इलेस्ट्रेशन: योगेंद्र आनंद 
अर्थव्यवस्था

अपनी ही आग में झुलसेगा अमेरिका

टैरिफ के जरिए वैश्विक खाद्य प्रणाली को ध्वस्त करके अमेरिका खुद भी नहीं बचेगा

Richard Mahapatra

हम एक अत्यंत वैश्वीकृत खाद्य प्रणाली के युग में जी रहे हैं। यदि कोई व्यक्ति एक दिन में उपयोग करने वाले अपने खाद्य पदार्थों को बारीकी से देखे तो वह पाएगा कि कम से कम दो से तीन देशों के बहुराष्ट्रीय खाद्य उत्पाद उसके भोजन में गुपचुप तरीके से शामिल हो चुके हैं। पूरी दुनिया में ऐसा हो रहा है। दुनिया में उत्पादित खाद्य पदार्थों के पांचवे हिस्से का वैश्विक स्तर पर व्यापार किया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) का कहना है कि 2023 में 2 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर का वैश्विक खाद्य व्यापार हुआ, जो साल 2000 से चार गुना अधिक था। 2015 में दुनिया की लगभग 80 प्रतिशत आबादी शुद्ध खाद्य आयातक देशों में रहती थी। इस साल तक इसमें निश्चित रूप से वृद्धि हुई होगी। एक अन्य अध्ययन में कहा गया है कि 2050 तक दुनिया की आधी जनसंख्या ऐसे कैलोरी (आहार) का सेवन करेगी, जो उनके अपने देश में उत्पादित नहीं होंगे।

इतिहास गवाह है कि पिछली शताब्दियों में भी व्यापार और प्रवास के चलते खाद्य संस्कृतियों का आदान-प्रदान हुआ है, लेकिन पिछले 30 वर्षों में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के अस्तित्व में आने के बाद यह सच में वैश्विक हो गया है। डब्ल्यूटीओ ने मुक्त व्यापार और न्यायसंगत टैरिफ (शुल्क) की शुरुआत की।

अब हम भोजन करते समय स्थानीय रूप से सोचने के बजाय वैश्विक रूप से सोचते हैं। खाद्य पदार्थों की उपज और उपलब्धता किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र या स्थान से जुड़ी होती है, इसलिए देश वही निर्यात कर सकते हैं, जिसे वे स्वाभाविक रूप से उगा सकते हैं।

इसी तरह जो देश इन खाद्य पदार्थों से संपन्न नहीं हैं, वे घरेलू मांगों को पूरा करने के लिए उन पदार्थों का आयात कर सकते हैं। नए टैरिफ और व्यापार कानूनों का मतलब है कि किसी तरह से खाद्य उत्पाद के व्यापार पर अधिक कर नहीं लगे।

इस व्यवस्था में खलल पड़ जाए जो क्या होगा? वह भी तब, जब एक अत्यधिक आयात-निर्भर देश व दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का निर्वाचित प्रतिनिधि इसे बाधित करने का फैसला करता है?

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सभी व्यापारिक देशों पर टैरिफ लगाकर “लिबरेशन डे” का जश्न मनाने का फैसला किया है। 20 जनवरी, 2025 को पदभार ग्रहण करने के बाद से तीन महीनों में ट्रंप ने अमेरिकी इतिहास में किसी भी अन्य चीज की तुलना में सबसे अधिक टैरिफ जोड़े हैं।

ट्रम्प को लगता है कि उसका यह कदम अमेरिका को एक स्व-उत्पादक देश बना देगा, जिससे अधिक नौकरियां और राजस्व पैदा होगा। यह अमेरिका को “फिर से” महान बनाने का उनका तरीका है।

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अमेरिका वैश्वीकृत खाद्य प्रणाली से परे है? इसका जवाब है- बिल्कुल नहीं। दशकों से अमेरिका एक खाद्य आयातक बना हुआ है। वर्तमान में यह अपनी खाद्य आपूर्ति का पांचवां हिस्सा आयात करता है।

अनुमान है कि 2025 में अमेरिका को कृषि व्यापार में 42 बिलियन डॉलर का घाटा हुआ है। इसका अर्थ है कि यह निर्यात की तुलना में अधिक खाद्य आयात कर रहा है।

2019 तक अमेरिका ने 60 वर्षों तक कृषि व्यापार में संतुलन बनाए रखा था।

आखिर इसके बाद क्या हुआ? यह अमेरिकियों द्वारा अधिक से अधिक उत्पादों का उपभोग से जुड़ा है जो उनके लिए साल भर उपलब्ध रहते हैं। ये वे उत्पाद भी हैं जिनका अमेरिका प्रचुर मात्रा में और किफायती लागत पर उत्पादन करने में सक्षम नहीं है, क्योंकि अन्य देश ऐसा करने में उससे बेहतर स्थिति में हैं।

असलियत में, वैश्वीकृत खाद्य व्यापार व्यवस्था का सबसे अधिक लाभ अमेरिका को मिलता है। ज्यादातर देश निर्यात के उन खाद्य पदार्थों को उगाते हैं जो अमेरिका में मांग में होते हैं, जिनमें मुख्य रूप से फल, सब्जियां, शराब, समुद्री भोजन और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ शामिल हैं। और अमेरिका इन्हें सस्ती दरों पर खरीदता है।

इसे कोटे डी आइवर (आइवरी कोस्ट) के कोको के उदाहरण से और स्पष्टता से समझा जा सकता है। यह दुनिया का सबसे बड़ा कोको उत्पादक है और जिसका दो-तिहाई निर्यात अमेरिका को होता है।

यह देश भौगोलिक और जलवायु की दृष्टि से कोको के उत्पादन के लिए उपयुक्त है, जहां 11.8 मिलियन एकड़ में इसकी खेती होती है, जबकि अमेरिका के पास इसकी खेती के लिए सिर्फ 3,500 एकड़ उपयुक्त जमीन ही है।

वह कभी भी घरेलू मांगों को पूरा करने के लिए अपनी जमीन पर उत्पादन करने में सक्षम नहीं हो सकता। अब ट्रम्प ने आइवरी कोस्ट से आने वाले उत्पादों पर 21 फीसदी टैरिफ लगा दिया है।

इसका तात्कालिक प्रभाव यह होगा कि आइवरी कोस्ट से कोको की आपूर्ति में कमी आएगी और अमेरिकी उपभोक्ताओं को ज्यादा कीमत चुकानी पड़ेगी। ऐसी बहुत सी वस्तुए हैं जिन पर टैरिफ की मार पड़ी है।

अमेरिका के पास इन वस्तुओं को अपने खेतों में पैदा करने की वैकल्पिक व्यवस्था भी नहीं है। इसका नतीजा यह निकलेगा कि अमेरिका जल्द ही अपने द्वारा ध्वस्त की गई वैश्विक खाद्य प्रणाली की चपेट में आएगा। कहने का अर्थ है कि उसे अपनी ही आग में खुद झुलसना पड़ेगा।