अर्थव्यवस्था

विश्व व्यापार संगठन: भारत की जीत नहीं हुई, बल्कि छोटे मछुआरों की बर्बादी की शुरुआत

Himanshu Nitnaware
विशेषज्ञों ने कहा है कि हाल ही में सम्पन्न हुए विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के 12वें मंत्रिस्तरीय सम्मेलन का नतीजा भारत के लिए ‘जीत’ नहीं था, जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा पेश किया जा रहा था। इसके बजाय यह आम भारतीय मछुआरों के लिए एक त्रासदी है। 

उन्होंने कहा कि भारत सरकार इस पर राजी हो गई कि चार साल की अवधि में भारतीय मछुआरे ‘आधुनिक’ और अपने वैश्विक सहयोगियों के अनुकूल बन जाएंगे। शुरुआत में भारत ने अन्य विकासशील देशों के साथ बदलाव के इस दौर यानी संक्रमणकालीन अवधि के लिए 25 साल का सुझाव दिया था।

विशेषज्ञों ने कहा कि इसके लिए चार साल का समय काफी नहीं है और यह  भारतीय मछुआरों को अनिश्चित भविष्य की ओर ले जाएगा। उन्होंने भारतीय मछुआरों से सब्सिडी छीन लिए जाने की आशंका पर भी चिंता जाहिर की।

डब्ल्यूटीओ के सम्मेलन में हुए मसौदा-समझौते के अनुच्छेद 12 में कहा गया है कि अगर यह समझौता चार साल में पूरा नहीं होता तो सब्सिडी के प्रावधान तत्काल प्रभाव से निरस्त कर दिए जाएंगे।

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज के सेंटर फॉर इकोनॉमिक स्टडीज एंड प्लानिंग के प्रोफेसर बिस्वजीत धर ने डाउन टू अर्थ को बताया, - ‘यह समझौता, सम्मेलन में तैयार की गई रूपरेखा को एक ढांचा प्रदान करता है और संबंधित देशों को उन प्रावधानों के लिए दो साल के बाद व्यापक बातचीत करने का सुझाव देता है, जिन्हें चार साल के भीतर लागू किया जाना चाहिए।’

उन्होंने आगे कहा, ‘समझौते में विकासशील और कम विकासशील देशों द्वारा मांगे गए स्पेशल एंड डिफरेंशियल ट्रीटमेंट (एस एंड डीटी) दिशा-निर्देशों का कोई उल्लेख नहीं है, जो गरीब और छोटे मछुआरों की रक्षा करते हैं। ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि दो साल के अंदर एस एंड डीटी अनुदान के लिए कोई रास्ता निकालने की संभावनाएं कितनी कम हैं।

धर ने कहा कि समझौते के मुताबिक, पूरी दुनिया में मछली-पालन के लिए मछुआरों को सब्सिडी दी जाती है लेकिन छोटे मछुआरों के लिए विशेष सब्सिडी लागू करने के लिए विशेष प्रावधानों की जरूरत है।

उनके मुताबिक, विशेष प्रावधानों की नामौजूदगी में छोटे मछुआरों के लिए विशेष सब्सिडी संभव नहीं होगी। इससे उनकी दिक्कतें बढ़ेंगी, खासकर भारत जैसे विकासशील देशों के छोटे मछुआरों की।

वह कहते हैं, ‘अगर दो साल के बाद स्पेशल एंड डिफरेंशियल ट्रीटमेंट (एस एंड डीटी) दिशा-निर्देशों को लागू नहीं किया जाता तो भारत और दूसरे विकासशील देशों के लिए यह बहुत असहज स्थिति होगी, और छोटे भारतीय मछुआरे इससे पहले से ज्यादा असुरक्षित हो जाएंगे।’

उनके मुताबिक, ‘ऐसा संगठित प्रयास किया जा रहा है, जिससे खासतौर से चीन और भारत में एस एंड डीटी लागू न होने पाए। दरअसल पश्चिमी देशों का मानना है कि ये दोनों देश उभरती हुई अर्थव्यवस्था हैं और इन्हें विकासशील देशों की तरह नहीं लिया जाना चाहिए।’

