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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव: केन -बेतवा नदी जोड़ो परियोजना का दिखेगा असर?

इस परियोजना में मध्य प्रदेश के पन्ना जिले की तबाही तय मानी जा रही है, जो केन नदी के ऊपरी हिस्से में है

Satyam Shrivastava

तमाम किन्तु-परंतु और पर्यावरणीय सरोकारों को नजरअंदाज करते हुए अपनी तरह की देश की पहली नदी जोड़ो परियोजना को पहले दिसंबर 2021 में कैबिनेट ने आठ सालों के लिए क्रियान्वयन की स्वीकृति दी और अंतत: 2022-23 के आम बजट में आधिकारिक तौर पर मान्यता दे दी गई है।

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इसे अभी भी वन्य जीव स्वीकृति दिये जाने पर निर्णय नहीं लिया है। इसके लिए पूर्व-शर्त के तौर पर भूमि का आबंटन किया जाना भी अभी मध्य प्रदेश द्वारा नहीं हुआ है। इस परियोजना के लिए बांध निर्माण से जो वन भूमि डूब में आएगी, उसकी क्षतिपूर्ति राजस्व भूमि द्वारा किया जाना जरूरी है। इसके लिए 60 वर्ग किलोमीटर की जरूरत है जिसकी व्यवस्था मध्य प्रदेश सरकार अभी तक नहीं कर पायी है। 

बावजूद इसके यह तय कर लिया गया है कि इसे किसी भी सूरत में अमल में लाना है। कुल 44 हजार करोड़ की इस परियोजना के लिए केंद्रीय बजट में मध्य प्रदेश सरकार को इसकी पहली किस्त 14 सौ करोड़ रुपए आबंटित करते हुए अपने इरादे पर मुहर लगा दी है। 

14 सौ करोड़ की इस बड़ी राशि का इस्तेमाल कैबिनेट स्वीकृति के अनुसार आगामी 8 वर्षों में किया जाना है। 1 फरवरी 2022 को पेश किए गए इस बजट में बुंदेलखंड की इलाकाई राजनीति को नयी धार दे दी है, जो निर्विवाद रूप से भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में है। इसे उत्तर प्रदेश चुनावों को ध्यान में रखकर देखे जाने की जरूरत है। 

इसका मुजाहिरा बजट पेश होने के अगले ही दिन यानी 2 फरवरी 2022 को प्रधानमंत्री की एक वर्चुअल रैली के जरिये किया गया। प्रधानमंत्री ने इस परियोजना के लिए आबंटित की गयी राशि का श्रेय लेते हुए इसे बुंदेलखंड की जीवन रेखा बताया और उत्तर प्रदेश की 52 विधानसभा सीटों में भाजपा को वोट देने की अपील की। 

चुनावों की घोषणा और बजट पेश होने के बीच एक द्वंद्व रहा है और ये सवाल चुनाव आयोग के समक्ष भी उठाए जाते रहे हैं कि अगर बजट में उत्तर प्रदेश के लिए कोई बड़ी घोषणाएँ या राशि का आबंटन होता है तो इसे चुनाव आचार संहिता के लिहाज से उचित नहीं माना जा सकता।

इसके पीछे तर्क यह रहे हैं कि केंद्र में भाजपा की सरकार है और उत्तर प्रदेश में भी भाजपा सत्तारूढ दल होने के लिहाज से मुख्य दावेदार के रूप में चुनाव लड़ रही है। इस आशंका पर हालांकि चुनाव आयोग ने यह कहते हुए किनारा किया था कि बजट पेश करने की तारीख नियत है और एक नयी परंपरा के तौर पर यह 1 फरवरी को ही पेश किया जाता है।

भाजपा ने संघीय मर्यादायों को अपने पक्ष में ढालने के लिए एक नया मुहावरा ‘डबल इंजन सरकार’ के रूप में गढ़ा है। हालांकि यह देश के संघीय ढांचे और चरित्र के खिलाफ खुला उद्घोष रहा है, लेकिन इसे व्यावहारिक रूप से लोग सही भी मानते हैं कि अगर दोनों ही निर्णायक स्थानों पर एक ही दल की सरकार होती है तो उसका लाभ प्रदेश को होता है। इसमें कितनी सच्चाई है और वास्तव में इसका लाभ उन राज्यों की जनता को मिला है या नहीं ठोस रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता।

