकि पिछले 25 सालों तेल की मांग में आई सबसे बड़ी गिरावट है|

वैश्विक कार्बन उत्सर्जन में भी आ जाएगी 8 फीसदी की कमी

एजेंसी का अनुमान है कि जिस तरह से जीवाश्म ईंधन की मांग घट रही है, उसके चलते वैश्विक उत्सर्जन में भी कमी आ जाएगी| अनुमान है कि 2019 की तुलना में इस साल वैश्विक उत्सर्जन में करीब 8 फीसदी की गिरावट आ सकती है| जोकि करीब 2.6 गीगाटन के बराबर है| यह वैश्विक मंदी के समय आयी कमी से भी 6 गुना ज्यादा है|

जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से है महत्वपूर्ण

उत्सर्जन में आ रही यह गिरावट जलवायु परिवर्तन के दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है| संयुक्त राष्ट्र का मानना है यदि 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य को हासिल करना है तो हर साल वैश्विक उत्सर्जन में 7 फीसदी की कटौती जरुरी है| हालांकि कोरोना वायरस से जो हानि पहुंची है, उसकी तुलना में यह फायदा बहुत छोटा है| पर इसने हमें एक नयी राह सुझाई है| हमें एक नया मौका मिला है कि हम फिर से एक नयी शुरुवात कर सकें|