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अर्थव्यवस्था

दुनिया पर मंडराए मंदी के बादल, 2025 में 2.3 फीसदी तक फिसल सकती है विकास दर

संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी के लिए देशों के बीच व्यापारिक तनातनी और बढ़ती आर्थिक अनिश्चितता जिम्मेवार है

Lalit Maurya

संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास संगठन (यूएनसीटीएडी) ने अपनी नई रिपोर्ट 'ट्रेड एंड डेवलपमेंट फोरसाइट्स 2025- अंडर प्रेशर' में चेताया है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी की राह पर निकल पड़ी है। इसके लिए कहीं हद तक व्यापारिक तनातनी और बढ़ती आर्थिक अनिश्चितता जिम्मेवार है।

रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक विकास दर 2025 में फिसलकर 2.3 फीसदी पर पहुंच सकती है। यह इस बात को उजागर करता है कि दुनिया मंदी की ओर बढ़ रही है। आशंका है कि व्यापारिक नीतियों में लगते झटके, वित्तीय अस्थिरता, अनिश्चितता और भरोसे की कमी जैसी चुनौतियां वैश्विक अर्थव्यवस्था को पटरी से उतार सकती हैं।

हालांकि जनवरी 2025 में जारी 'वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक: अपडेट' में वैश्विक विकास दर के 3.3 फीसदी रहने की उम्मीद जताई गई थी।

व्यापारिक तनावों ने बढ़ाई मुश्किलें

बढ़ते व्यापारिक तनाव का असर वैश्विक व्यापार पर साफ तौर पर दिख रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, बढ़ते टैरिफ और व्यापारिक नीतियों में बदलाव से आपूर्ति श्रृंखलाएं बिखर रही हैं। इसकी वजह से व्यापारिक स्थिरता पर असर पड़ रहा है।

व्यापार नीतियों को लेकर अनिश्चितता अब ऐतिहासिक स्तर पर पहुंच गई है। ऐसे में निवेशक निवेश से कतरा रहे हैं। इसका असर नौकरियों पर भी पड़ रहा है। कंपनियां अपने निवेश के फैसले टाल रही हैं और भर्तियों में कटौती कर रही हैं।

विकासशील देशों के लिए खतरे की घंटी

हालांकि इस आर्थिक मंदी का असर सभी देशों पर पड़ेगा, लेकिन यूएनसीटीएडी ने चिंता जाता है कि इसका सबसे ज्यादा खामियाजा विकासशील और कमजोर अर्थव्यवस्थाओं को झेलना होगा।

रिपोर्ट कहती है कि कम आय वाले देशों के सामने ‘परफेक्ट स्टॉर्म’ खड़ा हो गया है, मतलब की आर्थिक परिस्थितियां बेहद खराब हो चुकी हैं — बाहरी कर्ज बढ़ रहा है, घरेलू विकास धीमा हो रहा है और वित्तीय हालात तेजी से बिगड़ते जा रहे हैं। इन हालातों में आर्थिक विकास, निवेश और विकास की गति को गंभीर खतरा है, खासकर उन देशों में जो पहले ही समस्याओं से जूझ रहे हैं।

गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में जारी अपनी एक अन्य रिपोर्ट में चेताया है कि शक्तिशाली अर्थव्यवस्थाओं द्वारा एक दूसरे पर लगाए भारी टैरिफ्स की आग ने व्यापारिक तनाव को भड़का दिया है। आशंका है कि इस आग में कमजोर अर्थव्यवस्थाएं झुलस सकती हैं। देखा जाए तो पहले ही विकास को लेकर संघर्ष करते यह देश बढ़ती अनिश्चितता से जूझ रहे हैं।

इन टैरिफ्स को अमेरिका और उसके 57 साझेदारों के बीच व्यापारिक घाटा संतुलित करने के लिए तय किया गया था। इसमें कैमरून पर लगाए 11 फीसदी से लेकर लेसोथो के लिए 50 फीसदी तक टैक्स शामिल थे।

उम्मीद की किरण

हालांकि साथ ही यूएनसीटीएडी का कहना है कि विकासशील देशों के बीच बढ़ता व्यापार यानी दक्षिण के देशों के बीच व्यापार इस मुश्किल के समय में मजबूत सहारा बन सकता है।

रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के वैश्विक व्यापार का करीब एक तिहाई हिस्सा अब विकासशील देशों के बीच हो रहा है। ऐसे में इन देशों के बीच आर्थिक सहयोग और व्यापार को बढ़ावा देना नई आर्थिक संभावनाओं के द्वार खोल सकता है।

रिपोर्ट कहती है कि मौजूदा व्यापार और आर्थिक रिश्तों के आधार पर बातचीत और समझौते को बढ़ावा दिया जाना बेहद जरूरी है। क्षेत्रीय व वैश्विक स्तर पर व्यापारिक सहयोग और नीतियों में तालमेल अब बेहद महत्वपूर्ण है।

रिपोर्ट के मुताबिक मौजूदा परिस्थितियों में विकास को पटरी पर लाने और भरोसे को दोबारा कायम करने के लिए साझा और समन्वित प्रयास बेहद जरूरी हैं।

नए संवाद, सहयोग और साझा प्रयासों के बिना विकास की धुरी को संभालना मुश्किल होगा। देखा जाए तो आज वैश्विक अर्थव्यवस्था एक नाजुक मोड़ पर है। इस समय सभी देशों को मिलकर कदम उठाने होंगे, नहीं तो आर्थिक संकट और गहरा जाएगा।