अर्थव्यवस्था

संयुक्त राष्ट्र आर्थिक रिपोर्ट की चेतावनीः मंद रहेगी आर्थिक वृद्धि, सतत विकास लक्ष्य होंगे प्रभावित

वैश्विक व्यापार में गिरावट, सार्वजनिक ऋण में वृद्धि, निवेश में निरतंर कमी और बढ़ता भूराजनीतिक तनाव वैश्विक आर्थिक वृद्धि के लिए खतरा बन गया है

DTE Staff

साल 2026 में दुनिया की आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट आएगी, जिसका असर सतत विकास लक्ष्यों पर भी दिखाई देगा। पांच जनवरी 2024 को जारी संयुक्त राष्ट्र विश्व आर्थिक स्थिति एवं सम्भावनाएं (डब्ल्यूईएसपी) 2024 में अनुमान लगाया गया है कि विश्व की आर्थिक वृद्धि की दर 2023 की अनुमानित 2.7 प्रतिशत से मंद होकर 2024 में 2.4 प्रतिशत रह  जायेगी जो वैश्विक महामारी पूर्व 3 प्रतिशत की वृद्धि दर से नीचे है। 

इस रिपोर्ट में यह आशंका ऐसे समय व्यक्त की गयी है जब 2023 में वैश्विक आर्थिक प्रदर्शन अपेक्षा से बेहतर रहा है। किन्तु, पिछले वर्ष अपेक्षा से बेहतर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) वृद्धि दर ने अल्पावधि जोखिमों एवं संरचनात्मक कमजोरियों पर पर्दा डाल दिया था।

संयुक्त राष्ट्र की प्रमुख आर्थिक रिपोर्ट में आने वाले समय की आर्थिक स्थिति की निराशाजनक तस्वीर पेश की गयी। रिपोर्ट में निरन्तर ऊंची ब्याज दर, हिंसक संघर्ष, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में मंदी और बढ़ती जलवायु आपदाएं वैश्विक वृद्धि के लिए भारी चुनौतियां बताई गई।

रिपोर्ट में कहा गया है कि लंबे समय तक कर्ज की तंगी और कर्ज की ऊंची लागत, कर्ज में डूबी वैश्विक  अर्थव्यवस्था के लिए अच्छे संकेत नहीं है। वो भी ऐसे समय में, जब जलवायु परिवर्तन का सामना करने और सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए पहले से अधिक निवेश की आवश्यकता है।

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश के अनुसार, “ 2024 में हमें इस मकड़जाल से निकलना होगा। बड़ी मात्रा में साहसिक निवेश के जरिए हम सतत विकास और जलवायु कार्रवाई का खर्च उठा सकते हैं और विश्व अर्थव्यवस्था को सबके हित में मजबूत वृद्धि के रास्ते पर ले जा सकते हैं। हमें सतत् विकास और जलवायु कार्रवाई में निवेश हेतु उचित लागत पर दीर्घकालिक वित्त पोषण में कम से कम 500 अरब डॉलर वार्षिक के सतत विकास लक्ष्य प्रोत्साहन पैकेज की दिशा में पिछले वर्ष की प्रगति के सहारे आगे बढ़ना होगा।”

विकसित एवं विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में वृद्धि में नरमी

रिपोर्ट के मुताबिक, अमरीका सहित अनेक बड़े, विकसित देशों में  ऊंची ब्याज दर, उपभोक्ता खर्च में गिरावट और श्रम बाजारों में कमजोरी के कारण 2024 में वृद्धि दर मंद रहने की आशंका है। 

वहीं, अनेक विकासशील देशों जैसे  पूर्व एशिया, पश्चिम एशिया और लैटिन अमरीका व कैरिबियाई देशों में भी अल्पावधि में वृद्धि अनुमानों में गिरावट की आशंका जताई गई है। 

इसका कारण वहां तंग वित्तीय परिस्थितियां, सिकुड़ते राजकोषीय साधन और विदेशी मांग में मन्दी हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि निम्न आय वाली और लाचार अर्थव्यवस्थाओं के सिर पर भुगतान सन्तुलन के बढ़ते दबाव और कर्ज भुगतान में चूक का खतरा मंडरा रहा है। 

रिपोर्ट के मुताबिक लघु द्वीपीय विकासशील देशों की आर्थिक सम्भावनाओं पर ऋण के भारी बोझ, ऊंची ब्याज दरों और जलवायु सम्बद्ध बढ़ती लाचारी का दबाव रहेगा, जो सतत विकास लक्ष्यों की दिशा में हुई प्रगति के लिए ख़तरा ही नहीं, बल्कि कहीं-कहीं उसका रुख पलटने पर भी आमादा हैं।

