अर्थव्यवस्था

कैसी होगी कोविड-19 के बाद दुनिया-2: ध्वस्त होती अर्थव्यवस्थाएं

कोविड-19 के कारण जो स्पष्ट हो रहा है वह यह है कि बाजारों के बारे में हमारी धारणाएं कितनी झूठी हैं

DTE Staff

माना जा रहा है कि कोरोनावायरस बीमारी (कोविड-19) के बाद दुनिया में बड़ा बदलाव आएगा। इंग्लैंड स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ सुरे के सेंटर फॉर द अंडरस्टैंडिंग ऑफ सस्टेनेबल प्रोस्पेरिटी के ईकोलॉजिकल इकोनोमिक्स में रिसर्च फेलो सिमोन मेयर ने इस विषय पर एक लंबा लेख लिखा, जो द कन्वरसेशन से विशेष अनुबंध के तहत डाउन टू अर्थ में प्रकाशित किया जा रहा है। इसकी पहली कड़ी में आपने पढ़ा, कैसी होगी कोविड-19 के बाद दुनिया-1: भविष्य की आशंकाएं । पढ़ें, दूसरी कड़ी-  

कोविड-19 की प्रतिक्रियाओं को समझने का आधार यही एक प्रश्न है कि अर्थव्यवस्था क्या है। वर्तमान में वैश्विक अर्थव्यवस्था का प्राथमिक उद्देश्य धन के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाना है। इसे अर्थशास्त्री एक्सचेंज वैल्यू कहते हैं।

मूलरूप से, लोग उन चीजों पर पैसा खर्च करेंगे जिन्हें वो पाना चाहते हैं या जिनकी उन्हें जरूरत है और उनके पैसे खर्च करने का तरीका हमें इस बारे में बताता है कि वे इसके उपयोग को कितना महत्व देते हैं। यही कारण है कि बाजारों को समाज को चलाने के सर्वोत्तम तरीके के रूप में देखा जाता है। वे आपको अनुकूल होने देते हैं और उपयोग-मूल्य के साथ उत्पादन क्षमता से मेल खाने के लिए पर्याप्त लचीले होते हैं।

कोविड-19 के कारण जो स्पष्ट हो रहा है वह यह है कि बाजारों के बारे में हमारी धारणाएं कितनी झूठी हैं। दुनियाभर में सरकारों को डर है कि महत्वपूर्ण कार्यतंत्र- आपूर्ति श्रृंखला, सामाजिक देखभाल और मुख्य रूप से स्वास्थ्य देखभाल बाधित या अतिभारित होंगे। इसमें बहुत से कारकों का योगदान है, लेकिन हम दो कारकों की ही बात करते हैं।

सबसे पहली बात, कई सारे सबसे आवश्यक सामाजिक सेवाओं से पैसा कमा पाना काफी कठिन काम है। ऐसा कुछ हद तक है, क्योंकि मुनाफे का एक प्रमुख कारक श्रम उत्पादकता वृद्धि है, यानी कम लोगों के साथ अधिक कार्य करना। कई व्यवसायों में लोग लागत का एक बड़ा कारक हैं, विशेष रूप से स्वास्थ्य सेवा जैसे व्यक्तिगत संवाद पर भरोसा करने वाले व्यवसाय। नतीजतन, स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में उत्पादकता में वृद्धि बाकी अर्थव्यवस्था की तुलना में कम हो जाती है, इसलिए इसकी लागत औसत से अधिक तेजी से बढ़ती है।

