गोबर से बिजली बनाने वाले बायोगैस संयंत्र के पास एक 10 घन मीटर मीथेन गैस भंडारण क्षमता वाला बैलून रखा है। बैलून का वॉल्व खराब है और हल्की गैस की लीकेज है। गोबर संयंत्र के पास ही टैंक से पैदा तीन स्क्रबर लगे हैं जो 95 फीसदी तक मीथेन गैस को शुद्ध करने के लिए सल्फर डाई ऑक्साइड, नाइट्रोजन ऑक्साइड और कॉर्बन जैसी अशुद्धियों को साफ करते हैं। हमारे सामने ही इस संयंत्र से जुड़ा जनरेटर एकदम शांत खड़ा है। संयंत्र पर मौजूद ऑपरेटर चार से पांच बार इसे चलाने की भरसक कोशिश करता है और आखिरकार जनरेटर गड़गड़ाहट के साथ शुरू हो जाता है। पलक झपकते ही शेड में लगा पंखा दौड़ पड़ता है और गोठान की चारदीवारी पर लगी स्ट्रीट लाइट जगमग हो उठती है।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 50 किलोमीटर दूर बनचरौदा में गोबर से बिजली बनाने का यह प्रयोग आदर्श गोठान (गायों को रखने की जगह) का हिस्सा है। 2 रुपए प्रति किलो गोबर खरीद करने वाली गोधन न्याय योजना के तहत बिजली बनाने के लिए इस बायो गैस संयंत्र का उद्घाटन 2 अक्टूबर, 2021 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने किया था। हालांकि, यह मॉडल सिर्फ दिखावे के लिए बचा है। वास्तविकता में यहां बिजली बनाने के लिए रोजाना संयंत्र में गोबर नहीं डाला जा रहा क्योंकि गोठान में बिजली खपत इन दिनों न के बराबर है। सरकारी रिकॉर्ड के मुताबिक अक्टूबर, 2020 से फरवरी, 2021 के बीच बनचरौदा गोठान में अब तक बायोगैस संयंत्र में पूरी क्षमता के हिसाब से महज 10 दिन का ही (अब तक 4,700 किलो) गोबर डाला गया है। गोठान में स्थापित इस संयत्र को ऑपरेट करने वाले जनक धुवे बताते हैं “ इस वक्त हम रोज जनरेटर नहीं चलाते, इसलिए रोज संयंत्र में गोबर डालने की जरूरत नहीं पड़ती। गोठान पर खरीदे गए गोबर और पशुओं से मिलने वाले गोबर को ही इस सयंत्र में डाला जाता है।
गोबर से बिजली बनाने वाले संयंत्र का तकनीकी पक्ष केरल की अल्ट्राटेक टेक्नोलॉजी देख रही है। कंपनी के इंजीनियर डाउन टू अर्थ से बताते हैं कि यह बायो गैस संयंत्र पुरानी फ्लोटिंग ड्रम तकनीक वाला है, जिसकी गैस भंडारण क्षमता को 10 घनमीटर से बढ़ाकर अब कुल 20 घनमीटर कर दिया गया है। इस संयंत्र से प्रतिदिन 24 घन मीटर मीथेन गैस पैदा होती है और तीन चरणों का फिल्ट्रेशन करने के बाद करीब 14 घनमीटर (एमक्यूब) गैस बचती है जिससे एक दिन में 25 से 30 यूनिट (किलोवॉट प्रति घंटा) बिजली पैदा की जा सकती है। 30 यूनिट बिजली का इस्तेमाल शाम 6 बजे से सुबह 6 बजे तक कुल 12 पंखे और 24 एलईडी बल्ब को चलाकर किया जा सकता है। या फिर तीन से चार हॉर्स पावर वाली मशीनों से गोबर उत्पादों को भी तैयार करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि, ऐसा अब तक हुआ नहीं है।
ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बेहतर बनाने का दावा करने वाली गोधन योजना में गोबर से बिजली बनाना एक अहम विस्तार जरूर है लेकिन अभी यह बहुत उम्मीद नहीं जगा रहा। हालांकि, सरकार ने ऐसे ही 5 और गोबर से चलने वाले बिजली संयंत्रों को शुरू करने का दावा किया है।
