ऊर्जा

वायु प्रदूषण और जलवायु की दोहरी चुनौती का समाधान है स्वच्छ कोयला पावर प्लांट का प्रोत्साहन

कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाला फ्लाई एश एक बहुत ही बड़ी चुनौती है। वर्ष 2009-10 से 2018-19 तक इस फ्लाई ऐश में 70 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है।

Vivek Mishra
भारत में 65 फीसदी कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट 2022 तक तय पर्यावरणीय मानकों का पालन नहीं कर पाएंगे। पावर प्लांट से होने वाले प्रदूषण की रोकथाम के लिए जरूरी है कि इस वक्त न सिर्फ रणनीति की समीक्षा की जाए बल्कि स्वच्छ थर्मल प्लांट के साथ ही एक अच्छे तंत्र को प्रोत्साहित किया जाए। 
नई दिल्ली स्थित सेंटर फॉर साइंस एंड एनवॉयरमेंट (सीएसई) की ओर से 21 अक्तूबर को किए गए एक वेबिनार में  पर्यावरण के जानकारों और नीति निर्माण से जुड़े अधिकारियों के बीच यह चर्चा की गई। 
वेबिनार की शुरुआत करते हुए पर्यावरणविद सुनीता नारायण ने कोयला आधारित प्लांट के मुद्दे सीएसई का पक्ष रखते हुए कहा "भारत में हर नागरिक को सस्ती ऊर्जा चाहिए इसलिए थर्मल पावर प्लांट को एकदम से हटाया नहीं जा सकता, यह हमारी सच्चाई है। लेकिन हमें कोयले पर अपनी निर्भरता को जरूर कम करना होगा। साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा कि कोयला आधारित पावर प्लांट जितना संभव हो सके स्वच्छ हों। इसी तरह से ही हम स्वच्छ हवा और जलवायु परिवर्तन की दोहरी चुनौती से जूझ सकते हैं।" 
सीएसई की ओर से जारी की गई चार अलग-अलग रिपोर्ट में कोयला आधारित पावर प्लांट की के प्रदूषण की  एक स्पष्ट तस्वीर उभर कर सामने आती है। मसलन इस सेक्टर के जरिए 80 फीसदी मर्करी, 45 फीसदी सल्फर डाई ऑक्साइड, 30 फीसदी नाइट्रोजन ऑक्साइड उत्सर्जन होता है।  इतना ही नहीं इंडस्ट्री के जरिए भारत के घरेलू जरूरत का आधा पानी इस्तेमाल किया जाता है। 
कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाला फ्लाई एश एक बहुत ही बड़ी चुनौती है। वर्ष 2009-10 से 2018-19 तक इस फ्लाई ऐश में 70 फीसदी की बढ़ोत्तरी हुई है। वहीं, इस सेक्टर के जरिए एक तिहाई ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन भी किया जाता है। 
इस सेक्टर के उद्योगों के जरिए 2015 के तय किए गए मानकों का अनुपालन तय समयसीमा में हो पाएगी यह बेहद ही संशयपूर्ण है। सीएसई रिपोर्ट में पाया गया कि मौजूदा तंत्र में मानकों का अनुपालन कराने के लिए कई कमजोरियां हैं। मसलन अनुपालन न किए जाने की स्थिति में उसे जांचने का कोई प्रभावी तरीका नहीं है। 
मिसाल के तौर पर रिपोर्ट तैयार करने वाले निवित कुमार यादव ने कहा कि भारत में बिजली कंपनियों के जरिए सप्लाई की जाने वाली 90 फीसदी बिजली आपूर्ति  पावर प्लांट के साथ एक दीर्घ अवधि वाले करार के तहत दी जाती हैं। इस तरह की व्यवस्था में चाहे पावर प्लांट काम करे या न करे, उसे करार के तहत एक तय लागत अदा करनी पड़ती है। वहीं, सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के तहत लगाया जाने वाला जुर्माना इस तय लागत का बहुत ही छोटा हिस्सा होता है, जो इतना अपर्याप्त है कि शायद ही पावर प्लांट को नियम और मानकों के अनुपालन के लिए प्रेरित करे। 
नियमों और मानकों का पालन न करने वाले कोयला अधारित प्लांट से लेवी वसूलना या उन्हें बंद करना न ही प्रभावी है और न ही प्रैक्टिकल है। सुनीता नारायण ने कहा कि हमारा शोध यह बताता है कि मौजूदा समय में सबसे बेहतर रणनीति यह है कि स्वच्छ पावर स्टेशन से ही बिजली आपूर्ति सुनिश्चित की जाए। रीन्यूबल एनर्जी या मस्ट रन प्लांट के साथ स्वच्छ कोयला प्लांट के लिए एक नई श्रेणी फर्स्ट रन या प्रिऑरिटी रन प्लांट्स को शामिल किया जाए। 
सीएसई रिपोर्ट यह प्रस्तावित करती है कि इस नई श्रेणी में उन सभी कोयला आधारित थर्मल पावर प्लांट को शामिल कर सकती है जो 2022 तक पर्यावरणीय नियमों के नए मानकों का पालन कर लेते हैं। लेकिन ऐसे पावर प्लांट जो नियमों का पालन नही कर पाते हैं उन्हें मेरिट के आधार पर निचले पायदान की श्रेणियों में रखा जाए। 
निवित यादव ने कहा कि हमारा विश्लेषण यह बताता है कि देश में 57,624 मेगावॉट क्षमता वाले कोयला प्लांट समय सीमा तक पर्यावरणीय मानकों का पालन कर सकते हैं। फर्स्ट रन पावर स्टेशन की श्रेणी वाले पावर प्लांट को रैंक में रखना चाहिए साथ ही ऊर्जा खरीदने के लिए प्राथमिकता देनी चाहिए। इस कटेगरी के लिए तय शुल्क वापस किया जाना चाहिए। इससे अन्य पावर स्टेशन भी प्रोत्साहित होंगे। 
सीएसई ने अनुमान लगाया है कि यदि फर्स्ट रन कॉन्सेप्ट का अनुपालन यदि होता है तो इसका बहुत ही महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। इसका मतलब यह भी हो सकता है कि भारत में एक तिहाई बिजली उपभोग स्वच्छ पावर स्टेशनों से हो। भारतीय राज्यों में महाराष्ट्र ऐसा राज्य है जहां 6000 मेगावॉट बिजली स्वच्छ कोयला पावर प्लांट से आपूर्ति होती है। वहीं फीसदी के हिसाब से हिमाचल प्रदेश चार्ट में सबसे ऊपर है। इसके बाद एक फीसदी कम अंकों के साथ पश्चिम बंगाल है। 
वेबिनार के अंत में सुनीता नारायण ने कहा कि यदि नियमों और मानकों के अनुपालन में अब और देरी होती है तो इसका मतलब सरकार और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों व प्रयासों का मजाक उड़ाना समझा जाएगा। इसके बाद अनुपालन के लिए कठोर कदम उठाने होंगे।