दूसरी बात, कई महत्वपूर्ण सेवाओं में नौकरियां वैसी नहीं हैं, जिसका मूल्य समाज में सबसे अधिक हो। कई बेहतरीन भुगतान वाली नौकरियां तो सिर्फ विनिमय की सुविधा देने, पैसा बनाने के लिए हैं। वे समाज के लिए कोई व्यापक उद्देश्य नहीं रखती। वे वही हैं जिन्हें मानवविज्ञानी डेविड ग्रेबर बकवास नौकरियां कहते हैं। इसके बावजूद हमारे पास बहुत सारे सलाहकार हैं, एक बड़ा विज्ञापन उद्योग है और एक विशाल वित्तीय क्षेत्र है क्योंकि वे अधिक पैसा बनाते हैं। इस दौरान, हमारे यहां स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल का एक संकटकाल चल रहा है, जहां अक्सर लोगों को उन उपयोगी नौकरियों को छोड़ना पड़ता है जिन्हें वो पसंद करते हैं क्योंकि इन नौकरियों से उन्हें जीने के लिए पर्याप्त भुगतान नहीं मिलता।

बेकार की नौकरियां

चूंकि इतने सारे लोग व्यर्थ के काम करते हैं, आंशिक रूप से इसीलिए हम कोविड-19 का जवाब देने के लिए इतने तैयार नहीं हैं। महामारी ने इस बात को उजागर कर दिया है कि कई नौकरियां आवश्यक नहीं हैं, इसके बावजूद जब चीजें गलत होने लग जाती हैं, तब संभालने के लिए पर्याप्त मात्रा में महत्वपूर्ण कर्मचारियों की कमी रहती है।

लोग व्यर्थ के काम करने के लिए मजबूर हैं क्योंकि ऐसे समाज में जहां विनिमय मूल्य अर्थव्यवस्था का मार्गदर्शक सिद्धांत है, जीवन की बुनियादी जरूरतें मुख्य रूप से बाजारों के माध्यम से उपलब्ध होती हैं। इसका मतलब है कि आपको उन्हें खरीदना होगा और उन्हें खरीदने के लिए आपको एक आय की आवश्यकता होगी, जो नौकरी से आती है।

इस सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि हम कोविड-19 प्रकोप पर जो सबसे अधिक तीव्र (और प्रभावी) प्रतिक्रियाएं देख रहे हैं, वे बाजारों के प्रभुत्व और विनिमय मूल्य को चुनौती देते हैं। दुनियाभर में सरकारें ऐसी कार्रवाई कर रही हैं जो तीन महीने पहले असंभव दिखती थीं। स्पेन में निजी अस्पतालों का राष्ट्रीयकरण किया गया है। यूके में परिवहन के विभिन्न साधनों के राष्ट्रीयकरण की संभावना बहुत वास्तविक हो गई है। और फ्रांस ने बड़े व्यवसायों का राष्ट्रीयकरण की इच्छा जताई है।

इसी तरह, हम श्रम बाजारों का टूटना देख रहे हैं। डेनमार्क और यूके जैसे देश लोगों को भुगतान दे रहे हैं ताकि उन्हें काम पर जाने से रोका जा सके। यह एक सफल लॉकडाउन का एक अनिवार्य हिस्सा है। ये उपाय पूर्णरूप से दोष रहित नहीं हैं, बहरहाल यह उस सिद्धांत में एक बदलाव है जिसके तहत लोगों को अपनी आय अर्जित करने के लिए काम करना पड़ता है और इस विचार की ओर एक कदम है कि लोग काम न कर सकने के बावजूद जीवन जीने के लिए सक्षम होने के पात्र हैं।

यह पिछले 40 वर्षों के प्रमुख रुझानों को उलट देता है। समय के साथ, बाजारों और विनिमय मूल्यों को एक अर्थव्यवस्था को चलाने के सर्वोत्तम तरीके के रूप में स्थापित किया गया है। नतीजतन, सार्वजनिक सेवाओं पर बाजारीकरण और उन्हें पैसा बनाने वाले व्यवसाय की तरह चलाने का दबाव बढ़ गया है। इसी तरह, श्रमिक बाजार के ज्यादा से ज्यादा संपर्क में आ गए हैं। जीरो आवर अनुबंध और गिग अर्थव्यवस्था ने बाजार के उतार-चढ़ाव से सुरक्षा की वह परत हटा दी है, जो एक दीर्घकालिक, स्थिर, रोजगार से मिलती थी। स्वास्थ्य सेवा और श्रम सामग्रियों को बाजार से बाहर निकालकर राज्य के हाथों में सौंपते हुए कोविड-19 महामारी इस प्रवृत्ति को पलटती हुई दिखती है। राज्य कई कारणों से उत्पादन करते हैं। कुछ अच्छे कारण होते हैं और कुछ बुरे। लेकिन बाजारों के विपरीत, उन्हें सिर्फ विनिमय मूल्य के लिए उत्पादन नहीं करना पड़ता।

