अर्थव्यवस्था

जी-7 देशों के सात पाप दुनिया में बढ़ा रहे अमीर और गरीब के बीच की खाई

Vivek Mishra

फ्रांस में जी-7 देशों की बैठक हो रही है। इस बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस बैठक में शिरकत कर चुके हैं। दुनिया के अन्य मुल्कों के नेताओं की भी आवाजाही जारी है। इस बार बैठक के नतीजे असमानता दूर करने के लिए क्या करेंगे? इसके नतीजे सामने आएं इससे पहले ऑक्सफैम ने जारी की गई अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि जी-7 देशों के सात पापों की वजह से दुनिया में तेजी से असमानता बढ़ रही है। इन सात पापों में अमीरों को ही तरजीह दिया जाना सबसे प्रमुख पाप है। 

जी-7 समूह देशों में दुनिया के सबसे सात ताकतवर देश शामिल हैं। इनमें फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका का नाम है। इस बार जी-7 की बैठक में भारत समेत कुछ देशों को अलग से बुलाया गया है। ऑक्सफैम कि रिपोर्ट के मुताबिक इन ताकतवर देशों में असमानता के बिंदु पर सबसे खस्ताहाल अमेरिका का है।

ऑक्सफैम की रिपोर्ट के मुताबिक दुनिया में जी-7 सूमह देश दौतल बटोरने के नाम पर शीर्ष पर काबिज हैं। 2018 तक दुनिया के करीब 40 फीसदी यानी 926 अरबपति जी-7 देशों में रहते हैं। नीतियों को अपने हिसाब से ढ़ालने में इनके पास जबरदस्त शक्ति है। यह राजनीति में न सिर्फ हस्तक्षेप करते हैं बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय नीतियों में फेरबदल करवारकर अपने हिसाब से काम को अंजाम भी देते हैं।

अमेरिका में सबसे ज्यादा है गरीब और अमीर का भेद

ऑक्सफैम की ताजा रिपोर्ट बताती है कि जी-7 देशों के बीच अमीर और गरीब के बीच दौलत की सबसे बड़ी खाई अमेरिका में है। यहां के 10 फीसदी सर्वाधिक अमीर लोग 76 फीसदी दौलत के मालिक हैं। वहीं, 50 फीसदी सबसे ज्यादा गरीब लोगों के पास महज एक फीसदी ही कुल धन है। अमेरिका के बाद असमानता की यह खाई यूनाइटेड किंगडम (यूके) में है। यूके के महज 10 फीसदी अमीर लोग 60 फीसदी दौलत अपने पास रखते हैं जबकि यूके के 50 फीसदी सबसे गरीब लोगों के पास सिर्फ 4 फीसदी धन है।

यह हालत सिर्फ इन दो देशों की नहीं है बल्कि जी-7 के सभी सदस्य देशों में यह समस्या विकराल रूप से मौजूद है। अमेरिका, यूके के बाद असमानता के मामले में तीसरे स्थान पर कनाडा का नाम है। कनाडा में 10 फीसदी अमीर 57 फीसदी दौलत के मालिक हैं जबकि 50 फीसदी सर्वाधिक गरीबों के पास महज पांच फीसदी धन है। इसी तरह चौथे स्थान पर इटली है जहां 10 फीसदी अमीर लोगों का देश के 56 फीसदी अर्थ का मालिकाना है जबकि 50 फीसदी सर्वाधिक गरीबों के पास सिर्फ आठ फीसदी ही धन है। पांचवे स्थान पर जर्मनी है, जहां सबसे अमीर 10 फीसदी लोगों के पास कुल 55 फीसदी धन है और सर्वाधिक गरीब 50 फीसदी लोगों के पास महज 3 फीसदी दौलत है।

इसी तरह छठवे स्थान पर फ्रांस का नाम है जहां 10 फीसदी अमीरों के खाते में 53 फीसदी धन है जबकि सर्वाधिक गरीब 50 फीसदी लोगों के पास महज सात फीसदी ही धन है। सबसे अंत में जापान हैं जहां 10 फीसदी लोग देश का 49 फीसदी धन के मालिक हैं और 50 फीसदी गरीबों के पास 10 फीसदी धन है।

 20 फीसदी गरीबों की आय महज पांच फीसद

ऑक्सफैम ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जी-7 देशों की ओर से फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुअल मैक्रों और अन्य सदस्य देश इस बात को मुंहजुबानी कई बार दोहरा चुके हैं कि दुनिया में बढ़ती अमसानता एक गंभीर खतरा है, हालांकि इसके लिए अभी तक कुछ ठोस कदम नहीं बढ़ाया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक 2017 में इटली के राष्ट्राध्यक्ष के अधीन जी-7 समूह देशों ने बारी नीति अपनाई थी, इसके तहत असमानता को दूर कर समृद्धि करनी थी। हालांकि इसपर कोई ठोस कतम नहीं उठाया गया। असमानता के बिंदु की उपेक्षा ही की गई। विश्व बैंक ने यह साक्ष्य पेश किए हैं कि 2013 के मुकाबले गरीबी घटाने की दर आधी हो गई है। मौजूदा आर्थिक विकास और असमानता की प्रवृत्ति क कायम रही तो 2030 में वैश्विक आबादी के छह फीसदी यानी 55 करोड़ लोग भयंकर गरीबी से जूझ रहे होंगे। आय की आसमानता खासतौर से जी-7 समूह देशों में 1980 से लगातार बढ़ रही है। इतना ही नहीं सर्वाधिक 20 फीसदी गरीब लोग औसतन कुल आय का सिर्फ पांच फीसदी ही अपने काम से अर्जित कर रहे हैं जबकि 20 फीसदी सबसे अमीर लोग 45 फीसदी आय अर्जित करते हैं। कनाडा और जापान को छोड़कर जी-7 देशों में 2004 के बाद से खासतौर से यूके और इटली में यह खाई और बढ़ी है।

यह हैं जी-7 के सात पाप

ऑक्सफैम की रिपोर्ट में जी-7 देशों के जिन सात पापों का जिक्र किया गया है उनमें पहला है राजनीति पर कब्जा (कैप्चर्ड पॉलिटिक्स), दूसरा पाप है अमीरों को कर में छूट, तीसरा पाप है सामाजिक कार्यों के लिए खर्च की उपेक्षा वहीं चौथा पाप है अपने शेयरों को अति महत्वता, पांचवा पाप है जलवायु संकट की अनदेखी, छठा पाप है आर्थिक प्रगति लेकिन महिलाओं के लिए नहीं और सातवा व अंतिम पाप है सहायता देने के वायदे को न निभाना। इन सात पाप के जरिए ऑक्सफैम की रिपोर्ट ने यह समझाने की कोशिश की है कि दुनिया में सर्वाधिक अमीर इन देशों ने न सिर्फ अमीर और गरीब देशों के बीच की खाई को बढ़ाया है बल्कि अमीर और गरीब के बीच की खाई को भी बढ़ा दिया है।