अर्थव्यवस्था

कोविड-19 की तीसरी लहर: मजदूरों के लिए इधर कुआं, उधर खाई

शहरी श्रम बाजारों में काम की तंगी, गांवों में भी रोजगार का संकट

Bhagirath

दिल्ली की सबसे बड़ी अवैध कॉलोनी के रूप में चर्चित संगम विहार के रतिया मार्ग की गली नंबर 12 के सामने लेबर चौक में बैठे मजदूर हर आने-जाने वाले को उम्मीद भरी निगाहों से देख रहे हैं। अगर कोई उनसे बात भी करता है तो मजदूर उसे घेर लेते हैं। उन्हें लगता है कि शायद कोई काम देने आया है। कुछ मजदूर समूह में बैठे हैं और कुछ इधर-उधर टहल रहे हैं। भीषण ठंड में भी कुछ मजदूरों के शरीर में स्वेटर या जैकेट तक नहीं है।

डाउन टू अर्थ ने 2020 के पहले लॉकडाउन के बाद भी इस लेबर चौक का दौरा कर दिहाड़ी मजदूरों का हाल जाना था। जुलाई 2020 में लॉकडाउन खुलने के बाद जब हम यहां पहुंचे, तब हमें बहुत से मजदूरों ने बताया था कि लॉकडाउन के दौरान वे गांव चले गए थे और खुलने पर काम की तलाश में वापस शहर आ गए हैं, लेकिन उन्हें काम नहीं मिल रहा है। तब हमारी मुलाकात 46 वर्षीय किशनवीर से हुई थी। वह लॉकडाउन में गांव नहीं गए थे क्योंकि उनके पास खेत नहीं हैं।

डाउन टू अर्थ पिछले हफ्ते फिर इस लेबर चौक पहुंचा। इस बार भी किशनवीर हमें मिले। तसला फावड़ा लेकर बैठे किशनवीर ने बताया कि काम की हालत बेहद खराब है। वह पिछले 40 दिनों से रोज लेकर चौक आ रहे हैं, लेकिन उन्हें एक दिन भी काम नहीं मिला है। काम की ऐसी कमी उन्होंने पिछले 28 सालों में नहीं देखी है। किशनवीर बताते हैं कि सरकार ने कोरोनावायरस को देखते हुए कई तरह की पाबंदियां लगा रखी हैं और अब तो शनिवार और रविवार का कर्फ्यू तक लगा दिया है। इससे निर्माण गतिविधियों पर पूरी तरह से रोक लग गई है और उनकी रोजी-रोजी का साधन छिन गया है। उधार के पैसों से किशनवीर और उनके जैसे कई मजदूरों की जिंदगी चल रही है।

चौक में खड़े 30 साल के भूरा भी बताते हैं कि मजदूरों की मांग नहीं है। छोटा-मोटा काम कराने वाले कुछ लोग कभी-कभी चौक पहुंचते हैं तो वे बेहद कम मजदूरी की पेशकश करते हैं। उनका कहना है कि औसत मजदूरी 500 रुपए है लेकिन लोग मजदूरों की बेबसी का फायदा उठाते हुए उन्हें 300 या 250 रुपए ही देने का वादा करते हैं। जो मजदूर इतने कम पैसों में काम करने को राजी होते हैं, वे काम पर चले जाते हैं और बाकी काम का इंतजार करने के बाद अपने घर लौट जाते हैं।

कोविड-19 और उसे रोकने के लिए लगाई गईं पाबंदियों ने अगर किसी वर्ग पर सबसे ज्यादा असर डाला है तो वे किशनवीर और भूरा जैसे दिहाड़ी मजदूर ही हैं। मौजूदा हालात में बहुत से मजदूर काम न होने पर अपने गांव का रुख कर गए हैं, इसलिए लेबर चौक में कोविड से पहले जैसी भीड़ नहीं है। संगम विहार का यह लेबर चौक पहले 200-300 मजदूरों से भरा रहता है लेकिन अब मुश्किल से 100 मजदूर भी यहां नहीं पहुंचते। काम की तलाश में यहां आए राजमिस्त्री मोहम्मद शरीफ बताते हैं कि यहां केवल वही मजदूर रह गए हैं जिनके पास गांव में पुश्तैनी खेती नहीं है। ये मजदूर गांव भी नहीं लौट सकते क्योंकि वहां भी रोजी-रोटी का संकट है।  

ऐसा नहीं है कि शहरों से गांव लौटे मजदूर बेहतर स्थिति में हैं। ये मजदूर वापस शहर आने को बेताब हैं। नोएडा, गुड़गांव और दिल्ली में ठेके पर काम कराने वाले ठेकेदार विनोद मौर्या बताते हैं कि उनके अधिकांश मजदूर उत्तर प्रदेश के महोबा, गोंडा और बस्ती जिलों में रहते हैं। कोरोना के मामले बढ़ने पर ये मजदूर गांव लौट गए थे क्योंकि उन्हें लॉकडाउन और शहरों में फंसने का अंदेशा था।

विनोद बताते हैं कि अब मजदूर वापस आना चाहते हैं लेकिन काम न होने के कारण हम उन्हें नहीं बुला रहे हैं। उनका कहना है कि कोविड के हालात में कोई भी मालिक नया काम शुरू कराने से हिचक रहा है, इसलिए भी मजदूरों की मांग नहीं है।

कोविड काल में बेरोजगारी नित नए-नए कीर्तिमान बना रही है। अर्थव्यवस्था कब पटरी पर आएगी, इसका कोई स्पष्ट जवाब नहीं है। विश्व श्रम संगठन (आईएलओ) ने अपनी “वर्ल्ड एप्लॉयमेंट एंड सोशल आउटलुक ट्रेंडस 2022” रिपोर्ट में धीमी और अनिश्चित रिकवरी की आशंका जाहिर की है। उसका मानना है कि महामारी वैश्विक श्रम बाजार को बुरी तरह प्रभावित करती रहेगी।

आईएलओ के अनुसार, कम से कम 2023 तक वैश्विक बेरोजगारी कोविड काल से पहले से स्तर से अधिक रहेगी। 2022 में यह 207 मिलियन के स्तर पर पहुंच जाएगी जो 2019 में 186 मिलियन थी। आईएलओ ने यह भी चेताया है कि वास्तविक बेरोजगारी इन आंकड़ों से बहुत अधिक होगी क्योंकि बहुत से लोग श्रम बाजार से बाहर हो गए हैं। रिपार्ट के अनुसार, “श्रम बाजार की रिकवरी के बिना इस महामारी से सच्ची रिकवरी नहीं हो सकती।”

आईएलओ ने अगस्त 2021 में जारी रिपोर्ट “इम्पैक्ट ऑन लेबर सप्लाई ड्यू टू कोविड-19 कंटेंनमेंट मेजर्स इन इंडिया : एन इन्फॉर्मल एप्लॉयमेंट असेसमेंट” में कहा था कि पहले लॉकडाउन ने 104 मिलियन असंगठित मजदूरों को प्रत्यक्ष प्रभावित किया है। रिपोर्ट के अनुसार, पहले (2020) और दूसरे (2021) लॉकडाउन के दौरान लगाए गए प्रतिबंधों ने असंगठित क्षेत्र के 89.5 और 88 प्रतिशत रोजगार को सीधे प्रभावित किया। असंगठित क्षेत्र में सबसे बड़ी मार दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ी। ये मजदूर कब इस मार से उबरेंगे, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।