ऊर्जा

आंध्र प्रदेश में पुराने कोयला बिजली संयंत्रों से मुक्ति, लोगों को पहुंचाएगी 76 हजार करोड़ का फायदा

यह बचत न केवल राज्य की आय में वृद्धि करेगी, साथ ही यह कृषि के लिए मुफ्त बिजली, सब्सिडी, वाटर पंप और किसानों को नकद हस्तांतरण करने में भी मददगार हो सकती है

Lalit Maurya

आंध्र प्रदेश सरकार पुराने कोयला बिजली संयंत्रों को रिटायर करके आने वाले दशक में 76,000 करोड़ रुपए से ज्यादा की बचत कर सकती है। इसका फायदा पर्यावरण के साथ-साथ आम लोगों तक भी पहुंचेगा। यह जानकारी थिंक टैंक क्लाइमेट रिस्क होराइजन्स द्वारा प्रकाशित नई रिपोर्ट "रिटायरिंग टू सेव" में सामने आई है।

रिपोर्ट के मुताबिक ऊर्जा क्षेत्र में योजनाबद्ध तरीके से किया गया यह बदलाव न केवल राज्य में बिजली की बढ़ती मांग को पूरा करने में मदद करेगा। साथ ही पर्यावरण और अर्थव्यवस्था के लिए भी फायदेमंद होगा।

गौरतलब है कि आंध्रप्रदेश में बिजली वितरण कंपनियां पहले ही भारी वित्तीय घाटे से जूझ रहीं हैं। यदि मई 2022 तक के आंकड़ों को देखें तो इन बिजली कंपनियों को हुआ घाटा बढ़कर 30,000 करोड़ रुपए पर पहुंच गया था। ऐसे में यह विश्लेषण राज्य के ऊर्जा क्षेत्र में सकारात्मक बदलाव के लिए रोडमैप प्रस्तुत करता है।

जानकारी मिली है कि महंगे पड़ रहे इन कोयला संयंत्रों को अक्षय ऊर्जा में बदलने से जहां उपभोक्ताओं को इसका फायदा पहुंचेगा और उन्हें सस्ती बिजली मिल पाएगी। वहीं इससे बिजली वितरण कंपनियों के वित्तीय प्रदर्शन में भी सुधार आएगा। साथ ही साथ आंध्रप्रदेश को अपने अक्षय ऊर्जा लक्ष्यों को भी हासिल करने में मदद मिलेगी।

जलवायु लक्ष्यों और सरकारी नीतियों के भी अनुरूप है यह बदलाव

ऊर्जा मंत्रालय द्वारा हाल ही में दिए आदेश को देखते हुए भी यह बदलाव काफी महत्वपूर्ण हैं। गौरतलब है कि इस आदेश के तहत सरकार ने सभी नए कोयला बिजली संयंत्रों को अपनी क्षमता के 40 फीसदी के बराबर अक्षय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने का निर्देश दिया था।

इस रिपोर्ट में तीन प्रमुख कारकों पर प्रकाश डाला है जो आंध्र प्रदेश को ऊर्जा परिवर्तन का नेतृत्व करने के लिए एक आदर्श उम्मीदवार बनाते हैं। इनमें पहला राज्य में सरप्लस होती कोयला बिजली क्षमता, दूसरा बैटरी स्टोरेज की गिरती लागत के साथ सस्ती अक्षय ऊर्जा और तीसरा 2025 तक अनिवार्य रूप से कोयला बिजली संयंत्रों में बदलाव है।

इस बारे में क्लाइमेट रिस्क होराइजन्स के सीईओ आशीष फर्नांडीस का कहना है कि अपने प्रचुर अक्षय ऊर्जा संसाधनों और नीतिओं के साथ ध्यान से बनाई योजनाओं और निवेश की मदद से आंध्र प्रदेश पुराने कोयला संयंत्रों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त कर सकता है। देखा जाए तो इसके चलते बिजली कंपनियों और राज्यों को लम्बे समय तक वित्तीय लाभ प्राप्त होंगें।

अनुमान है कि कडप्पा और विजयवाड़ा में 1,680 मेगावाट के कुल आठ कोयला ऊर्जा संयंत्रों को रिटायर करने से पांच वर्षों में 9,500 करोड़ रुपए की बचत हो सकती है। इनमें रायलसीमा थर्मल पावर स्टेशन और डॉक्टर नरला टाटा राव थर्मल पावर स्टेशन शामिल हैं।

रिपोर्ट का कहना है कि महंगे कोयला बिजली संयंत्रों को अक्षय ऊर्जा में बदलने से उपभोक्ताओं को भी अच्छी-खासी बचत होगी। अनुमान है कि जिन कोयला संयंत्रों से प्राप्त होने वाली बिजली की कीमत चार रुपए प्रति किलोवाट घंटा या उससे ज्यादा है, यदि उसे सस्ती अक्षय ऊर्जा से बदल दिया जाए तो इससे दस वर्षों में करीब 57,000 करोड़ रुपए की बचत होगी।

इस बारे में रिपोर्ट से जुड़े शोधकर्ता विष्णु तेजा के अनुसार पिछले दशक बिजली क्षमता में हुई महत्वपूर्ण वृद्धि के चलते राज्य में अब पर्याप्त बिजली और उत्पादन क्षमता है। यही वजह है कि राज्य में कोयला संयंत्र 60 फीसदी से भी कम क्षमता का उपयोग कर रहे हैं। ऐसे में यदि पुरानी इकाइयों को रिटायर कर भी दिया जाए तो इससे बिजली आपूर्ति प्रभावित नहीं होगी।

ऐसे समय में जब राज्य का बजट दबाव में है, तब इस सुनियोजित ऊर्जा परिवर्तन से जो बचत होगी, उसका  उपयोग इन बजटीय जरूरतों को पूरा करने के लिए किया जा सकता है।

देखा जाए तो यह बचत न केवल राज्य की आय में वृद्धि करेगी साथ ही कृषि के लिए मुफ्त बिजली,  मुफ्त वाटर पंप और किसानों को नकद हस्तांतरण करने में मददगार हो सकती है। इतना ही नहीं इसकी मदद से छतों पर करीब दो करोड़ सोलर इंस्टालेशन करने में मदद भी मिलेगी।