ऊर्जा

क्या जंगल में लगने वाली आग के चलते भारत में घट सकता है सौर ऊर्जा उत्पादन

Lalit Maurya

क्या जंगल में लगने वाली आग, भारत में सौर ऊर्जा उत्पादन को प्रभावित कर सकती है? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब भारतीय शोधकर्ताओं ने ढूंढ लिया है। इस बारे में आर्यभट्ट रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ऑब्जर्वेशनल साइंसेज (एआरआईईएस), नैनीताल और यूनान स्थित नेशनल ऑब्जर्वेटरी ऑफ एथेंस (एनओए) के शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन से पता चला है कि बादलों और वातावरण में मौजूद एरोसोल के साथ-साथ जंगल में लगने वाली आग भी सौर ऊर्जा उत्पादन को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

देश में जंगलों में लगने वाली आग की यह समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि नवंबर 2020 से जून 2021 के बीच ओडिशा में 51,968, मध्य प्रदेश में 47,795, छत्तीसगढ़ में 38,106, महाराष्ट्र में 34,025, झारखंड में 21,713, उत्तराखंड में 21,497, आंध्र प्रदेश में 19,328, तेलंगाना में 18,237, मिजोरम में 12,864, असम में 10,718 और मणिपुर में 10,475 घटनाएं सामने आई थी।

अकेले उत्तराखंड में 2021 के दौरान जंगलों में लगी आग के चलते करीब 1,300 हेक्टेयर वन क्षेत्र स्वाहा हो गया था। गौरतलब है कि भारत के विभिन्न हिस्सों में विशेषकर गर्मियों के मौसम में यह दावाग्नि बड़ा कहर ढाती है। यदि भारतीय वन सर्वेक्षण की मानें तो देश में करीब 36 फीसदी वन क्षेत्र में बार-बार आग लगने का खतरा है।

भारतीय वन सर्वेक्षण रिपोर्ट 2019 के अनुसार देश में 2004 से 2017 के बीच करीब 2.56 लाख हेक्टेयर भूमि जंगल की आग से प्रभावित हुई है। स्टेट ऑफ फारेस्ट रिपोर्ट 2021 के मुताबिक नवंबर 2020 से जून 2021 के बीच में जंगल में लगने वाली आग की करीब 345,989 घटनाएं सामने आई थी। वहीं हाल ही में किए अध्ययनों से पता चला है कि जलवायु में जिस तरह से बदलाव आ रहा है उससे जंगल में लगने वाली आग की घटनाएं कहीं ज्यादा विकराल रूप ले लेंगी।

देखा जाए तो भारत जैसे कई विकासशील देश अपने ऊर्जा उत्पादन में सोलर की हिस्सेदारी को बढ़ाने के लिए तेजी से प्रयास कर रहे हैं। इसको लेकर उन्होंने भविष्य के लिए कई योजनाएं भी बनाई हैं। हालांकि बादल, एरोसोल और प्रदूषण जैसे कई कारक सूरज से आने वाले विकिरण को सीमित कर देते हैं जिसका असर फोटोवोल्टिक और केंद्रित सौर ऊर्जा संयंत्रों पर पड़ता है। यही वजह है कि बड़े पैमाने पर सोलर एनर्जी सिस्टम के विकास के लिए उचित योजना और सौर क्षमता का सटीक अनुमान जरुरी होता है।    

सौर ऊर्जा उत्पादन पर कितना असर डाल रही है दावाग्नि

जर्नल रिमोट सेंसिंग में प्रकाशित इस शोध के मुताबिक अध्ययन के दौरान जनवरी से अप्रैल 2021 के बीच एयरोसोल ऑप्टिकल डेप्थ वैल्यू 1.8 तक थी। जिस दौरान बड़े पैमाने पर जंगल में लगने वाली आग की घटनाएं सामने आई थी। नतीजन इसके चलते सौर विकिरण में भी गिरावट देखी गई थी। आंकड़ों से पता चला है कि इस दौरान बिना बिखराव के जो सौर विकिरण (बीएचआई) प्राप्त हुआ था वो केवल 0 से 45 फीसदी ही था। गौरतलब है कि इस दौरान वातावरण में धुंए और एयरोसोल का वर्चस्व था।   

अपने इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने रिमोट सेंसिंग (मॉडरेट रेजोल्यूशन इमेजिंग स्पेक्ट्रोमाडोमीटर (मोडिस), ऑर्थोगोनल पोलराइजेशन (कैलिप्सो) के साथ क्लाउड-एरोसोल लिडार) तकनीक की मदद से प्राप्त आंकड़ों का उपयोग किया है। इसके व्यापक विश्लेषण और मॉडल सिमुलेशन की मदद से भारत में सौर ऊर्जा क्षमता पर पड़ने वाले एरोसोल और बादलों के प्रभाव का अध्ययन किया है। साथ ही उन्होंने बादलों और एरोसोल के कारण राजस्व और आर्थिक नुकसान के संदर्भ में एक विश्लेषणात्मक वित्तीय विश्लेषण भी प्रस्तुत किया है।

यदि भारत में कुल सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता की बात करें तो वो करीब 40 गीगावाट है। अध्ययन के दौरान (जनवरी से अप्रैल 2021) में कुल सौर ऊर्जा उत्पादन 650 किलोवाट-घंटा प्रति वर्ग मीटर पाया गया था। इससे करीब 7.95 करोड़ रुपए की आय हुई थी।

शोध के मुताबिक जनवरी और फरवरी की शुरुआत में और अप्रैल के अंत में ऊर्जा उत्पादन में गिरावट दर्ज की गई थी। जिसके लिए कहीं न कहीं जंगलों में लगी आग भी जिम्मेवार थी। पता चला है कि जहां बादलों के कारण ऊर्जा उत्पादन में 116 किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर का नुकसान हुआ था, वहीं एयरोसोल की उपस्थिति में यह लगभग 63 किलोवाट घंटा प्रति वर्ग मीटर थी। रिपोर्ट के मुताबिक जहां एयरोसोल की उपस्थिति के कारण 80 लाख रुपए का नुकसान हुआ था वहीं बादलों की वजह से होने वाला नुकसान करीब 1.4 करोड़ रुपए था।

यदि वैज्ञानिकों की बात सही है तो यह देश में सौर ऊर्जा उत्पादन और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ की जा रही कार्रवाई के लिए बड़ा खतरा है, जिसपर गौर किया जाना जरुरी है। शोधकर्ताओं का मानना है कि सौर संयंत्रों द्वारा किए जा रहे ऊर्जा उत्पादन पर दावाग्नि के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रभावों के बारे में बेहतर समझ इस तरह के नुकसान को कम करने में मदद कर सकती है, साथ ही इससे वित्तीय नुकसान को भी कम किया जा सकता है।

उनके अनुसार इस तरह के विश्लेषण से ग्रिड ऑपरेटरों को बिजली उत्पादन की योजना बनाने और शेड्यूल करने में मदद मिल सकती है। इतना ही नहीं यह जानकारी बिजली के वितरण, आपूर्ति, सुरक्षा और उसके उत्पादन में स्थिरता बनाए रखने में भी मददगार हो सकती है। 

साथ ही शोधकर्ताओं को भरोसा है कि जो निष्कर्ष सामने आए हैं उससे नीति निर्माताओं के बीच देश में ऊर्जा प्रबंधन और योजना पर दावाग्नि के प्रभावों को लेकर जागरूकता बढ़ेगी। साथ ही यह अध्ययन जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को कम करने और उससे नीतियों के निर्माण में भी मददगार हो सकता है।