पंचायत को नहीं हो रही आय
गोधन न्याय योजना के जरिए महिला कामकाजी समूहों के सशक्तिकरण का प्रयास अभी शिथिल है। मसलन, बनचरौदा के गोठान में महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों को अगरबत्ती, गमला, दीया, गोबर की लकड़ियां निर्माण, साबुन, कुक्कुट पालन, सामुदायिक सब्जीबाड़ी, मशरूम उत्पादन, मछली पालन आदि काम किया जाना था। यह सारे काम इन दिनों बंद हैं। फिलहाल पंचायत को इन कामों से कोई आय नहीं है। वहीं, बनचरौदा गोठान में 20 स्वयं सहायता समूह जुड़े हैं और हर एक समूह में 12 महिलाएं सदस्य हैं। 200 से अधिक महिलाएं स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं। उत्पादों की आपूर्ति न होने की वजह से इनके काम फिलहाल ठप हो गए हैं। डाउन टू अर्थ ने यात्रा के दौरान पाया कि बनचरौदा में कंपोस्ट पिट भरे हुए थे। स्वयं सहायता समूहों के केंद्रों पर ताला लटका था।
28 जुलाई, 2020 को बनचरौदा का गोठान शुरू किया गया था और इस गोठान की शुरुआत से 16 फरवरी, 2022 तक महज 30 पंजीकृत किसानों से 3,27,705 किलो यानी 6,56,494 रुपए की ही गोबर खरीदी की गई है। धुवे बताते हैं कि सुबह गोठान में चरवाहा लोग पशुपालकों से गायों को लाकर छोड़ देते हैं और इस दौरान उनके गोबर को पशु सखी एक जगह एकत्र कर देती हैं। सुबह 9 से 12 बजे तक किसानों और चरवाहों से गोबर खरीद होती है, जिसका इस्तेमाल कंपोस्ट और अन्य उत्पादों के लिए किया जाता है।
गोधन न्याय मिशन के तहत इन गोठान केंद्रों पर 90 से 120 दिन में तैयार होने वाली वर्मीकंपोस्ट की कीमत 10 रुपए प्रति किलो है। इस 10 रुपए में स्वयं सहायता समूहों का लाभांश 3 रुपए 27 पैसे खाद तैयार करने और 65 पैसे पैकिंग का होता है। बाकी की राशि शहर में नगर निगम या फिर गांव में ग्राम पंचायत के पास चली जाती है। इसी राशि से गोबर खरीद का भुगतान किया जाता है। वहीं, किसानों को अब सहकारी समितियों से खाद लेते समय 10 फीसदी वर्मीकंपोस्ट या सुपरकंपोस्ट भी लेनी होती है।
बनचरौदा गांव के 50 वर्षीय पशुपालक व किसान संतोष चंद्राकार बताते हैं कि बीते 1.5 वर्षों में उन्होंने 20 कुंतल से अधिक गोबर की बिक्री की है और इससे महज 4,000 रुपए अर्जित कर पाए हैं। वह बताते हैं कि पहले गोबर को खेतों में इस्तेमाल करते थे लेकिन अब सारा गोबर बिक्री कर देते हैं और बाद में सहकारी समिति से खाद लेते वक्त अनिवार्य 10 फीसदी वर्मीकंपोस्ट खरीदते हैं। चंद्राकार बताते हैं कि एक एकड़ खेत में 40 किलो वाली दो बोरी यूरिया और एक डीएपी व 30 किलो वर्मीकंपोस्ट का छिड़काव कर रहे हैं।
पहले वह गोबर का इस्तेमाल सीधे अपने खेतों में करते थे लेकिन अब वह वर्मीकंपोस्ट खरीदकर उसका इस्तेमाल करते हैं। इसी गोठान में स्वयं सहायता समूह चलाने वाली गीता साहू बताती हैं कि बनचरौदा के केंद्र से उनके साथ 8 महिलाओं ने 31,597 किलो वर्मीकंपोस्ट तैयार करके विभिन्न सरकारी विभाग (उद्यान और वन विभाग) को अब तक बेचा है। इससे समूह को लाभांश के रूप में 1,16,000 रुपए मिले है। इसमें प्रत्येक सदस्य को करीब 20 हजार रुपए दिए गए हैं। वह बताती हैं कि उन्होंने पंचायत में बेहतर संपर्क के लिए एक 15 हजार रुपए का मोबाइल खरीदा जबकि उनके समूह की अन्य सदस्य दुलारी साहू ने वह पैसे अपनी खेती में लगाए और कुछ ने अपना ऋण अदा किया है।
