ऊर्जा

रिहंद थर्मल प्लांट से राख हटाने के फैसले का सीएसई ने किया स्वागत

थर्मल प्लांट से निकलने वाली राख का उचित प्रबंधन न होना एक बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है

DTE Staff

नेशनल थर्मल पावर कॉरपोरेशन (एनटीपीसी) लिमिटेड ने उत्तर प्रदेश के सोनभद्र में अपने 3,000 मेगावाट के रिहंद सुपर थर्मल पावर स्टेशन से फ्लाई ऐश (राख) स्थानांतरित करने का निर्णय लिया है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने एनटीपीसी के इस कदम का स्वागत करते हुए सही समय पर लिया गया निर्णय बताया है। 

सीएसई के अनुसार, एनटीपीसी के इस कदम से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर स्थित सिंगरौली-सोनभद्र क्षेत्र में जमा हो रहे फ्लाई एश का मुद्दा हल हो जाएगा।  

एनटीपीसी ने 16 अगस्त, 2020 को यूपी के अमेठी जिले में एनटीपीसी लिमिटेड के एसीसी लिमिटेड सीमेंट प्लांट के लिए रेलवे वैगनों में फ्लाई ऐश के हस्तांतरण को हरी झंडी दिखाई। कंपनी के बयान के अनुसार, इसने पूर्व मध्य रेलवे से संपर्क किया था और कहा था कि रेलवे फ्लाई ऐश को तिरपाल से कवर करके सीमेंट प्लांट तक पहुंचाने में सहयोग करे।

सिंगरौली-सोनभद्र क्षेत्र में कम से कम नौ प्रमुख थर्मल पावर स्टेशन हैं जिनमें तीन एनटीपीसी के स्वामित्व वाले प्लांट - रिहंद (3,000 मेगावाट), विंध्याचल (4,760 मेगावाट) और सिंगरौली (2,000 मेगावाट) शामिल हैं।

उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश एक साथ स्थापित कोयला बिजली क्षमता के 51 गिगावाट का हिस्सा है, जिसका आधा सिंगरौली-सोनभद्र क्षेत्र में स्थित है।

सेंट्रल इलेक्ट्रिसिटी अथॉरिटी की 2018-19 की रिपोर्ट बताती है कि उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश दोनों राज्य राख उत्पादन के मामले में देश के शीर्ष चार राज्यों में शामिल हैं। एक वर्ष के भीतर सिंगरौली-सोनभद्र क्षेत्र में बिजली संयंत्रों से फ्लाई ऐश के टूटने की तीन बड़ी घटनाएं हो चुकी हैं। और इन घटनाओं से अंदाजा लगाया जा सकता है कि ये संयंत्र राख प्रबंधन के मामले में विफल रहे हैं। इनके पास भंडारण की पर्याप्त क्षमता भी नहीं होती है।

नतीजतन, राख डाई की दीवारें अक्सर टूट जाती हैं या एक अतिप्रवाह / रिसाव होता है, जिससे आस-पास के कृषि क्षेत्रों और सतह के जल निकायों को राख का घोल जारी होता है। इससे खेतों की व्यापक क्षति होती है और जहरीले राख के घोल से मीठे पानी के स्रोतों का संदूषण होता है। आस-पास की बस्तियों में अचानक बाढ़ आने से कई बार जनहानि हुई है।

दरअसल देश में राख का उत्पादन लगातार बढ़ रहा है, जो चिंता का विषय है। साथ ही, राख का इस्तेमाल न होने के कारण देश में राख का ढेर बढ़ता जा रहा है। 

वर्तमान में बिजली संयंत्र लगभग 200 मिलियन टन राख उत्पन्न करते हैं। जबकि सीएसई की रिपोर्ट बताती है कि पिछले 10 वर्षों के दौरान थर्मल प्लांटों से निकलने वाली राख का उपयोग न किए जाने के कारण राख का स्टॉक लगभग 627 मिलियन हो गया है, जो वर्तमान राख उत्पादन से लगभग तीन गुणा अधिक है। 

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने 25 दिसंबर, 2016 की अधिसूचना के अनुसार 31 दिसंबर, 2017 तक फ्लाई ऐश के 100 प्रतिशत उपयोग के लिए लक्ष्य निर्धारित किया गया था। जबकि इससे पहले फ्लाई ऐश उपयोग पर पहली अधिसूचना सितंबर 1999 में आई थी। बावजदू इसके अब तक यह लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका है। केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण (सीईए) के 2018-19 के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 43 प्रतिशत थर्मल प्लांट्स ने अभी तक यह लक्ष्य हासिल नहीं किया है।

ऐसे में, जब कि भारत में बिजली उत्पादन के लिए कोयला का इस्तेमाल बढ़ रहा है, जो राख प्रबंधन एक बड़ा मुद्दा बन कर उभरेगा। राख का प्रबंधन न होने के कारण पर्यावरण से जुड़ी चिंताएं बढ़ेंगी।