धर ने इसकी व्याख्या इस तरह से की कि जहां चीन एक ऊपरी मध्य-अर्थव्यवस्था था और उसने कई पहलुओं में विकास किया, वहीं भारत एक विशेष मामला था।

भारत के कुछ हिस्से, विकसित देशों के की बराबरी करते हैं तो कुछ अन्य हिस्से, कम विकासशील देशों की बराबरी करते हैं। इसलिए राजनीतिक लाइन को अलग रखते हुए भारत के लिए बिना एस एंड डीटी के स्थिति का सामना करना मुश्किल होगा।

भारत के तटीय राज्यों में 15 ट्रेड यूनियनों का प्रतिनिधित्व करने वाले नेशनल फिशवर्कर्स फोरम के महासचिव ओलेन्सियो सिमोस ने कहा, ‘जिस आधार पर विश्व व्यापार संगठन के सम्मेलन में कुछ शर्तों पर सहमति बनी थी, उसके बारे में हमारा दृष्टिकोण संदेहपूर्ण है।’

 उन्होंने कहा कि सब्सिडी समाप्त होने से पहले दो साल की छूट-अवधि, छोटे मछुआरों के लिए फायदेमंद नहीं थी।

वह कहते हैं, ‘सीधी बात यह है कि भारत में सब्सिडी खत्म नहीं की जा सकती। भारतीय मछुआरों को हर साल चीन के 5.64 खरब रुपये की तुलना में एक हजार करोड़ रुपये की सब्सिडी मिलती है। वहीं, यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका क्रमशः 2.98 खरब रुपये और 2.66 खरब रुपये की सब्सिडी हर साल देते हैं।’

भारत ने सम्मेलन में गैर-विशिष्ट ईंधन सब्सिडी के रूप में औद्योगिक और वाणिज्यिक मछली पकड़ने का अभ्यास करने वाले विकसित देशों पर भी दबाव डाला था। गौरतलब है कि मछली- पालन की गतिविधियों से संबंधित यह सब्सिडी, कुल सब्सिडी का 22 फीसदी है।

हालांकि प्रावधान में इस विषय को शामिल हीं नही किया गया,  जिससे विकसित देशों को उनके विकासशील समकक्षों के साथ समान रूप से लाभ मिलता रहता है।

सिमोस ने कहा कि अगर भारतीय मछुआरे से उन्हें दी जाने वाली मामूली सब्सिडी भी छीन ली जाती है तो उन्हें संघर्ष का सामना करना पड़ेगा। यह भारत के लिए बड़ा झटका होगा।

डब्ल्यूटीओ की बैठक 12 से 16 जून, 2022 तक जिनेवा, स्विटजरलैंड में आयोजित की गई थी, जिसमें मुख्य रूप से मछली-पालन सब्सिडी, डब्ल्यूटीओ सुधार और कोविड-19 टीकों के लिए बौद्धिक संपदा छूट जैसे मुद्दों पर चर्चा की गई थी।

इसमें वैश्विक नेताओं में सभी देशों में मछुआरों के लिए सब्सिडी जारी रखने पर सहमति बनी थी। यह निष्कर्ष भी सामने आया था कि भारतीय मछुआरे, विशेष आर्थिक क्षेत्रों के तहत परिभाषित मछली पकड़ने के क्षेत्र को 12 समुद्री मील से 200 समुद्री मील तक बढ़ाने के भी हकदार हैं।

इसके साथ ही देशों में गैरकानूनी, बिना सूचना दिए किए जाने वाले व अनयिंत्रित मछली-पालन को नियंत्रित किए जाने के समझौते पर भी सहमति बनी थी।

केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पियूष गोयल ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ‘ भारत सम्मेलन में सौ फीसदी कामयाब रहा है। देश या सरकार पर कोई निषेध या निर्देश नहीं थोपा गया है। इसके बजाय, हम अवैध रूप से मछली पकड़ने, वास्तविक से कम बताने यानी अंडर-रिपोर्टिंग या बाहरी नियंत्रण पर जांच शुरू करने में सफल रहे हैं।’