ऊर्जा

अंधेरा हो या आपदा, पहाड़ में रोशनी की उम्मीद जगाता है सौर ऊर्जा

Varsha Singh

टिहरी, जौनपुर ब्लॉक, कफुल्टा गांव। पहाड़ी की उत्तरी ढाल पर बसे कफुल्टा गांव में अक्टूबर के महीने में शाम के 4 बजे के आसपास छांव पसर गई। अब से कुछ 5 साल पहले तक सूरज ढलते ही कफुल्टा गांव अंधेरे में कैद हो जाता था। लेकिन सौर ऊर्जा से चलने वाली स्ट्रीट लाइट्स ने पूरे गांव को नई रोशनी दी है। ख़ासतौर पर अंधेरे से जूझती महिलाओं की कई मुश्किलें आसान हुई हैं। 

पहाड़ी महिलाओं के जीवन में सौर उजाला

12 अक्टूबर 2021. शाम ढलते ही कफुल्टा गांव इन स्ट्रीट लाइट्स की रोशनी से जगमग हो उठा। गांव में चहल-पहल बनी रही। छोटे बच्चे गलियों से गुजरते दिखे। महिलाएं घर के आंगन में अपने रोज के काम निबटा रही थीं। पार्वती देवी थोड़ी देर पहले ही खेतों से लौटी हैं और सूखी लाल मिर्च की छंटाई कर रही हैं। गली में लगी स्ट्रीट लाइट से उन्हें अपने इस काम के जरूरत भर की रोशनी मिल रही है।

पार्वती बताती हैं गांव में बिजली कटौती बहुत ज्यादा होती है। कई बार तीन-चार दिनों तक बिजली नहीं आती। बारिश के दिनों में दो-दो हफ्ते बिना बिजली के गुजारने पड़ते हैं। ऐसे में हम सोलर स्ट्रीट लाइट से ही खाना-पीना बनाते हैं। रसोई का सारा काम निपटाते हैं। कफुल्टा गांव की ज्यादातर महिलाएं अब भी घर के बाहर मिट्टी के चूल्हे पर ही खाना बनाती हैं। उज्जवला योजना के ज़रिये गांवों में पहुंचा एलपीजी सिलेंडर अधिक कीमत के चलते इस्तेमाल कम होता है।  

इसी गांव की सुनीता चौहान बताती हैं शाम को अगर बिजली चली जाती है तो बच्चे इन्हीं स्ट्रीट लाइट्स के नीचे बैठकर पढ़ाई कर लेते हैं। पहले शाम होते ही बच्चे घरों में कैद हो जाते थे। गांव में ज्यादातर शौचालय घरों के बाहर बने हुए हैं। बच्चों को शौचालय जाना हो तो किसी को साथ जाना पड़ता था। रात में कई बार सांपों का खतरा भी होता है। रोशनी से ये डर कम हुआ है

कफुल्टा की लाजवंती देवी को लगता है कि गांव में इस तरह की कुछ और सोलर स्ट्रीट लाइट मिलती तो ज्यादा बेहतर होता। वह बताती हैं घरों के आसपास सोलर लाइट लगने से हमें बहुत अच्छी सुविधा मिली है। लेकिन हमारे पशुओं की छानी (पशुओं को रखने की जगह) घरों से दूर खेतों की तरफ है। वहां जाने में हमें दिक्कत होती है। गांव में सभी घरों में पशु हैं। उन्हें चारा-पानी देने के लिए महिलाओं को ही छानी तक जाना पड़ता है

कफुल्टा गांव की महिलाएं सोलर स्ट्रीट लाइट्स के फायदे तो गिनाती हैं लेकिन उन्हें सोलर रूफ़ टॉप पैनल के बारे में जानकारी नहीं है। वे इस बात से भी अनजान हैं कि सौर ऊर्जा से चलने वाले रसोई के स्टोव्स या सोलर पैनल लगाने पर इंडक्शन जैसे चूल्हे का इस्तेमाल भोजन पकाने के लिए कर सकती हैं। जिससे जंगल से लकड़ी लाने का श्रम बचेगा। लाजवंती कहती हैं कि विधायक लोग चुनाव के समय वोट मांगने तो आ जाते हैं लेकिन इस तरह की योजनाओं के बारे में वे गांव में कभी बैठकें नहीं करते।

