अर्थव्यवस्था

कैसी होगी कोविड-19 के बाद दुनिया-4: राज्य समाजवाद या परस्पर सहयोग

अगर गहरी मंदी होती है और आपूर्ति शृंखलाएं बाधित होती हैं, तो मांग को इस तरह की कीन्सवादी नीतियों के बूते नहीं बचाया जा सकता

DTE Staff

माना जा रहा है कि कोरोनावायरस बीमारी (कोविड-19) के बाद दुनिया में बड़ा बदलाव आएगा। इंग्लैंड स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ सुरे के सेंटर फॉर द अंडरस्टैंडिंग ऑफ सस्टेनेबल प्रोस्पेरिटी के ईकोलॉजिकल इकोनोमिक्स में रिसर्च फेलो सिमोन मेयर ने इस विषय पर एक लंबा लेख लिखा, जो द कन्वरसेशन से विशेष अनुबंध के तहत डाउन टू अर्थ में प्रकाशित किया जा रहा है। इसकी पहली कड़ी में आपने पढ़ा, कैसी होगी कोविड-19 के बाद दुनिया-1: भविष्य की आशंकाएं । दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा- कैसी होगी कोविड-19 के बाद दुनिया-2: ध्वस्त होती अर्थव्यवस्थाएं । तीसरी कड़ी में आपने पढ़ा- कैसी होगी कोविड-19 के बाद दुनिया-3: पूंजीवाद रहेगा या समाजवाद । पढ़ें, अगली कड़ी- 

राज्य-समाजवाद

राज्य-समाजवाद भावी सौदों का वर्णन करता है, जिसे हम एक सांस्कृतिक बदलाव के तौर पर देख सकते हैं, जो अर्थव्यवस्था के दिल में एक अलग तरह का मूल्य रखता है। यह वह भविष्य है जिसे हम वर्तमान में यूके, स्पेन और डेनमार्क में अपनाए जा रहे उपायों के विस्तार के साथ देख रहे हैं।

यहां कुंजी यह है कि अस्पतालों के राष्ट्रीयकरण और श्रमिकों को भुगतान जैसे उपायों को बाजारों की सुरक्षा के टूल के तौर पर नहीं देखा जाता है, बल्कि यह जीवन की रक्षा करने का एक तरीका है। ऐसे परिदृश्य में राज्य जीवन के लिए आवश्यक अर्थव्यवस्था के उन हिस्सों की रक्षा के लिए कदम उठाता है, जो जीवन के लिए आवश्यक हैं। उदाहरण के लिए भोजन, ऊर्जा और आश्रय का उत्पादन, ताकि जीवन के बुनियादी प्रावधान अब बाजार के शिकंजे में न हो। राज्य अस्पतालों का राष्ट्रीयकरण करता है और आवास को स्वतंत्र रूप से उपलब्ध कराता है। अंत में यह सभी नागरिकों तक विभिन्न सामानों को मुहैया कराने का साधन प्रदान करता है और इस तरह हम कम श्रमिकों के साथ बुनियादी व अन्य उपभोक्ता वस्तुओं, दोनों का उत्पादन कर पाने में सक्षम हो पाते हैं।

नागरिक अब खुद के और जीवन की बुनियादी सामग्रियों के बीच एक मध्यस्थ के तौर पर नियोक्ताओं पर निर्भर नहीं होते। सभी को सीधे भुगतान किया जाता है और यह उनके द्वारा सृजित विनिमय मूल्य से संबंधित नहीं होता है। बल्कि, इसकी जगह सभी को एक समान भुगतान किया जाता है (इस आधार पर कि हम जीवित हैं, इसलिए जीने के योग्य हैं), या फिर उनके काम की उपयोगिता पर आधारित होता है। सुपरमार्केट के कर्मचारी, डिलीवरी ड्राइवर, वेयरहाउस स्टेकर, नर्स, शिक्षक और डॉक्टर इस व्यवस्था के नए सीईओ होते हैं।

यह संभव है कि राज्य-समाजवाद राज्य-पूंजीवाद के प्रयासों और लंबे समय तक महामारी के प्रभावों के परिणामस्वरूप उभरता है। अगर गहरी मंदी होती है और आपूर्ति शृंखलाएं बाधित होती हैं, तो मांग को इस तरह की कीन्सवादी नीतियों के बूते नहीं बचाया जा सकता, जिन्हें हम अभी देख रहे हैं (धन को मुद्रित करना, ऋण प्राप्त करने को आसान बनाना आदि)। राज्य उत्पादन का अधिग्रहण कर सकता है। इस दृष्टिकोण के अपने जोखिम हैं, हमें अधिनायकवाद से बचने के लिए सावधान रहना चाहिए। लेकिन अच्छा बात यह है कि कोविड-19 के अत्यधिक फैल जाने पर यह हमारी सबसे अच्छी उम्मीद हो सकती है। एक मजबूत राज्य अर्थव्यवस्था और समाज के मुख्य कार्यों की रक्षा के लिए संसाधनों को सुव्यवस्थित करने में सक्षम होता है।

