अर्थव्यवस्था

सरकार ने मानी नोटबंदी की मार, जीडीपी ग्रोथ में कमी का अनुमान

चार साल के निचले स् तर पर आ सकती है अर्थव् यवस् था की विकास दर

Ajeet Singh

अर्थव्‍यवस्‍था के विभिन्‍न क्षेत्रों पर विमुद्रीकरण की मार को स्‍वीकार करने से बचती रही केंद्र सरकार ने आखिरकार इसे स्‍वीकार किया है। केंद्रीय वित्‍त मंत्री अरुण जेटली द्वारा आज संसद में पेश 2016-17 के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि विमुद्रीकरण से जीडीपी की वृद्धि दर पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है, जो अस्‍थायी है। उम्‍मीद जतायी गई है कि मार्च, 2017 तक जैसे ही नकदी की आपूर्ति पूरी तरह बहाल होगी, अर्थव्‍यवस्‍था सामान्य हो जाएगी।

आर्थिक सर्वेक्षण में वित्‍त वर्ष 2017-18 के दौरान वास्‍तविक जीडीपी की ग्रोथ 6.75 से 7.50 फीसदी के बीच रहने का अनुमान लगाया गया है। सर्वेक्षण के मुताबिक, नोटबंदी में कारण वर्ष 2016-17 की जीडीपी ग्रोथ में 0.25 से 0.50 फीसदी तक कमी आ सकती है। चालू वित्‍त की पहली छमाही में यह दर 7.2 फीसदी रही है। स्‍पष्‍ट है कि चालू वित्‍त वर्ष में अर्थव्‍यवस्‍था की विकास दर 7 फीसदी से कम ही रहेगी, जो अगले साल 6.75 फीसदी तक घट सकती है। अगर ऐसा हुआ तो यह पिछले चार साल की सबसे धीमी विकास दर होगी।

हालांकि, साल 2016 में अच्‍छे मानसून ने सरकार को काफी राहत पहुंचाई है। चालू वित्‍त वर्ष के दौरान कृषि क्षेत्र में 4.1 फीसदी की विकास दर का अनुमान है, जबकि पिछले सूखे की वजह से कृषि‍ क्षेत्र की विकास दर मात्र 1.2 फीसदी रही थी। 

जीडीपी ग्रोथ में धीमी वृद्ध‍ि का अनुमान भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की मौजूदा चुनौतियों को व्‍यक्‍त करता है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने और सरकारी व्‍यय में बढ़ोतरी के बावजूद वास्‍तवि‍क जीडीपी की ग्रोथ में उछाल नहीं आया है। निर्यात के लिए भी वैश्विक स्थितियां बहुत अनुकूल नहीं हैं।

साल 2015-16 में जीडीपी की ग्रोथ 7.9 फीसदी रही थी। लेकिन अब इस वृद्ध‍ि दर को छू पाना तो दूर, यह सात फीसदी से भी नीचे आ सकती है। 

नोटबंदी के तात्कालिक और दीर्घकालिक प्रभाव

आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक, विमुद्रीकरण का देश की अर्थव्‍यवस्‍था पर तात्कालिक और दीर्घकालिक दोनों तरह का प्रभाव पड़ेगा। इससे नकदी का प्रवाह घटेगा और अस्‍थायी तौर पर जीडीपी की ग्रोथ धीमी पड़ सकती है। हालांकि, विमुद्रीकरण के कुछ फायदे भी गिनाये गए हैं, जिनमें डिजिटलीकरण में इजाफा, करों के अनुपालन में बढ़ोतरी और प्रॉपर्टी की कीमतों व कर्ज की ब्‍याज दरों में कमी शामिल हैं। 

नोटबंदी के दीर्घकालिक प्रभावों का उल्‍लेख करते हुए आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि रियल एस्‍टेट की कीमतों में गिरावट जारी रही तो निजी संपत्ति में कमी आ सकती है। अघोषित आय को अब रियल एस्‍टेट में लगाना मुश्किल होगाा, इसलिए प्रॉपर्टी कीमतों में गिरावट जारी रह सकती है। लंबी अवधि के दौरान असंगठित क्षेत्रों के प्रदर्शन पर भी बुरा असर पड़ सकता है।

नोटबंदी के बाद आयकर और स्‍थानीय निकायों के राजस्‍व संग्रह में बढ़ोतरी हुई हैै, लेकिन धीमी विकास दर की वजह से आगे चलकर अप्रत्‍यक्ष और कॉरपोरेट करों की अदायगी में कमी आ सकती है।