ऊर्जा

केंद्र के उदय ने बिगाड़ा राज्यों का बजट, पांच साल में कर्ज हुआ दोगुना से अधिक

भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है कि बिजली कंपनियों की हालत में सुधार करने की वजह से राज्य सरकारों की आर्थिक दशा बिगड़ गई है

Kundan Pandey

बिजली क्षेत्र की हालात में सुधार लाने के लिए केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई उज्जवल डिस्कॉम्स एश्योरेंस योजना (उदय) की वजह से राज्य सरकारों पर कर्ज बढ़ता जा रहा है। भारतीय रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है। आरबीआई ने सभी राज्यों के बजट 2019-20 की समीक्षा के बाद यह रिपोर्ट (स्टेट फाइनेंस: ए स्टडी ऑफ बजट्स ऑफ 2019-20) जारी की है। 30 सितंबर को जारी की गई इस रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर लिखा है कि पिछले पांच साल से राज्यों में कर्ज का बोझ जीडीपी के 25 फीसदी तक बढ़ चुका है, जो राज्यों के लिए एक बड़ी चुनौती बनता जा रहा है।

रिपोर्ट में बताया गया है कि 2003-04 तक राज्यों पर बोझ बढ़ रहा था, लेकिन उसके बाद हालात में सुधार होना शुरू किया और इससे कर्ज पर ब्याज का भुगतान करने की दर में कमी आई। लेकिन 2015-16 के बाद राज्यों पर कर्ज का बोझ अचानक से बढ़ने लगा। इसकी वजह उदय योजना रही। आरबीआई रिपोर्ट में कहा गया है कि उदय योजना शुरू होने के बाद ही बिजली वितरण करने वाली कंपनियों (डिस्कॉम्स) का कर्ज जरूर कम हुआ, लेकिन अब यह फिर से बढ़ने लगा है। यह नकारात्मक संकेत हैं और इससे फिर से डिस्कॉम्स आर्थिक दबाव में आ गए हैं।

यहां यह उल्लेखनीय है कि केंद्र सरकार ने नवंबर 2015 में उदय योजना लॉन्च की थी। इसका मकसद राज्य सरकारों की बिजली वितरण कंपनियों की आर्थिक स्थिति में सुधार करना है। इससे पहले तक इन कंपनियों पर लगभग 4 लाख करोड़ रुपए का कर्ज था। उदय योजना के तहत इन कंपनियों के कर्ज का 75 फीसदी भुगतान राज्य सरकारों को करना था।

आरबीआई रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसा पहली बार नहीं है कि बिजली क्षेत्र की दशा सुधारने की वजह से राज्य सरकारों की आर्थिक दशा बिगड़ी है। इससे पहले तीन बार ऐसा हो चुका है। 2003 में ऑन टाइम सेटलमेंट के तहत बिजली कंपनियों को राहत पहुंचाई गई। इसके बाद 2012 में फाइनेंशियल रिस्ट्रक्चरिंग प्लान बना कर बिजली कंपिनयों का कर्ज कम किया गया और अब 2015 में उदय योजना लाई गई। अपनी रिपोर्ट में आरबीआई ने कहा है कि इस तरह के हस्तक्षेप की वजह से राज्य सरकारों के का कर्ज और देनदारी बढ़ती गई है। जबकि बिजली कंपनियों की हालत फिर से वैसी ही हो गई।

रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य और केंद्र शासित राज्यों पर 2013 में 22.45 लाख करोड़ रुपए का कर्ज था, जो 2014 में बढ़ कर 25.10 लाख करोड़, 2015 में 27.43 लाख करोड़, 2016 में 32.59 लाख करोड़, 2017 में 38.59 लाख करोड़, 2018 में 42.92 लाख करोड़ रुपए हो गया, जबकि 2019  के बजट में 47.15 लाख करोड़ रुपए का संशोधित अनुमान लगाया गया और 2020 के बजट 52.58 लाख करोड़ रुपए होने का अनुमान है। यानी कि पिछले साल में कर्ज दोगुना से अधिक हो गया है।