गोधन न्याय मिशन के प्रबंध संचालक और सचिव एस भारती दासन बताते हैं, राज्य में 8,048 गोठान सक्रिय हैं और पंजीकृत 2,87,473 पशुपालकों में से अब तक 2,04,034 लाभान्वित हो चुके हैं। राज्य में 5 फरवरी, 2022 तक 62.60 लाख क्विंटल गोबर खरीदी हुई है, जिसके लिए 125 करोड़ रुपए जारी किए गए हैं। इसमें से 118.75 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है।
डाउन टू अर्थ ने गोधन न्याय योजना के तहत राज्य के सबसे पहले गोठानों में से एक 5.5 एकड़ वाले फुंडहर गोठान की भी पड़ताल की। गोठान में गायों और सांडों का जमावड़ा है। 16 फरवरी, 2021 की सुबह के 10 बजे हैं और नगर निगम की एक गाड़ी 10 आवारा पशु पकड़कर गोठान में छोड़ने पहुंची है। चारा डाला जा रहा है। गोठान पर गोबर बेचने पहुंचे देवचरण साहू बताते हैं कि उनके पास 6 पशु हैं। वह 40 से 50 किलो गोबर यहां हर दूसरे-तीसरे दिन बेचते हैं। वह बताते हैं आवारा पशुओं की समस्या पर लगाम लगी है लेकिन निगम वाले जब किसी खेत से पशु पकड़ते हैं तो संबंधित पशुमालिक दंड देने के बजाए सिफारिश लगाकर गोठान से अपनी गाय को छुड़वा लेता है। वहीं, फुंडहर के आसपास के लोग बताते हैं कि गोठानों में पशुओं की मौत भी हो रही है।
गोबर अब भी ईंधन
बेमेतरा जिले के भंसुली गांव में 30 वर्षीय दानी साहू बताते हैं कि गोठानों का इस्तेमाल ठीक से नहीं हो रहा। वह लॉकडाउन से पहले पुणे में श्रमिक थे और तब से लौटकर गांव में ही बने हुए हैं। दानी साहू बताते हैं कि उनके पास 3 गाय एक बछिया है। रोजाना 20 किलो गोबर करीब मिल जाता है लेकिन वह गोबर खरीदी केंद्र पर इसे बेचने नहीं जाते क्योंकि उन्हें अभी तक उज्ज्वला के तहत गैस चूल्हा नहीं मिला। ऐसे में गोबर से बने उपले उनके घर में ईंधन का काम करते हैं।
बेमेतरा जिले के ही बाबा मोहतारा ग्राम पंचायत में 50 वर्षीय हेम कुमार बताते हैं कि उनके पास भी अभी तक उज्ज्वला योजना नहीं पहुंची है और वह भी 2 बैल और 3 गाय से मिलने वाले गोबर का इस्तेमाल फिलहाल चूल्हे को जलाने के लिए करते हैं। बाबा मोहतारा का गोठान अभी बनाया जा रहा है। ग्रामीणों के मुताबिक गांव में पशुओं के जरिए फसलों का नुकसान जारी है। हेम कुमार बताते हैं कि उनके गांव में बंदरों का आतंक है। पहले वह चना बोते थे लेकिन बंदरों के नुकसान के चलते एक दशक से बंद हैं। गोबर और कंपोस्ट इन दोनों का इस्तेमाल खेतों में ढंग से नहीं हो रहा। रायपुर के फुंडहर स्थित गोठान में वर्मी कंपोस्ट के 1,500 किलो क्षमता वाले पिट भरे हुए हैं। बाहर सुपर कंपोस्ट (डी-कंपोजर के साथ गोबर) पड़ा हुआ है।
