(लेखक डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक हैं)
भारतीय संविधान से अनुच्छेद 370 हटाने के ऐतिहासिक निर्णय से जुड़ी खबरों के बावजूद अखबार के पहले पन्ने आर्थिक मंदी की उभरती हुई खबरों की उपेक्षा नहीं कर सकते। स्थिति यह है कि कश्मीर को लेकर चिंताकुल प्रधानमंत्री और उनकी कैबिनेट व्यावसायिक दिग्गजों के साथ बैठकें कर रही है। वित्त मंत्रालय ने भी प्रधानमंत्री कार्यालय को अर्थव्यवस्था को बचाने के लिए सुधारों की एक छोटी सूची सौंपी है। जल्द ही व्यापारिक घरानों के लिए करों में बड़ी छूट की खबरें आपको समाचारों में पढ़ने को मिलेंगी।
अर्थव्यवस्था को बचाने की रणनीति बेहद सुस्त और चौंकाने वाली है। हमेशा ग्रामीण आबादी के बीच खपत को बढ़ाने की ओर ध्यान दिया जाता है। इसका मतलब है कि लोगों के हाथ में पैसा हो ताकि वे खर्च कर सकें। इससे बिक्री बढ़ेगी और व्यावसायिक घरानों को लाभ होगा। जितना ज्यादा लाभ होगा उतना ही ज्यादा सरकार को कर मिलेगा। हम जानते हैं कि सरकार कर को कल्याणकारी कार्यक्रमों के लिए खर्च करती है। इतना ही नहीं इससे ग्रामीण आबादी के बीच गरीबी भी कम होगी।
लेकिन सवाल यही है कि व्यावसायिक घराने क्या अपनी आय के मुताबिक ही कर का भुगतान करते हैं? हम सभी कर मुक्त क्षेत्र (टैक्स हेवेन) के बारे में जानते हैं। ऐसे देश या क्षेत्र हैं जहां व्यावसायिक घराने अपना संचालन करते हैं या फिर वहां पंजीकृत हैं लेकिन वे उस स्थान पर कर चुकाने से मुक्त हैं। उदाहरण के तौर पर एक कंपनी यदि भारत में अपना व्यवसाय कर रही है और उसका पंजीकरण कर मुक्त क्षेत्र में है तो वह न ही लाभ और न ही कर में अपनी कोई हिस्सा देगी। दूसरी चीज है कि व्यावसायिक घराने समूहिक आर्थिक प्रदर्शन के आधार पर ही कर चुकाते हैं। इसमें कोई एक प्रतिष्ठान समूह में शामिल नहीं होता। हम इसे कर चोरी (टैक्स एवॉइडेंस) ही कहते हैं।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) ने अनुमान लगाया है कि व्यावसायिक समूह के जरिए इस कर चोरी के कारण सरकारों को 200 अरब डॉलर से 600 अरब डॉलर तक का वैश्विक राजस्व नुकसान हो सकता है। नुकसान का यह आकलन विकसित और विकासशील दोनों देशों के लिए है। थिंक टैंक “द टैक्स जस्टिस नेटवर्क” के अनुसार राजस्व का यह नुकसान 500 अरब डॉलर के आसपास होगा। वहीं, कम आय वाले देशों को करीब 200 अरब डॉलर का नुकसान हो रहा है।
पूरी दुनिया में 65 करोड़ लोग 1.90 डॉलर प्रतिदिन की आय यानी अंतरराष्ट्रीय गरीबी रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहे हैं। यदि 500 अरब डॉलर में से दुनिया के प्रत्येक गरीब में दो डॉलर बांट दिया जाएं तो इससे वैश्विक गरीबी दूर हो सकती है। भले ही वह कुछ दिनों की हो या फिर कुछ हफ्तों की।
बहुराष्ट्रीय कंपनियों के जरिए की जा रही कर चोरी की विषमता को कम करने के लिए वैश्विक स्तर पर बातचीत जारी है। पिछली गर्मी में आर्थिक समन्वय और विकास संगठन (ओईसीडी) ने इसकी कटौती की रणनीति पर बातचीत की थी। ओईसीडी के चर्चित और प्रस्तावित बिंदुओं में कहा गया है कि इसके लिए बंटवारे का दृष्टिकोण अपनाना होगा। एक-एक कंपनी के बजाए बहुराष्ट्रीय समूह के स्तर पर लाभ का आकलन करना होगा। वहीं, कर का बंटवारा प्रत्येक इकाई की वास्तविक आर्थिक गतिविधि के अनुपात में संचालन करने वाले देशों के बीच करना होगा। ओईसीडी ने अपनी इस योजना को “बेस इरोजन एंड प्रॉफिट शिफ्टिंग एक्शन प्लान” नाम दिया था। यह योजना धरातल पर आ चुकी है। 2013-15 में इस योजना के तहत लाभ में कमी का लक्ष्य तय किया था। इस वक्त कई कंपनियां अपनी आर्थिक गतिविधि और लाभ के आंकड़े देशों में बताती हैं। इन आंकड़ों से विषम कर साझेदारी का पता चलता है।
जी-24 देशों के साथ भारत भी इस बात का समर्थन कर रहा है कि कंपनियों की वास्तविक लोकेशन, रोजगार और बिक्री के आधार पर उनसे कर वसूला जाए। हालांकि यह कहना जितना आसान है, करना उतना ही मुश्किल।
(लेखक डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक हैं)