अगर हम इस महामारी के दौरान ग्रामीण महिलाओं को प्राथमिकता नहीं देते हैं तो हमारी खाद्य आपूर्ति पर निश्चित खतरा है। इस खतरे को भांपते हुए यूएन के इंटरनेशनल फंड फॉर एग्रीकल्चरल डेवलपमेंट (आईएफएडी) के अध्यक्ष गिलबर्ट एफ होंगुबो ने बेहद ताकत के साथ सभी सरकारों से यह अपील की है कि वे ग्रामीण महिलाओं में अपने निवेश को अधिक से अधिक बढ़ाएं।
होगुंबो ने 15 अक्तूबर को अंतरराष्ट्रीय ग्रामीण महिला दिवस के मौके पर कहा "हमारे खाने के लिए अनाज उगाने वाली और अर्थव्य्वस्था को बनाए रखने वाली ग्रामीण महिलाएं महामारी के दौरान सबसे ज्यादा जोखिम में हैं। यह स्वीकार करने योग्य नहीं है।" उन्होंने कहा कि वैश्विक लचीलापन इस बात पर निर्भर करता है कि सरकारें ग्रामीण महिलाओं की रक्षा के लिए अपने निवेश को कितना बढ़ाती हैं और उनकी असमान सामाजिक-आर्थिक प्रभावों पर कितना अधिक ध्यान देती हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली करीब 1.7 अरब महिलाएं और लड़कियां है जो पूरी मानवता का एक-पांचवा हिस्सा हैं। विकासशील देशों में कृषि कार्य बल का 43 फीसदी हिस्सा ग्रामीण महिलाएं ही हैं और दुनिया के अधिकांश खाद्य उत्पादन के लिए जिम्मेदार हैं। इसके बावजूद उनके पास तकनीकी, बाजार और वित्तीय संपत्तियों के अलावा कृषि संसाधनों को हासिल करने का अवसर पुरुषों के मुकाबले कम हैं। और यही बात उन्हें इस महामारी के दौरान सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाली है।
गतिविधि करने के लिए लगाई गई पाबंदियां और खीची गईं सीमा रेखाएं ग्रामीण उत्पादकों को उनकी उपज और उत्पाद की बिक्री में बड़ी बाधा बन रही हैं। ग्रामीण महिलाएं जो कि बिना किसी सामाजिक सुरक्षा के अनौपचारिक तौर पर रोजगार हासिल करती हैं, इस महामारी के दौरान पुरुषों के मुकाबले सबसे ज्यादा ग्रामीण महिलाएं बेरोजगारी का सामना कर रही हैं। वहीं, अवैतनिक घरेलू काम का बोझ भी उन पर बढ़ रहा है जिसमें वे अपने परिवार के बीमार सदस्यों और स्कून न जा सकने वाले बच्चों की देखभाल कर रही हैं।
होंगबो ने कहा "ग्रामीण महिलाएं, जिन लोगों पर अगली पीढ़ी को खिलाने और पालने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है, उन्हें इस संकट के माध्यम से उपेक्षित किया गया है।" "यह उनके परिवार, समुदायों और उनके देशों की अर्थव्यवस्थाओं में उनके द्वारा किए गए महत्वपूर्ण योगदान को बढ़ाने का समय है। इस अभूतपूर्व समय में उनके समर्थन और सुरक्षा पर जोर दिया जाना चाहिए।
बीजिंग डिक्लेरेशन एंड प्लेटफॉर्म फॉर एक्शन द्वारा 25 वर्षों में बहुत प्रगति की गई है जिसने महिलाओं के सशक्तीकरण को संबोधित करने के लिए एक रूपरेखा प्रदान की है। ग्रामीण क्षेत्रों में लैंगिक समानता प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण हो गया है। वहीं, यह ध्यान रखना चाहिए कि 25-34 वर्ष की आयु की महिलाएं अभी भी पुरुषों की तुलना में 25 प्रतिशत अधिक गरीबी में रहने की संभावना रखती हैं।