अर्थव्यवस्था

अमेरिका-चीन ट्रेड वार से ताइवान को सबसे ज्यादा फायदा, भारत काे मिला कम

Raju Sajwan

यूनाइटेड नेशन कॉन्फ्रेंस ऑन ट्रेड एंड डेवलपमेंट (यूनसीटीएडी) ने 5 नवंबर को एक अध्ययन जारी किया है। इसमें वित्त वर्ष 2019-20 की पहली छमाही (अप्रैल से सितंबर) के ट्रेड डायवर्जन के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रेड वार के चलते अमेरिका को चीन के निर्यात में गिरावट आई है, लेकिन ताइवान के निर्यात में लगभग 4.2 बिलियन अमेरिका डॉलर की वृद्धि हुई है। जब से अमेरिका और चीन ने एक दूसरे के निर्यात पर टैरिफ लागू किया है, पूरे वैश्विक व्यापार पर इसका बुरा असर पड़ा है। वित्त वर्ष 2019 की पहली तिमाही में चीन के निर्यात में 25 प्रतिशत की कमी आई है। यह तकरीबन 35 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन पर अमेरिकी टैरिफ के कारण ताइवान ने ऑफिस मशीनरी का सबसे अधिक निर्यात किया। इसके अलावा कॉम्युनिकेशन इक्वीपमेंट, इलेक्ट्रिकल मशीनरी, का निर्यात किया और छह माह के दौरान 4.217 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त निर्यात किया।

ताइवान के बाद इस ट्रेड वार का फायदा मैक्सिको और यूरोपीय संघ से उठाया। मैक्सिको ने इस छमाही में अमेरिका को 3.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर और यूरोपीय संघ ने 2.7 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त निर्यात किया। इसके बाद वियतनाम ने दुनिया की दो बड़ी आर्थिक शक्तियों के बीच चल रहे युद्ध का फायदा लिया। वियतनाम ने छह माह के दौरान अमेरिका को 2.6 बिलियन डॉलर का अतिरिक्त निर्यात किया। वियतनाम की अर्थव्यवस्था के आकार को देखते हुए यह वृद्धि काफी महत्व रखती है।

इसके बाद जापान, कोरिया, कनाडा और भारत का नंबर आता है। रिपोर्ट के मुताबिक भारत ने छह माह के दौरान अमेरिका को 755 मिलियन डॉलर का निर्यात किया।

भारत ने क्या किया निर्यात

रिपोर्ट बताती है कि भारत ने छह माह के दौरान सबसे अधिक केमिकल का अतिरिक्त निर्यात किया। यह निर्यात लगभग 243 मिलियन डॉलर का रहा। इसके अलावा मेटल एवं ओर, इलेक्ट्रिकल मशीनरी, मशीनरी, टैक्सटाइल, प्रिसिजन इक्वीपमेंट, एग्री फूड आदि का अतिरिक्त निर्यात किया। हालांकि रिपोर्ट में इस अतिरिक्त निर्यात को कम बताया गया है।

अमेरिकी उपभोक्ताओं को नुकसान

रिपोर्ट में कहा गया है कि इस ट्रेड वार की वजह से अमेरिकी उपभोक्ताओं को नुकसान हुआ है, क्योंकि अमेरिकी कंपनियों के उत्पादों पर चीन द्वारा लगाए गए टैरिफ की वजह से उनकी लागत बढ़ गई और इस लागत की भरपाई के लिए कंपनियों ने अमेरिका में बिकने वाले अपने उत्पादों के दाम बढ़ा दिए। वहीं, रिपोर्ट में कहा गया है कि उच्च टैरिफ के बावजूद चीनी कंपनियों ने अमेरिका को अपने निर्यात का 75 प्रतिशत हिस्सा बरकरार रखा है।