ऊर्जा

चुटका परियोजना-3: औचित्य पर उठते सवाल

Anil Ashwani Sharma

चालीस साल पहले मध्य प्रदेश के चुटका सहित 54 गांव बरगी बांध के कारण विस्थापित हुए थे। अब इन गांवों पर चुटका परमाणु विद्युत परियोजना से विस्थापित होने की तलवार लटक रही है। आखिर कितनी बार कोई आदिवासी अपने घर-द्वार-जल-जंगल और जमीन छोड़ेगा? अनिल अश्विनी शर्मा ने चुटका सहित कुल 11 गांवों में जाकर आदिवासियोें के उजड़ने और फिर बसने की पीड़ा जानने की कोशिश की। उनके चेहरों पर उजड़ने का डर नहीं अब गुस्सा है। यह गुस्सा चिंगारी बनकर कभी भी भड़क सकता है। पढ़ें, इस रिपोर्ट की पहली कड़ी में आपने पढ़ा, 54 गांवों में क्यों पसरा है आतंक का साया? । दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, ग्राम सभा की इजाजत तक नहीं ली गई । पढ़ें, तीसरी व अंतिम कड़ी- 

कुंडा गांव के बाबूलाल ने कहा कि हम 13 ग्रामीण रावतभाटा (राजस्थान) परमाणु बिजली घर के आसपास के प्रभावों को देखने गए। वहां हमने जानबूझ कर उस गांव में गए, जिसे एनपीसीआईएल ने आदर्श पुनर्वास करने के लिए गोद लिया था। लेकिन जब हमने देखा कि प्रभावित नली खेड़ा गांव की हालत बेहद खराब है। टीबी और कुपोषण गांव में फैला हुआ है। आवागमन के कोई साधन नहीं है। हालात ये हैं कि इस गांव का हर नागरिक सुबह उठते ही कोई न कोई दवा खाता है। दादू लाल ने बताया कि हमारी इस गतिविधि की भनक पाकर एनपीसीआईएल के अधिकारियों ने कहा हम आपको तारापुर परमाणु बिजली (पालघर, महाराष्ट्र) घर के पास के गांव में ले जाएंगे। वहां देखिए हमने अच्छा काम किया है। तब हमारे यहां से सात लोग गए लेकिन कंपनी ने पहले तो प्रभावित गांवों में ले जाने से मना कर दिया लेकिन जब ग्रामीण अड़ गए तो ले गए। लेकिन यहां भी एक और नली खेड़ा ही दिखाई पड़ा।

चुटका गांव में 5 माह पूर्व (सितंबर, 2019 ) एक अल सुबह गांव वालों ने देखा कि गांव के एक छोर पर मशीन ड्रिलिंग कर रही है और यह काम गांव के बाहरी लोग कर रहे हैं। आनन-फानन में सभी ग्रामीण जुहा गए और बाहरी लोगों से पूछताछ करने लगे। इस संबंध में कुंडापे ने उस गड्ढे की ओर इशारा करते हुए डाउन टू अर्थ को बताया कि जहां ड्रिलिंग की जा रही थी, पूछताछ की तो बाहरी लोगों ने कहा कि हम यहां की मिट्टी का निरीक्षण करने के लिए नमूना ले रहे हैं। गांव वालों के विरोध के चलते वे अपनी मशीन आदि छोड़-छाड़कर भाग खड़े हुए।

चुटका गांव की मीरा बाई बताती हैं कि सरकार हमें यहां से हटाने के नए-नए पैंतरे अपनाती रहती है। सरबार मंडला जिले से लगे बरेला रेंज, बीजाडांडी रेंज, कालपी रेंज और टिकैया रेंज के जंगलों में अब टाइगर प्रोजेक्ट बना रही है। इस संबंध में मीरा बाई के पास ही खड़े दूसरे प्रभावित कुंडा गांव के मुन्ना बर्मन ने सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए कहा,असल में इन जंगलों में वैसे तो एक लोमड़ी भी नहीं है लेकिन सरकारी मंशा यह है कि इस प्रोजेक्ट के बहाने वह आदिवासियों को इन जंगलों में जाने से रोकने में वह सफल होगी। दरअसल न्यूक्लियर पावर प्रोजेक्ट संवेदनशील होता है और प्रोजेक्ट एरिया में किसी को जाने नहीं दिया जाता है। इसी के तहत जंगलों को अब टाइगर प्रोेजेक्ट बनाया जा रहा है कि ताकि आदिवासियों को उस इलाके में जाने से रोका जा सके।

परियोजना का औचित्य

पिछले 15 सालों से चुटका परमाणु विद्युत परियोजना के खिलाफ आदिवासियों की जंग में साथ देने वाले “बरगी बांध विस्थापित एवं प्रभावित संघ” के वरिष्ठ कार्यकर्ता सिन्हा राजकुमार तो सीधे इस परियोजना के निर्माण के औचित्य पर ही सवाल उठाते हैं। डाउन टू अर्थ को उन्होंने बताया, “मध्य प्रदेश में बिजली की औसत मांग 8 से 9 हजार मेगावाट है तथा रबी फसल की सिंचाई के समय उच्चतम मांग 11 हजार 500 मेगावाट रहती है, जबकि उपलब्धता 18 हजार 364 मेगावाट अर्थात प्रदेश में मांग से ज्यादा बिजली उपलब्ध है। इसके बावजूद नर्मदा नदी पर बने बरगी बांध से विस्थापित चुटका गांव में परमाणु ऊर्जा परियोजना प्रस्तावित की गई है।”

संयुक्त राष्ट्र जलवायु तकनीकी नेटवर्क के सलाहकार बोर्ड के सदस्य व परियोजना प्रभावितों को तकनीकी मदद मुहैया करने वाले सौम्य दत्ता ने डाउन टू अर्थ को बताया, “जिस समय इस परियोजना को मंजूरी मिली तब सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करना महंगा था, अब स्थिति बदल गई है। इस बिजली घर के लिए सबसे बड़ा खतरा यहां की भूकंपीय पट्टी है। भोपाल के आपदा प्रबन्धन संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार मंडला जिले की टिकरिया बस्ती के आसपास का क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से अति संवेदनशील बताया गया है। वर्ष 1997 में नर्मदा किनारे के इस क्षेत्र में 6.4 रिक्टर स्केल का विनाशकारी भूकंप आ भी चुका है। इस संबंध में सिन्हां कहते हैं कि ऐसे में यहां अतिसंवेदशील परमाणु बिजली घर का निर्माण का मतलब होगा भविष्य के लिए और चेर्नोिबल तैयार करना।

अंत में दत्ता कहते हैं न्यूक्लियर प्लांट के लिए उसी जगह को चुनने की खास वजह यह है कि न्यूक्लियर पावर प्लांट को भारी मात्रा में पानी की जरूरत होती है। चुटका में पर्याप्त पानी मौजूद है। दूसरी वजह है कि वहां उन्हें अकूत खाली जमीन दिखती है। हालांकि, जमीन तो खाली नहीं है। वो जमीन आदिवासियों की है। इस पर सरकारी सोच है कि आदिवासी गांव ही तो हैं, उन्हें हटाने में कितना वक्त लगेगा?