अर्थव्यवस्था

हिमाचल का यह गांव, जहां इंसान या चीजों को छूने पर लिया जाता है जुर्माना

12 हजार फुट की ऊंचाई पर बसे हिमाचल का गांव मलाणा विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है, लेकिन कोरोनावायरस संक्रमण को देखते हुए 15 अगस्त तक इस लोगों ने रास्ते बंद कर दिए हैं

Rohit Prashar

कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए भारत समेत दुनिया के सभी देश जिस सोशल डिस्टेंसिग की बात कर रहे हैं, वह दुनिया के सबसे पुराने लोकतंत्र और सिकंदर सैनिकों के वशंजों के रूप में पहचाने वाले हिमाचल प्रदेश के मलाणा क्षेत्र में सदियों से प्रचलित है। 12000 फुट की ऊंचाई पर बसे मलाणा में 4500 के करीब लोग रहते हैं। इस गांव के अपने कायदे-कानून हैं और इसमें न ही सरकार के कानून चलते हैं और न ही न्यायपालिका के।

मलाणा में हर साल देश-दुनिया के हजारों पर्यटक घूमने के लिए आते हैं, लेकिन गांव के बाहर से आने वाले किसी भी व्यक्ति को गांव के किसी भी चीज और व्यक्ति को छूने की अनुमति नहीं हैं। गांव के इस कानून के बारे में पर्यटकों का अवगत करवाने के लिए बड़े-बड़े बोर्ड लगाए गए हैं, जिनमें हिंदी और अंग्रेजी में किसी भी व्यक्ति और परिसर को छूने पर 1000 से 2500 रुपए तक का जुर्माना किए जाने के बारे में लिखा गया है।

इस सबके बावजूद गांव को कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए ग्राम परिषद, देव कमेटी, युवक मंडल और महिला मंडल ने मिलकर फैसला लिया है कि गांव को 15 अगस्त तक बाहरी लोगों के लिए बंद कर दिया जाएगा। बाहरी लोग गांव में न घुस पाए इसके लिए सभी प्रतिनिधियों ने फैसला लिया है कि गांव के सभी प्रवेश रास्तों पर हर समय पहरा दिया जाएगा और यदि कोई गांव में घुसने की कोशिश करेगा तो उसे बाहर रखा जाएगा।

पंचायत प्रधान भाग राम का कहना है कि कोरोना संक्रमण से पूरे विश्व में बहुत सी जानें जा रही हैं, ऐसे में गांव व गांवासियों को इस संक्रमण से बचाए रखने के लिए हम सबने मिलकर फैसला लिया है कि गांव को बाहरी लोगों के लिए पूरी तरह बंद कर दिया जाएगा।

उन्होंने कहा कि हालांकि सरकार ने 3 मई तक लाॅकडाउन का फैसला लिया है, लेकिन हमने एहतियात के तौर पर 15 अगस्त तक बाहरी लोगों के गांव में आने पर पाबंदी लगाई है। उन्होंने कहा कि गांव में हर साल कई विदेशियों सहित पर्यटक घुमने के लिए आते हैं, लेकिन इन्हें भी गांव के किसी भी व्यक्ति को छूने की अनुमति नहीं है।

पर्यटन व्यवसाय से जुडे और हिमालयन ट्रेवलर के एमडी पुष्पेंद्र शर्मा ने बताया कि मलाणा शुरू से पर्यटकों के लिए आकर्षण के केंद्र रहा है। यहां पर देश-दुनिया के बहुत से लोग घुमने के लिए आते हैं, ऐसे में इस क्षेत्र में संक्रमण से बचाने के लिए गांववालों ने एकदम सही फैसला लिया है।

उन्होंने कहा कि गांव में वैसे भी सोशल डिस्टैंसिंग प्रचलित है। यदि किसी बाहरी व्यक्ति को गांव में कोई सामान खरीदना हो तो वह पैसे सीधे दुकानदार के हाथ में नहीं देता है, बल्की पैसों को जमीन में रखा जाता है और इसी तरह बाहरी व्यक्ति को दुकानदार की ओर से सामान दिया जाता है। इन लोगों में मान्यता है कि बाहरी लोगों के साथ ज्यादा मेलजोल के कारण देवदोष लग जाता है।

भारतीय प्रदेश का अंग होने के बावजूद भी मलाणा की अपनी न्यायपालिका और कार्यपालिका है। यहां न ही तो सरकार और न ही पुलिस का अधिकार चलता है यहां के अपने कायदे-कानून हैं। यहां सभी फैसले देव नीति से होते हैं। गांव का राज चलाने के लिए दो सदन हैं जिनमें से एक को ज्येष्ठांग यानि ग्राम परिषद कहते हैं जिसमें 11 सदस्य होते हैं। जिन्हें गांव के देवता ऋषि जमलू के प्रतिनिधियों के रूप में जाना जाता है। जबकि दूसरे सदन को कनिष्ठांग कहते हैं जिसमें प्रत्येक घर का मुखिया सदस्य होता है।  इस गांव की राजनीतिक व्यवस्था प्राचिन ग्रीस की व्यवस्था से मिलती है। इस वजह से मलाणा को हिमालय का एथेंस भी कहा जाता है।

मलाणा पहुंचने के लिए केवल दो ही रास्ते हैं और इन दोनों ही रास्तों में सफर के दौरान जोखिम भरे पैदल रास्तों को पार करना पड़ता है। यहां पहुंचने के लिए पहला रास्ता कुल्लू के नग्गर से है और दूसरा जरी से। नग्गर से जाना हो तो 30 किलोमीटर का पैदल सफर तय करना पड़ता है और इस रास्ते में चंद्रखनी दर्रा पार करना पड़ता है। वहीं जरी के रास्ते 15 किलोमीटर की जोखिमभरी खड़ी और चढ़ाई करनी होती है।
इसके अलावा मलाणा के लिए कोई तीसरा रास्ता नहीं है। मलाणा चरस के लिए बहुत प्रसिद्ध है यहां के लोग इसे काला सोना कहते हैं और देश-दुनिया में इसे मलाणा क्रीम के नाम से जाना जाता है। इसके लिए भी बहुत से लोग यहां पहुंचते हैं। बाहरी लोग गांव में प्रवेश न कर सके, इसके लिए गांव वालों ने इन दोनों ही रास्तों में पहरा बिठा दिया है।