मुद्रास्फीति में गिरावट का रुख, लेकिन सावधानी की जरूरत 

रिपोर्ट में वैश्विक मुद्रास्फीति में और गिरावट का अनुमान लगाया गया है। यह 2023 में अनुमानित 5.7 प्रतिशत से घटकर 2024 में 3.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है। किन्तु कीमतों का दबाव अब भी अनेक देशों में बहुत अधिक है और भूराजनीतिक संघर्षों में जरा सी भी तेजी से मुद्रस्फीति फिर बढ़ने की आशंका है।

रिपोर्ट के अनुसार लगभग एक-चौथाई विकासशील देशों में वार्षिक मुद्रास्फीति 2024 में 10 प्रतिशत के पार रहने की आशंका है। जनवरी 2021 से विकासशील अर्थव्यवस्थआओं में उपभोक्ता मूल्यों में कुल मिलाकर 21.1 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है जिससे कोविड-19 से उबरने के बाद मिली आर्थिक उपलब्धियों में भारी कमी हो गयी। अनेक विकासशील देशों में आपूर्ति में बाधा, संघर्षों और मौसम की विकट घटनाओं के बीच स्थानीय खाद्य महँगाई दर ऊंची रही, जिसका बेहिसाब असर निर्धनतम परिवारों पर पड़ा।

संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक कार्य के अवर महासचिव लि चिनहुआ का कहना है, “ निरन्तर ऊंची मुद्रास्फीति ने गरीबी उन्मूलन में प्रगति को और पीछे धकेल दिया है, सबसे कम विकसित देशों पर तो और भी गम्भीर असर पड़ा है।

अब बेहद जरूरी है कि वैश्विक सहयोग एवं बहुपक्षीय व्यापार तँत्र को मजबूत करें, विकास वित्त पोषण व्यवस्था में सुधार करें, ऋण की चुनौती का समाधान करें और जलवायु वित्त पोषण में वृद्धि करें ताकि लाचार देशों को सतत् एवं समावेशी वृद्धि के रास्ते पर तेजी से आगे बढ़ने में मदद दी जा सके।”

रिपोर्ट में कहा गया है कि वैश्विक श्रम बाजार की वैश्विक महामारी में उत्पन्न संकट से उबरने की प्रक्रिया असमान है। विकसित देशों में वृद्धि में मंदी के बावजूद श्रम बाजार  मजबूत रहे। किन्तु अनेक विकासशील देशों में, विशेषकर पश्चिमी एशिया और अफ़्रीका में बेरोजगारी दर सहित रोजगार के प्रमुख संकेतक अभी वैश्विक महामारी से पहले के स्तर पर नहीं लौट पाये हैं। विश्वभर में स्त्री-पुरुष रोजगार अन्तर अब भी अधिक है और स्त्री-पुरुष वेतन अन्तर न केवल जारी है बल्कि कुछ व्यवसायों में बढ़ गया है।

मजबूत अंतरराष्ट्रीय सहयोग आवश्यक

रिपोर्ट में सुझाव दिया गया कि सरकारों को निरर्थक राजकोषीय समेकन से बचते हुए राजकोषीय समर्थन का दायरा फैलाना होगा ताकि वैश्विक मौद्रिक परिस्थितियों में तंगी के दौर में वृद्धि को प्रोत्साहन मिल सके। दुनियाभर के केन्द्रीय बैंकों के सामने मुद्रास्फीति, वृद्धि और वित्तीय स्थिरता के लक्ष्यों के बीच सन्तुलन रखने की दुविधा है। विशेषकर विकासशील देशों के केन्द्रीय बैंकों को विकासशील देशों में मौद्रिक कसावट के विपरीत असर की मार कम से कम रखने के लिए समझदारी से बड़े आर्थिक स्तर पर व्यापक नीतिगत उपाय अपनाने होंगे।

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ऋण संकट से बचने और विकासशील देशों को पर्याप्त धन सुलभ कराने के लिए तत्काल वैश्विक सहयोग के मजबूत एवं असरदार प्रयास करने होंगे। कमजोर राजकोषीय स्थिति में फंसे निम्न-आय एवं मध्यम आय वाले देशों को ऋण में राहत और ऋण पुनर्निर्धारण की आवश्यकता है ताकि वे कमजोर निवेश, मंद वृद्धि एवं कर्ज अदायगी के भारी बोझ के कुचक्र से बच सकें।

इसके अलावा वैश्विक जलवायु वित्त पोषण में भारी वृद्धि करनी होगी। जीवाश्म ईंधन सब्सिडी घटाने और अन्ततः समाप्त करने के साथ-साथ विकासशील देशों के लिए 100 अरब डॉलर की सहायता जैसे अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संकल्पों को पूरा करने और टैक्नॉलॉजी सौंपने जैसे उपाय विश्वभर में जलवायु कार्रवाई मजबूत करने के लिए आवश्यक हैं। 

रिपोर्ट में नवाचार एवं उत्पादक क्षमता, आपदा का सामना करने की सामर्थ्य निर्माण और अक्षय ऊर्जा को तेजी से अपनाने में औद्योगिक नीतियों की निरन्तर बढ़ती भूमिका को भी महत्वपूर्ण माना गया है।