पिछले एक दशक में उत्तर प्रदेश के सकल घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) में 50 फीसदी की दर से इजाफा हुआ, हालांकि देश के 15 राज्य इस मामले में उससे बेहतर रहे, जिनमें यह बढ़ोतरी 52 से लेकर 118 फीसदी तक रही। 2011-12 से लेकर 2018-19 के बीच उत्तर प्रदेश में शहरी क्षेत्रों में बेरोजगारी दर साढ़े छह फीसदी अंकों के हिसाब से बढ़ी। भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, देश के सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सूची में राज्य इस मामले में 11वें नंबर पर था। वित्त वर्ष 2011-12 में राज्य का जीएसडीपी 7,24,050 करोड़ रुपए था, जो वित्त वर्ष 2020-21 में बढ़कर 10,92,623 करोड़ रुपए हो गया।
इसी अवधि के दौरान देश के 15 राज्यों की जीएसडीपी 52 फीसदी से लेकर 118 फीसदी तक बढ़ी। इस तरह अगर जीएसडीपी के आधार पर देखा जाए तो पिछले एक दशक के बीच उत्तर प्रदेश 16वें नंबर पर रहा। यही नहीं, जिस राज्य की अर्थव्यवस्था, देश की सम्पूर्ण आर्थिक वृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है, उसकी जीएसडीपी 2019-20 के दौरान नीचे फिसलकर अपने न्यूनतम स्तर तक पहुंच गई थी। यह 2018-19 की 6.26 फीसदी वृद्धि की तुलना में 2019-20 में सिकुड़कर महज 3.81 फीसदी रह गई थी, जो 2012-13 के बाद जीएसडीपी में सबसे कम वृद्धि थी।
पिछले एक दशक के दौरान मिले रुझानों से संकेत मिलता है कि राज्य में आर्थिक वृद्धि की गति सुस्त हुई है और अगर राज्य एक ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य की ओर आगे बढ़ना चाहता है तो यह गति उसके लिए कतई पर्याप्त नहीं है। धीमी आर्थिक वृद्धि ने ग्रामीण और शहरी क्षेत्र के रोजगार पर भी असर डाला है। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, 2011-12 और 2018-19 के बीच राज्य में ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में बेरोजगारी की दर 4.2 फीसदी अंकों से बढ़कर 6.5 फीसदी अंकों तक पहुंच चुकी थी। रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक, 2018-19 में देश के सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सूची में इस मामले में राज्य 11वें नंबर पर था।