गोबर के कंडे फैले हुए हैं। वर्मी कंपोस्ट की बोरियों का स्टॉक रखा हुआ है। गोठान संचालक विक्रांत शर्मा बताते हैं कि कोविड की पहली लहर के दौरान गोबर से लकड़ियां बनाने का काम जोरों पर हुआ था। लोग दाह-संस्कार के लिए यह लकड़ियां ले जा रहे थे। उस वक्त (सितंबर, 2021) में जो स्वयं सहायता समूह यहां काम कर रहा था उसने इस गोठान से करीब 4.5 लाख रुपए कमाए हैं। हालांकि अब कुछ नई महिलाओं का स्वयं समूह इस गोठान पर काम कर रहा है जिसकी आय अभी तक कुछ नहीं हुई है। विक्रांत बताते हैं कि गोठान नो प्रॉफिट और नो लॉस पर चल रहा है। अब तक वह करीब 2.25 लाख किलो खाद बेच चुके हैं। वह बताते हैं कि मुख्य समस्या सप्लाई की है। वन विभाग ने हमसे वर्मीकंपोस्ट खरीदा था लेकिन अभी 70 फीसदी से ज्यादा भुगतान बाकी है। कृषि और उद्यान विभाग और अन्य कोई भी वर्मीकंपोस्ट खरीदने नहीं आया है।
बहुत कम किसान वर्मीकंपोस्ट खरीद रहे हैं क्योंकि उन्हें बाहर सस्ता मिल रहा है। विक्रांत बताते हैं कि अब उन्होंने बड़े पशुपालकों से गोबर खरीदना भी कम कर दिया है और छोटे पंजीकृत पशुपालकों से ही गोबर खरीद रहे हैं। वह कहते हैं कि शुरुआत में अंदाजा नहीं था और हमने बड़ी मात्रा में गोबर खरीद लिया, लेकिन वर्मीकंपोस्ट तैयार करके जब उसे बेचना चाहा तो वह रिस्पाॅन्स नहीं मिला। मार्केट चेन का न होना एक बड़ी समस्या है। वहीं, छत्तीसगढ़ के बेमेतरा जिले में जेवरा गोठान एकदम खाली मिला। न ही पशु और न ही कोई संचालक। जिले के ओड़िया ग्राम पंचायत में गोठान में कुछ महिलाएं गोबर एकट्ठा करती हुई मिलीं। 35 वर्षीय त्रिवेणी यादव बताती हैं कि रोजाना करीब 3 कुंतल तक गोबर यहां इकट्ठा हो जाता है। हम तीन महिलाएं इसे इकट्ठा करके रख देती हैं। वर्मी कंपोस्ट के लिए इस गोबर की तौलाई रोजाना नहीं होती। इसलिए उनका गोबर नहीं बिकता। त्रिवेणी कहती हैं कि वर्मी कंपोस्ट अब कम बिक रहा है और अब तक एक साल में उन्होंने 15 हजार रुपए करीब जमा किए हैं।
ओड़िया गांव के वर्मीकंपोस्ट पिट भरे हुए हैं। इसे तैयार करने वाली जय मां लक्ष्मी समूह की डिलेश्वरी दोहरे बताती हैं कि इसकी कोई खरीद नहीं है। अब तक उन्हें इससे कोई फायदा नहीं हुआ है। गोठान के सामने 7 एकड़ वाले सब्जीबाड़ी में भी स्वयं सहायता समूह काम कर रही हैं। यहां राजकुमारी दोहरे, ममता डांडे, गायत्री दोहरे और प्रतिमा दोहरे ने 3 एकड़ में केला, 2 एकड़ में टमाटर लगा रखा है। ममता डांडे बताती हैं कि अन्य दो एकड़ में बरसात के कारण सब्जियां खराब हो गईं। वह बताती हैं कि लॉकडाउन के दर्मियान इस 7 एकड़ बंजर चारागाह को उन्हीं लोगों ने जीवित किया। हालांकि, अभी तक एक बार भी सब्जी नहीं बेची है।
गोठान, गोबर और खाद व आय के संबंध मजबूत करने का दावा करने वाली गोधन न्याय योजना दरअसल गांवों के बजाए शहरों में ही ज्यादा सक्रिय है। छत्तीसगढ़ के कवरधा जिले में भी पनेका पंचायत के संरपंच सुरेश साहू बताते हैं कि अभी उनका गोठान बन नहीं पाया है। इसका काम जारी है। उन्होंने कहा कि गोठान की जमीन कब्जे में थी, जिसे छुड़वाया गया है। अब इसे तैयार किया जाएगा। इसी तरह दुर्ग जिले में भी पाटन क्षेत्र के मोतीपुरा ग्राम पंचायत में गोठान की बाउंड्री के बाहर गाय घूमती हुई मिली। वहीं आसपास की महिलाएं गोठान में लगे हुए नल से पानी भरकर अपने घर ले जाती हैं। मोतीपुरा की सरपंच योगिता साहू हैं, उनके पति देवनारायाण साहू बताते हैं कि नवंबर, 2021 में ही गोठान बना था अभी तक इस गोठान की समिति नहीं बन पाई है। अनुशंसा के लिए विकास खंड में भेजा गया है। 20 जुलाई, 2021 से शुरू की गई गोधन न्याय योजना के तहत प्रत्येक गोठान वाले ग्राम पंचायत में एक 13 सदस्यीय गोठान समिति ही इसका संचालन करती है।