ये बदलाव मुझे उम्मीद देते हैं। वे हमें कई लोगों की जान बचाने का मौका देते हैं। वे दीर्घकालिक परिवर्तन की संभावना का भी संकेत देते हैं जो हमें खुश करता है और जलवायु परिवर्तन से निपटने में हमारी मदद करता है, लेकिन हमें यहां पहुंचने में इतना समय क्यों लगा? कई सारे देश उत्पादन को धीमा करने के लिए इतने कम तैयार क्यों थे? इसका जवाब विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक हालिया रिपोर्ट में निहित है जो कहती है कि उनकी मानसिकता सही नहीं थी।

हमारा आर्थिक प्रबंधन

करीब 40 वर्षों से व्यापक स्तर पर एक आर्थिक सहमति कायम है। इससे राजनेताओं और उनके सलाहकारों की व्यवस्था में कमियों को देखने या उनके विकल्पों के बारे में सोचने की क्षमता सीमित हो गई है। यह मानसिकता एक-दूसरे से जुड़ी दो मान्यताओं से प्रेरित है:

•• बाजार वह है जो जीवन को एक अच्छी गुणवत्ता प्रदान करता है, इसलिए इसकी सुरक्षा की जानी चाहिए

• • कुछ समय के संकट के बाद बाजार हमेशा सामान्य हो जाएगा

ये विचार कई पश्चिमी देशों के लिए आम हैं। लेकिन, वे यूके और यूएस में सबसे मजबूत हैं, दोनों ही कोविड-19 का जवाब देने के लिए बिल्कुल भी तैयार नहीं हैं।

यूके में एक निजी कार्यक्रम में उपस्थित लोगों ने कोविड-19 के प्रति प्रधानमंत्री के सबसे वरिष्ठ सहयोगी के दृष्टिकोण के बारे में संक्षेप में जानकारी दी और कथित तौर पर उनके “हर्ड इम्युनिटी, अर्थव्यवस्था की रक्षा और बुजुर्गों की मौत” संबंधी बयान के बारे में बताया। हालांकि, सरकार से इससे इनकार किया है, लेकिन अगर यह सच है तो भी इसमें कुछ आश्चर्य नहीं है। महामारी की शुरुआत में एक सरकारी कार्यक्रम में एक वरिष्ठ नौकरशाह ने मुझसे कहा, “क्या इसके लिए अर्थव्यवस्था को ध्वस्त कर देना ठीक है? यदि आप जीवन के खजाने का मूल्यांकन करते हैं, तो शायद नहीं।”

इस तरह का नजरिया एक विशेष अभिजात्य वर्ग में व्याप्त है। टेक्सास के एक अधिकारी ने इसे अच्छी तरह से पेश किया, जिसने तर्क दिया कि कई बुजुर्ग लोग आर्थिक मंदी में अमेरिका को डूबते देखने की बजाय खुशी से मरना पसंद करेंगे। यह नजरिया कई कमजोर लोगों को खतरे में डालता है (और सभी कमजोर लोग बुजुर्ग नहीं हैं), और जैसा कि मैंने यहां बताने की कोशिश की है, यह एक गलत विकल्प है।

कोविड-19 संकट की वजह से जो चीजें हो रही हैं, उनमें से एक है आर्थिक कल्पना का विस्तार। सरकारें और नागरिक ऐसे कदम उठा रहे हैं, जो 3 महीने पहले असंभव लगते थे। दुनिया कैसे काम करती है, इस बारे में हमारे विचार तेजी से बदल सकते हैं। आइए हम देखें कि यह फिर से कल्पना हमें कहां ले जा सकती है।