उत्तराखंड सरकार के महिला समाख्या कार्यक्रम की निदेशक रह चुकी गीता गैरोला कहती हैं सौर ऊर्जा ग्रामीणों के जीवन स्तर में सुधार ला सकती है। रात के अंधेरे में असामाजिक तत्व भी सक्रिय हो जाते हैं। शराब पीकर चलने वाले लोगों के चलते महिलाओं को आने-जाने में दिक्कत होती थी। ऐसे में महिलाओं में असुरक्षा की भावना होती थी

वह आगे कहती हैं “हमें लोगों को, खासतौर पर पहाड़ की महिलाओं को, सौर ऊर्जा की संभावनाओं के बारे में जागरुक करना होगा। यहां शाम होते ही अंधेरे के चलते घरों के दरवाजे बंद हो जाते हैं। लेकिन रोशनी के साथ गांवों में जीवन सरल-सुलभ हुआ है

कफुल्टा गांव में कुल 86 परिवार हैं। जलागम परियोजना के तहत यहां करीब 26 सोलर स्ट्रीट लाइट लगी हैं। पिंकी असवाल इस गांव की प्रधान हैं। उनके मुताबिक सार्वजनिक जगहों पर रोशनी नहीं होती थी तो लोग टॉर्च या लालेटन लेकर आते-जाते थे। गांव के जीवन में घर के ज्यादातर कार्य महिलाओं के हिस्से ही आते हैं। ऐसे में महिलाएं एक-दूसरे को बुलाती हैं या घर के पुरुष को साथ लेकर जाती हैं। रात को गलियों में रोशनी होने से महिलाओं का डर कम हुआ है

कठोर मौसम, प्राकृतिक आपदा में सौर पर अधिक भरोसा

17,18,19 अक्टूबर को उत्तराखंड में अचानक आई भारी बारिश के बाद पर्वतीय जन-जीवन अस्त-व्यस्त हो गया। कफुल्टा गांव में भी बिजली आपूर्ति प्रभावित हुई। पिंकी असवाल कहती हैं एक हफ्ते तक बिजली बहुत अनियमित रही। पूरी-पूरी रात गांव में बिजली नहीं थी। दिन का समय तो गुजर जाता है। लेकिन रात में बिजली न होने पर दिक्कत होती। बादलों की मौजूदगी में भी सोलर स्ट्रीट लाइट इतनी चार्ज हो जा रही थी कि हमें शाम के 3-4 घंटे रोशनी मिल रही थी। वह बताती हैं कि सर्दियों में बर्फ़बारी के समय भी गांव में कई-कई दिनों तक बिजली नहीं रहती। उस समय भी सोलर लाइट बहुत उपयोगी साबित होती है।

इस वर्ष अक्टूबर की इसी आपदा में नैनीताल के 600 गांवों में बिजली आपूर्ति ठप हो गई थी। जिन्हें बहाल करने में एक हफ्ते से अधिक समय लगा।

टिहरी से ही लगे पौड़ी ज़िले के चौबट्टाखाल तहसील के कई गांवों में सोलर स्ट्रीट लाइट्स लगी मिलीं। यहां किमगड़ी गांव की निर्मला सुंद्रियाल कहती हैं हमारे यहां गुलदार और भालू के हमले का डर बना रहता है। गुलदार तो आंगन से बच्चों को खींचकर ले जा चुके हैं। वन्यजीवों के आतंक से अंधेरा होती ही हमें घरों में कैद होना पड़ता है। गांव की गलियों में रोशनी होने से गुलदार जैसे जानवरों का भय कुछ कम हुआ है। जंगली जानवर रोशनी में सीधे आने से डरता है

तय लक्ष्य नहीं हासिल कर सकी सोलर स्ट्रीट लाइट्स के लिए अटल ज्योति योजना

देश के ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में बिजली व्यवस्था बेहतर बनाने के लिए नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने ऑफ ग्रिड सौर योजना के तहत वर्ष सितंबर-2016 से मार्च 2018 तक अटल ज्योति योजना (अजय) लागू किया। इसके तहत उत्तर प्रदेश, असम, बिहार, झारखंड और उड़ीसा के 96 लोकसभा क्षेत्रों में 7 वाट के सोलर स्ट्रीट लाइट्स लगाए गए। योजना खत्म होने की तारीख 31.3.2018 तक संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास फंड (एमपीएलएडी फंड) से 1.45 लाख एसएसएल के लिए फंड स्वीकृत हुआ।