ग्राम सभा बैठक में समिति के सदस्यों और पदाधिकारियों के नामों की अनुशंसा विकास खंड को भेजी जाती है। वहीं, शहरी क्षेत्र में गोठान समिति जोनवार नगर निगम के अधीन रहती है। समिति के नामों की स्वीकृति के बाद यह गोठान की पूरी व्यवस्था को देखते हैं और इनका लक्ष्य गोठान को स्वावलंबी बनाना है। इस समिति में पशु सखी, कृषि मित्र, युवा, चरवाहा, युवापंच, सचिव और अध्यक्ष होते हैं। समिति का काम है कि वह पंचायत के पशुओं को गोठानों में रखे और गोबर को एकत्र करे। महिलाओं के स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) का काम है कि वह गोबर से कंपोस्ट और अन्य उत्पाद तैयार करके अपना लाभांश हासिल करे।
7 जिलों में 52 फीसदी गोबर खरीदारी
डाउन टू अर्थ ने गोधन न्याय योजना के तहत राज्य के चार जिलों- रायपुर, दुर्ग, बेमेरतरा और कवरधा के गांवों की यात्रा के दौरान यह पाया कि कंपोस्ट उत्पादन के साथ उसका इस्तेमाल, गोबर से बिजली बनाने की बात हो, गांवों में पशुओं के फसल चरने की समस्या हो या फिर सड़कों पर आवारा पशुओं की कमी के मामले में योजना का क्रियान्वयन बेहद ढीला है। यहां तक कि गोबर खरीब करने का प्रमुख काम भी अभी राज्य के कुछ चुनिंदा जिलों तक ही सिमटा हुआ है। राज्य में गोधन न्याय योजना के तहत कुल गोठान से 2 रुपए प्रति किलो की दर से गोबर खरीदा जा चुका है। हालांकि, डाउन टू अर्थ ने अपने विश्लेषण में पाया कि इसमें कुल 52.76 फीसदी गोबर की खरीद सिर्फ सात जिलों में हुई है, जबकि शेष 47.24 फीसदी गोबर खरीदी राज्य के 21 जिलों से हुई है। वहीं, जिन 7 जिलों में ज्यादा गोबर खरीदी हुई है वहां डेरी ज्यादा हैं साथ ही राज्य की ज्यादा शहरी आबादी उनमें रहती है।
इनमें राजनांदगांव, रायपुर, रायगढ, दुर्ग, कोरिया, धमतरी, बालोद शामिल हैं (देखें, शहर केंद्रित योजना,)। गांवों में अब भी गोठान बनाने से लेकर उनकी समितियों के गठन और कामकाज का काम ग्रामीण अर्थव्यवस्था में खास और प्रभावी फर्क नहीं डाल रहा। राज्य के कई गोठान बनकर तैयार हैं लेकिन वहां चारे और पानी की कोई व्यवस्था नहीं है। सरकारी आंकड़ो में दावा है कि गोठानों के लिए अब तक 200 रुपए प्रति क्विंटल के हिसाब से 2,968 लाख रुपए का पैरादान किया गया है। कई ऐसे गोठान हैं जो मनरेगा फंड के जरिए सिर्फ घेर दिए गए हैं। वहीं, लॉकडाउन के बाद गांव लौटने वाली कई ऐसी श्रमिक महिलाएं हैं जिन्हें अब तक कुछ नहीं हासिल हो सका
उत्पादों के लिए सिर्फ 1.5 फीसदी गोबर
गोधन योजना के सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 10,591 स्वीकृत गोठानों में अब तक 7,889 गोठान (74 फीसदी) ही बनाए गए हैं। इन गोठानों में महज 6,926 गोठानों पर ही गोबर खरीद हो रही है। ज्यादा सक्रिय गोठान शहरों में ही हैं (देखें, लेखा-जोखा, पेज 21)। मिसाल के तौर पर राज्य में प्रति गोठान औसत गोबर क्रय 922 क्विंटल है। वहीं, औसत गोबर क्रय वाले गोठानों में राजधानी रायपुर शीर्ष पर है। यानी नगरीय केंद्रों पर जहां सघन डेयरी हैं वहीं गोबर खरीदी ज्यादा है। चिंताजनक यह है कि गोबर खरीद की रफ्तार भी लगातार मंद पड़ रही है।