पारस्परिक सहयोग

पारस्परिक सहयोग दूसरा भविष्य है, जिसमें हम अपनी अर्थव्यवस्था के मार्गदर्शक सिद्धांत के तौर पर जीवन की सुरक्षा को अपनाते हैं। लेकिन, इस परिदृश्य में राज्य एक परिभाषित भूमिका नहीं निभाता। बल्कि, व्यक्ति और छोटे समूह अपने समुदायों के भीतर लोगों की मदद और देखभाल करना शुरू करते हैं। इस भविष्य के साथ जोखिम यह है कि छोटे समूह, उदाहरण के लिए स्वास्थ्य सेवाओं की क्षमता को प्रभावी ढंग से बढ़ाने के लिए आवश्यक संसाधनों को तेजी से जुटाने में असमर्थ हैं। लेकिन, पारस्परिक सहायता संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए अधिक प्रभावी रोकथाम करने में सक्षम हो सकती है, सामुदायिक सपोर्ट नेटवर्क का निर्माण करके वह कमजोरों की रक्षा कर सकती है और पुलिस के आइसोलेशन नियमों को लागू कर सकती है। इस भविष्य का सबसे महत्वाकांक्षी रूप नए लोकतांत्रिक ढांचे का सृजन है। समुदायों के समूह सापेक्ष गति के साथ पर्याप्त संसाधन जुटाने में सक्षम हैं।

बीमारी को फैलने से रोकने और (अगर उनके पास कौशल है तो) मरीजों का इलाज करने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर योजनाएं बनाने को लेकर लोग एक-दूसरे के साथ आगे आ रहे हैं। इस तरह का परिदृश्य किसी भी अन्य तरह से उभर सकता है। यह बर्बरता या राज्य-पूंजीवाद से बाहर निकलने का एक संभावी तरीका है और राज्य-समाजवाद का समर्थन कर सकता है। हम जानते हैं कि पश्चिम अफ्रीकी के इबोला प्रकोप से निपटने के लिए सामुदायिक प्रतिक्रियाएं केंद्रित थीं। और हम पहले से ही इस भविष्य की जड़ों को आज देखभाल व सामुदायिक सहायता मुहैया करा रहे समूहों के तौर पर देख रहे हैं। हम इसे राज्य की प्रतिक्रियाओं की विफलता के रूप में देख सकते हैं। या फिर हम इसे सामने आए संकट के लिए एक व्यावहारिक, दयालु सामाजिक प्रतिक्रिया के रूप में भी देख सकते हैं।

आशा और भय

ये परिकल्पनाएं चरम पर पहुंचे परिदृश्य हैं और जिनके एक-दूसरे में मिल जाने की संभावना है। मेरा भय राज्य पूंजीवाद के बर्बरता में बदल जाने को लेकर है। मेरी आशा राज्य-समाजवाद और पारस्परिक सहायता का मिलन है। एक मजबूत, लोकतांत्रिक राज्य, मजबूत स्वास्थ्य प्रणाली के निर्माण के लिए संसाधनों को जुटाता है, बाजार के मालिकों से कमजोर लोगों की रक्षा करने को प्राथमिकता देता है और नागरिकों को निरर्थक काम करने की जगह पारस्परिक सहायता समूह के निर्माण में सक्षम बनाता है।

इन सभी परिदृश्यों में भय के लिए कुछ आधार हैं, तो कुछ आशा के लिए भी। कोविड-19 हमारे मौजूदा सिस्टम में गंभीर कमियों को उजागर कर रहा है। इस पर एक प्रभावी प्रतिक्रिया के लिए क्रांतिकारी सामाजिक परिवर्तन की आवश्यकता है। मैंने तर्क दिया है कि इसके लिए सख्ती के साथ बाजारों से दूर जाने और मुनाफे का उपयोग प्राथमिक तौर पर अर्थव्यवस्था को व्यवस्थित करने की आवश्यकता है। इसके उलट एक संभावना यह है कि हम एक अधिक मानवीय व्यवस्था का निर्माण करें, जो हमें भविष्य की महामारियों और जलवायु परिवर्तन जैसे अन्य आसन्न संकटों का सामना करने के लिए और अधिक लचीला बनाती है।

सामाजिक परिवर्तन कई स्थानों से और कई प्रभावों के साथ आ सकते हैं। हम सभी के लिए एक महत्वपूर्ण कार्य इस बात की मांग करना है कि उभरते सामाजिक स्वरूपों में ऐसी नैतिकताएं हों, जो देखभाल, जीवन और लोकतंत्र को महत्व देते हैं। संकट के इस समय में केंद्रीय राजनीतिक कार्य उन मूल्यों के इर्द-गिर्द बने रहना और उन्हें (वर्चुअली) संगठित करना है।

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