अर्थव्यवस्था

दुनिया में 80 साल की सबसे बड़ी आर्थिक मंदी, गरीबों को तुरंत संरक्षण मिले: विश्व बैंक

Shagun

कोविड-19 महामारी का साया अब दुनिया भर के प्रमुख देशों की अर्थव्यवस्थाओं को डगमगा रहा है। विश्व बैंक की ताजा रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में लॉकडाउन होने से उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाएं बड़ी मंदी की ओर जा रही है। यह पिछले 80 साल की सबसे बड़ी आर्थिक मंदी होगी। विश्व बैंक की रिपोर्ट कहती है कि कोविड-19 संकट के कारण लघु अवधि में उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं के उत्पादन में 3-8 फीसदी तक नुकसान होने की आशंका है।

गहरे आर्थिक संकट में भारत जैसे विकासशील देश

विश्व बैंक ने दो जून 2020 को जारी ग्लोबल इकोनॉमी प्रॉसपेक्ट्स एनॉलिसिसरिपोर्ट में कहा है उभरती और विकासशील अर्थव्यवस्थाएं 2009 की वैश्विक आर्थिक मंदी की तुलना में कहीं ज्यादा कमजोर स्थिति में हैं। उसके अनुसार जब कोविड-19 ने पूरी दुनिया को दबोचा तो ज्यादातर उभरती और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाएं आर्थिक संकट का सामना कर रही थी। इन देशों पर न केवल भारी कर्ज है बल्कि इनकी विकास दर भी कमजोर पड़ गई है।

इस मौके पर विश्व बैंक के ग्रुप वाइस प्रेसिडेंट (इक्वीटेबल ग्रोथ, फाइनेंस एंड इंस्टीट्यूशंस) सेइला पाजारबासीग्लू ने कहा ढांचागत समस्याएं और आर्थिक सुस्ती ने मिलकर इन देशों को गहरे आर्थिक संकट के भंवर में फंसा दिया है। जो उन्हें दीर्घकालिक स्तर पर नुकसान पहुंचाएगा

महामारी का असर साल 2020 में विकसित अर्थव्यवस्थों पर भी दिखने की आशंका है। इस वजह से विकसित देशों के साथ-साथ चीन की विकास दर में बड़ी गिरावट की आशंका बढ़ गई है। इन देशों में गहराते संकट का सीधा असर उभरते और विकासशील देशों पर पड़ेगा। रिपोर्ट कहती है कि उभरते और विकासशील देश पहले ही वैश्विक स्तर पर उदारवादी नीति पर चल रहे हैं, इस कारण उनका विकसित देशों से सीधे व्यापार है। साथ ही घरेलू स्तर कमजोर नीतियों की वजह से इन देशों के कारोबारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है।

1.3 फीसदी तक गिर सकती है ग्रोथ रेट

रिपोर्ट के अनुसार अमेरिका, यूरोपीय संघ (27 में से 19 यूरोपीय देश शामिल) और चीन जैसी दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाएं , पूरी दुनिया की 50 फीसदी अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी रखती हैं। ऐसे में अगर अमेरिका या यूरोपीय संघ की ग्रोथ रेट में एक फीसदी की भी गिरावट आती है तो उभरते और विकासशील देशों की ग्रोथ रेट इस साल 0.8 फीसदी और अगले साल 0.7 फीसदी तक कम हो जाएगी। यह गिरावट तब होगी, जब इसमें चीन में हुई गिरावट को नहीं शामिल किया जाएगा। अकेले चीन की अर्थव्यवस्था में इसकी वजह से 0.7 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है।  ऐसे में अगर अमेरिका, यूरोपीय संघ और चीन जैसे देशों की अर्थव्यवस्थाओं की ग्रोथ रेट में एक फीसदी की गिरावट  आती  है, तो उभरते और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं की ग्रोथ रेट अगले साल 1.3 फीसदी गिरने की आशंका है।

6 करोड़ लोग हो जाएंगे गरीब

यह नहीं इसकी वजह से 2020 में करीब 6 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे आ जाएंगे। विश्व बैंक के ग्रुप प्रेसिडेंट डेविड मालपास का कहना है, बढ़ती गरीबी के यह आंकड़े आने वाले दिनों में कहीं ज्यादा बढ़ सकते हैं। मौजूदा वैश्विक आर्थिक मंदी में कच्चे तेल की कीमतों में रिकॉर्ड गिरावट और पूंजी की अनुपलब्धता का संकट भी सामने आया है। इन दो वजहों सें उभरते और विकासशील देशों पर जोखिम बढ़ गया है। खास तौर से ऐसे देश तो कच्चे तेल के बड़े निर्यातक हैं।

पिछले दो दशक में जो वैश्विक स्तर पर व्यापार का ढांचा तैयार हुआ था , वह भी महामारी को रोकने के लिए उठाए गए कदमों की वजह से सवालों के घेरे में हैं। इसके साथ ही इन देशों की आर्थिक सेहत पर भी सवाल खड़े हो गए हैं। रिपोर्ट के अनुसार महामारी की मार, अभी तक की बड़ी प्राकृतिक आपदाओं से भी कहीं ज्यादा है। कोविड महामारी की वजह से हर दस लाख आबादी में 100 लोगों की मौत हो रही है, जो कि दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में कहीं ज्यादा है। छह महीने से कम में ही कोविड-19 एक बड़ी आपदा के रुप में सबको डरा रही है।

गरीबों पर हो खास जोर

पहले की महामारियों की तुलना में कोविड-19 में हुईं ज्यादा मौतों की वजह से इसका पूरा दुनिया को उत्पादकता के आधार पर भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। मालपास का कहना है संकट की घड़ी में नुकसान को कम करने के लिए जरूरी है कि निवेश बढ़ाने के साथ-साथ गरीबों को नकद ह्स्तांतरण और ज्याडा डिजिटल कनेक्टिविटी बढ़ाई जाय। उनके अनुसार महामारी के बाद रिकवरी के समय दुनिया के सामने ऐसे इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार करने की सबसे बड़ी चुनौती होगी, जो ज्यादा से ज्यादा लोगों को रोजगार दिला सकें और उत्पादकता बढ़ा सकें।

इसके अलावा नीतिगत स्तर पर कानूनी प्रक्रिया को सरल करने, दिवालिया कानून को आसान करने, सब्सिडी को तर्कसंगत करने की भी जरूरत है। इसके लिए बाजार पर एकाधिकार और कंपनियों के लिए संरक्षणवादी नीतियों को भी बदलने की जरूरत है। तभी हम इस संकट से जल्द से जल्द उबर सकेंगे।