आंकड़ों के मुताबिक, 21 जुलाई, 2020 से लेकर 30 नवंबर, 2021 तक प्रति महीने के हिसाब से 3.35 लाख क्विंटल गोबर खरीदा जा रहा था लेकिन 1 दिसंबर, 2021 से लेकर 15 फरवरी, 2022 तक प्रति महीना सिर्फ 2.3 लाख क्विंटल गोबर खरीदा गया। 21 जुलाई, 2020 से 15 फरवरी, 2022 तक कुल 64 लाख क्विंटल गोबर पूरे राज्य में खरीदा गया। इसमें से करीब 62.35 लाख क्विंटल गोबर का इस्तेमाल खाद (कंपोस्ट) बनाने के लिए किया गया और 1.5 फीसदी से भी कम गोबर का इस्तेमाल गोबर के अन्य उत्पादों जैसे - गमला, अगरबत्ती, दीया आदि के लिए किया गया है।
वहीं 62.35 लाख क्विंटल गोबर में 25 लाख कुंतल कंपोस्ट उत्पादन की उम्मीद लगाई गई थी हालांकि, सिर्फ 16 लाख क्विंटल (64 फीसदी) ही कंपोस्ट तैयार किया जा सका। वहीं, 9.71 लाख क्विंटल (61 फीसदी) कंपोस्ट ही बेचा जा सका। अभी करीब 22.24 लाख कुंतल गोबर और 6.3 लाख कंपोस्ट स्टॉक में रखा है। इसमें वर्मीकंपोस्ट की मात्रा अधिक है। सबसे ज्यादा गोबर का स्टॉक राजधानी रायपुर में ही है। गोठान संचालक विक्रांत शर्मा बताते हैं कि ज्यादातर विभाग वर्मी कंपोस्ट खरीद में रुचि नहीं दिखा रहे। ऐसे में स्टॉक की समस्या के कारण गोबर खरीद भी कम हो रही है।
राज्य में गोठान समिति और स्वयं सहायता समूह को अब तक कुल 78.80 करोड़ रुपए में से 71.92 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया है। इसमें 27 करोड़ रुपए स्वयं सहायता समूहों को दिया गया है। छत्तीसगढ़ में गौ सेवक संघ के बेमेतरा जिलाध्यक्ष किशोर वर्मा बताते हैं कि गोबर और खाद की खरीदारी बेहतर तरीके से की जाए और भुगतान समय से हो तो यह योजना बेहतर परिणाम दे सकती है। किसान बरसात के दिनों में गोबर में यूरिया मिलाकर सड़ा देता है, फिर उसका इस्तेमाल खेतों में करता है। वह गोठानों से वर्मीकंपोस्ट नहीं खरीद रहा। सरकार भले ही 10 फीसदी वर्मीकंपोस्ट खरीदने का प्रावधान करे लेकिन इसे कड़ाई से लागू करने पर ही रासायनिक खाद से जैविक खाद की तरफ किसान बढ़ेंगे।
विभागों द्वारा गोठानों से कृषि, उदानिकी, वन, नगरीय प्रशासन, फसल ऋण और किसानों के जरिए वर्मीकंपोस्ट खरीदने का प्रावधान है। अभी तक 6,96,974 मध्यम एवं बड़े कृषकों में 2,27,293 यानी 33 फीसदी किसानों ने वर्मी कंपोस्ट खरीदा है। बनचरौदा के ग्राम सचिव मोहन साहू बताते हैं कि जब तक गोबर उत्पादों के लिए मार्केट चैनल नहीं बनेगा तब तक एसएचजी को प्रोत्साहन नहीं मिलेगा। सब्जीबाड़ी को छोड़ दें तो डेढ़ वर्षों में यह योजना उत्पादन के बाद मांग और आपूर्ति के अर्थशास्त्र में फंसी है। हालांकि, योजना में मौजूद क्षमता को देखते हुए मार्च, 2021 में लोकसभा में कृषि की स्थायी समिति ने केंद्र को सुझाव दिया कि वह छत्तीसगढ़ गोधन न्याय योजना की तरह गोबर खरीदने वाली कोई योजना को लाॅन्च करे।