बहरहाल। उत्तर प्रदेश के लिए अपेक्षाकृत अधिक लाभकारी इस परियोजना के लिए मध्य प्रदेश सरकार को आबंटित हुई इस बड़ी राशि को चुनाव आचार संहिता के मद्देनजर एक तरह से केंद्र सरकार की चतुराई के रूप में भी देखा जा रहा है। 

यहाँ यह बताना जरूरी है कि बुंदेलखंड एक भाषायी और सांस्कृतिक इलाका है। जो उत्तर-प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच एक साझा भौगोलिक क्षेत्र है, जिसे एक पृथक राज्य बनाने की राजनैतिक मांग जब-तब उठती रहती है।

भाषाई और सांस्कृतिक रुप से जिस इलाके को बुंदेलखंड कहा जाता है उसमें उत्तर प्रदेश के पाँच जिले और मध्य प्रदेश के आठ जिले शामिल होते हैं। लेकिन अगर आबादी घनत्व के हिसाब से देखें तो मध्य प्रदेश के इन आठ जिलों की आबादी उत्तर प्रदेश के पाँच जिलों की कुल आबादी से लगभग आधा है।

इस परियोजना में मध्य प्रदेश के पन्ना जिले की तबाही तय मानी जा रही है, जो केन नदी के ऊपरी हिस्से में है। इस परियोजना में पन्ना टाइगर रिजर्व का बड़ा हिस्सा डूब क्षेत्र में आएगा और ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि कम से कम 20-25 लाख पुराने पेड़ इसकी भेंट चढ़ने वाले हैं। जिसका सीधा असर इस पूरे विंध्य पहाड़ी क्षेत्र पर पड़ना तय है। 

इस परियोजना से होने वाले व्यापक विनाश की चिंता करते हुए इस क्षेत्र के सांसद और केंद्रीय मंत्री बीरेन्द्र कुमार खटीक ने जून 2021 में प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखकर यह इच्छा जतलाई थी कि इस विनाश की जिम्मेदारी लेते हुए हमें एक ऐसी स्वतंत्र और सक्षम एजेंसी का गठन करना चाहिए जो इतनी बड़ी तादात में पेड़ों की कटाई की क्षतिपूर्ति कर सके।

उन्होंने अपने पत्र में यह भी इच्छा जाहिर की थी कि यह काम स्वयं प्रधानमंत्री के सीधे निगरानी व नियंत्रण में हो। हालांकि इस पत्र का संज्ञान लिया गया या नहीं कहना मुश्किल है। लेकिन इस पत्र से इतना तो तय है कि बीरेन्द्र खटीक के संसदीय क्षेत्र में शामिल तीन जिलों छतरपुर, पन्ना और टीकमगढ़ में कम से कम इस परियोजना को लेकर लोगों के मन में तमाम चिंताएं हैं। 

ऐसे में मध्य प्रदेश के अन्य जिले मसलन दमोह, सागर, शिवपुरी, दतिया और होशंगाबाद जो इस नदी जोड़ो परियोजना के संभावित लाभार्थी बतलाए जाते हैं वहाँ भी लोग इसे बहुत उम्मीद से नहीं देख रहे हैं। इसकी एक बड़ी वजह लोगों के मन में पूर्व में हुई बुंदेलखंड राहत पैकेज में हुआ अथाह भ्रष्टाचार है।

जिस सूखे की वजह से बुंदेलखंड को बड़ा पैकेज मिलता रहा है अब उसी सूखे से निपटने के लिए यह महत्वाकांक्षी परियोजना लायी गयी है। इससे लाभ की कोई गारंटी तो खैर लोगों को नहीं दिख रही है लेकिन अपने जंगलों और पर्यावरण की अपूर्णनीय क्षति निश्चित तौर पर दिखलाई दे रही है।