देश का कोयला उत्पादन जनवरी, 2020 की तुलना में जनवरी, 2022 के दौरान 75 मिलियन टन से 6.13 प्रतिशत बढ़कर 79.60 मिलियन टन हो गया।
एक सरकारी विज्ञप्ति के मुताबिक कोयला मंत्रालय के अनंतिम आंकड़ा के अनुसार इस वर्ष जनवरी के दौरान कुल उत्पादन में से कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) ने 64.50 मिलियन टन कोयले का उत्पादन कर 2.35 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की।
सिंगरेनी कोलियरीज लिमिटेड (एससीसीएल) ने 5.42 प्रतिशत वृद्धि के साथ 6.03 एमटी का उत्पादन किया। इस अवधि के दौरान कैप्टिव ब्लॉकों में 9.07 एमटी कोयले का उत्पादन किया और 44.91 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की।
जनवरी, 2022 के दौरान कोयला डिस्पैच 10.80 प्रतिशत बढ़कर 68.19 एमटी से 75.55 एमटी हो गया। जनवरी, 2022 के दौरान कुल उत्पादन में से कोल इंडिया लिमिटेड 7.71 प्रतिशत की वृद्धि की और उसके द्वारा 60.85 एमटी कोयला डिस्पैच किया गया।
सिंगरेनी कोलियरीज लिमिटेड (एससीसीएल) ने 6.99 एमटी कोयला भेजकर 6.45 प्रतिशत की वृद्धि हासिल की। इस अवधि में कैप्टिव ब्लॉकों में 8.71 एमटी कोयला भेजकर 43.55 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की।
शीर्ष 35 कोयला उत्पादन खदानों में 14 खदानों ने 100 प्रतिशत से अधिक काम किया तथा 6 खदानों का उत्पादन 80 और 100 प्रतिशत के बीच रहा।
जनवरी, 2020 की तुलना में जनवरी 2022 में कोयला आधारित विद्युत उत्पादन 9.21 प्रतिशत बढ़ा। जनवरी, 2020 की तुलना में जनवरी, 2022 में समग्र विद्युत उत्पादन 6.69 प्रतिशत अधिक रहा है।
दिसम्बर, 2021 के 85579 एमयू की तुलना में जनवरी, 2022 में कोयला आधारित विद्युत उत्पादन 886.42 एमयू हुआ और इसमें 3.58 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गई। देश में कुल विद्युत उत्पादन जनवरी, 2022 में बढ़कर 115757 एमयू हो गया है, जो दिसम्बर, 2021 में 113094 एमयू था।
वित्त वर्ष 2022 के कोयले उत्पादन की तुलना वित्त वर्ष 2020 से की गई है, क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण वित्त वर्ष 2021 असामान्य माना गया है।
यहां यह उल्लेखनीय की जलवायु परिवर्तन पर अंतर-सरकारी पैनल (आईपीसीसी) ने 2018 में ग्लोबल वार्मिंग ऑफ 1.5 डिग्री सेल्सियस में कहा था कि यदि वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ने से रोकना है तो कोयले से संचालित बिजली उत्पादन को तेजी से घटाना होगा।
बल्कि कहा गया था कि इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए कोयले से बनने वाली बिजली का उत्पादन 2050 तक शून्य हो जाना चाहिए, जबकि 2030 तक इसे लगभग 66 फीसदी घटाना होगा।