अजय योजना के सकारात्मक असर को देखते हुए 18 दिसंबर वर्ष 2018 को इसका दूसरा चरण लॉन्च किया गया। जिसका समय दो वित्त वर्ष 2018-19 और 2019-20 के लिए था। इस योजना के तहत देशभर में 12 वाट की क्षमता के 3,04,500 सोलर स्ट्रीट लाइट्स लगाना तय किया गया था। इस चरण में फेज़-1 के 5 राज्यों के साथ पर्वतीय राज्य उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और अंडमान निकोबार द्वीप समूह और लक्षद्वीप भी शामिल किए गए।

इन राज्यों के 48 ज़िलों को कवर करने वाले लोकसभा क्षेत्रों को इस योजना में चुना गया। इसमें 75% लागत मंत्रालय को वहन करना था और 25 प्रतिशत संसद सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास फंड (Member of Parliament local area development fund) को वहन करना था। योजना के तहत 2018-19 में 2 लाख और 2019-20 में 1,04,500 एसएसएल लगाए जाने थे। योजना तय समय पर लक्ष्य हासिल नहीं कर सकी और इसका समय 31 मार्च 2021 तक के लिए बढ़ाया गया।

लेकिन वर्ष 2020 में कोरोना संक्रमण के बाद 23 अप्रैल 2020 को ये योजना बंद कर दी गई। वर्ष 2022 तक इसे संचालित न किये जाने का फ़ैसला लिया गया।

सोलर स्ट्रीट लगाने का ज़िम्मा संभाल रही एनर्जी एफिशिएंट सर्विसेस लिमिटेड (ईईएसएल) की वेबसाइट के मुताबिक दोनों चरणों में देशभर में कुल 1.97 लाख सौर एलईडी स्ट्रीट लाइट्स लगाई गई हैं। जो कि तय लक्ष्य से बेहद कम है।

दूसरी दिक्कत इन स्ट्रीट लाइट्स के रखरखाव की है। कफुल्टा गांव में कुछ लाइट्स खराब मिलीं। लेकिन गांव वालों को इनके रखरखाव की जानकारी नहीं थी। सामान्यत स्ट्रीट लाइट लगाने वाली कंपनी को 5 वर्ष तक इन लाइट्स की देखरेख करनी होती है। ग्रामीणों की शिकायत थी कि लाइट खराब होने के बाद इनकी देखरेख के बारे में न तो हमें बताया गया, न ही कभी कोई इन्हें ठीक करने आया।

उत्तराखंड रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (उरेडा) के परियोजना प्रबंधक नीरज गर्ग कहते हैं कि राज्य में उरेडा के अलावा अन्य कई योजनाओं से सोलर स्ट्रीट लाइट लगाई गई हैं। ज़िला योजना, ग्राम प्रधान, पर्यटन विभाग, जलागम, वन विभाग, कृषि विभाग के अलावा विधायक-सांसद निधि से सोलर स्ट्रीट लाइट्स लगी हैं( 

सौर ऊर्जा में हिमालयी राज्यों में उत्तराखंड अव्वल

सौर ऊर्जा के मामले में उत्तराखंड 13 हिमालयी राज्यों की सूची में अव्वल है। राज्य में 551.64 मेगा वाट सोलर पावर उत्पादन हो रहा है। जबकि हिमाचल प्रदेश में 61.26 मेगा वाट। हिमाचल प्रदेश की कुल ऊर्जा उत्पादन क्षमता (1020.77 मेगा वाट, 31.09.2021 तक) है। जबकि उत्तराखंड 905.40 मेगावाट के साथ दूसरे स्थान पर आता है। 

केंद्र सरकार का लक्ष्य है कि वर्ष और 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय बिजली क्षमता हासिल की जा सके। दुर्गम भौगोलिक परिस्थितयों और प्राकृतिक आपदा से जूझते उत्तराखंड के ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा बिजली व्यवस्था का एक भरोसेमंद ज़रिया साबित हो सकता है। ग्रामीण भविष्य में सोलर के ज़रिये आजीविका भी अर्जित कर सकते हैं।

(यह स्टोरी इंटरन्यूज के अर्थ जर्नलिज्म नेटवर्क के सहयोग से तैयार की गई है)