अर्थव्यवस्था

महामारी के बाद बढ़े अवसर, लेकिन अभी भी 25 वर्ष से कम उम्र के 42.3 फीसदी ग्रेजुएट हैं बेरोजगार

छह से 10 किलोमीटर की यात्रा के लिए 37 फीसदी महिलाएं जहां सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करती हैं, वहीं इस दूरी की यात्रा के लिए केवल 22 फीसदी पुरुष ऐसा करते हैं

Lalit Maurya

कोविड-19 महामारी के बाद देश में रोजगार के अवसर बढे हैं, लेकिन इसके बावजूद देश में 25 वर्ष से कम आयु के 42.3 फीसदी युवा ग्रेजुएट बेरोजगार हैं। यह जानकारी 20 सितंबर 2023 को अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी द्वारा प्रकाशित नई रिपोर्ट "स्टेट ऑफ वर्किंग इंडिया 2023" में दी गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 2019-20 के दौरान बेरोजगारी दर 8.8 फीसदी थी, जो वित्तीय वर्ष 2021 में घटकर 7.5 फीसदी और वित्त वर्ष 2022-23 में 6.6 फीसदी रह गई है। इसके बावजूद देश में पढ़े लिखे युवकों में बेरोजगारी दर सबसे ज्यादा है।

रिपोर्ट बताती है कि 25 साल से कम आयु वर्ग के अनपढ़ युवाओं में बेरोजगारी की यह दर 13.5 फीसदी दर्ज की गई है। जो दर्शाता है कि देश में पढ़े-लिखे युवकों के लिए रोजगार के कम अवसर मौजूद हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सबसे ज्यादा बेरोजगारी 25 से 29 वर्ष के स्नातक या उच्च योग्यता रखने वाले युवाओं में हैं, जिनमें बेरोजगारी दर 22.8 फीसदी दर्ज की गई है। इसके बाद उच्च माध्यमिक स्तर की शिक्षा प्राप्त  25 वर्ष से कम उम्र के युवाओं बेरोजगारी सबसे ज्यादा है, जिनमें इसकी दर 21.4 फीसदी दर्ज की गई है।

दूसरी तरफ 40 वर्ष या उससे ज्यादा उम्र के ग्रेजुएट लोगों में बेरोजगारी की बात करें यह दर महज 1.6 फीसदी दर्ज की गई है। इसी उम्र के अनपढ़ वर्ग में यह दर 2.4 फीसदी रिकॉर्ड की गई।

रिपोर्ट बताती है कि 35 वर्ष और उससे अधिक आयु के स्नातकों में बेरोजगारी दर पांच फीसदी से कम है। रिपोर्ट में एक और महत्वपूर्ण प्रश्न जो सामने आया है वो यह है कि क्या ये नौकरियां जो उन पढ़े लिखे युवकों को मिलती हैं वो उनके कौशल और आकांक्षाओं के अनुरूप हैं। रिपोर्ट के मुताबिक यह महत्वपूर्ण विषय है, जिसपर और शोध करने की जरूरत है।

गौरतलब है कि यह रिपोर्ट सरकारी आंकड़ों पर आधारित है। इसमें एनएसओ के रोजगार-बेरोजगारी सर्वेक्षण, आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण, उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण और आर्थिक और जनसंख्या जनगणना जैसे आधिकारिक आंकड़ों के स्रोतों का उपयोग किया गया है। इसके अतिरिक्त, शोधकर्ताओं ने ग्रामीण कर्नाटक और राजस्थान में एक विशेष सर्वेक्षण आयोजित किया जिसे इंडिया वर्किंग सर्वे कहा जाता है।

रिपोर्ट की मानें तो 80 के दशक के बाद से अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिसके चलते लाखों श्रमिकों का कृषि से अन्य क्षेत्रों में प्रवास हुआ है। इसके साथ ही ऐसे कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि हुई है जिन्हें नियमित वेतन या तनख्वाह मिलती है। वहीं दूसरी तरफ अस्थाई श्रमिकों के अनुपात में कमी आई है।

अब भी स्थिर है कमाई की दर

हालांकि अर्थव्यवस्था में योगदान या नौकरी के अवसरों के मामले में विनिर्माण क्षेत्र बहुत अधिक विकसित नहीं हुआ है। इसके बजाय, निर्माण और अनौपचारिक सेवा क्षेत्रों ने मुख्य रूप से रोजगार के अवसर पैदा किए हैं। इसके अलावा, आर्थिक विकास और बेहतर नौकरियों की उपलब्धता के बीच संबंध कमजोर बना हुआ है।

रिपोर्ट के मुताबिक भले ही देश में बेरोजगारी दर घट रही है, लेकिन कमाई की दर अब भी स्थिर है। हालांकि अनौपचारिक क्षेत्र से जुड़े श्रमिकों की कमाई में थोड़ी वृद्धि हुई है। हालांकि महिलाओं की आय महामारी से पहले भी घट रही थी। लेकिन साथ ही आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि लेबर बाजार अभी भी कोविड-19 महामारी के बाद पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ है।

यदि महिलाओं में रोजगार दर को देखें तो 2004 के बाद से महिला रोजगार दर में या तो गिरावट आ रही थी या वो स्थिर बनी हुई थी। हालांकि, 2019 के बाद से, महिलाओं के रोजगार में वृद्धि हुई है, क्योंकि महामारी के बाद पहले से ज्यादा महिलाओं ने स्व-रोजगार की ओर रुख किया है। कोविड-19 महामारी से पहले, 50 फीसदी महिलाएं स्व-रोजगार में थीं और वहीं महामारी की चपेट में आने के बाद यह आंकड़ा बढ़कर 60 फीसदी पर पहुंच गया है।

देखा जाए तो महामारी के बाद से, कृषि क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी 2020 में अप्रैल-जून के दौरान 72.4 फीसदी दर्ज की गई थी, जो अप्रैल-जून 2022 में घटकर 69.1 फीसदी रह गई थी। इसी तरह जहां 2020 के दौरान स्वरोजगार में महिलाओं की हिस्सेदारी 57.8 फीसदी से बढ़कर 2022 में 61 फीसदी दर्ज की गई थी।

आज भी महिलाओं के लेकर मानसिकता में नहीं आया है खास बदलाव

हालांकि इसके साथ ही स्व-रोजगार से होने वाली कमाई में भी कमी आई है। 2020 के लॉकडाउन के दो साल बाद भी, स्व-रोजगार से होने वाली कमाई अप्रैल-जून 2019 की तिमाही की तुलना में केवल 85 फीसदी ही थी।

देखा जाए तो ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के रोजगार में मौसमी रुझान भी देखा जाता है। आमतौर पर जब काम या फसलों का सीजन आता है तो इस दौरान कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ जाती है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि इसका मतलब यह कतई भी नहीं है कि महिलाओं द्वारा देखभाल से जुड़े और अन्य घरेलू कामों पर खर्च किए समय में कोई कमी आई है।

रिपोर्ट के अनुसार जहां 2021-22 के दौरान शहरी क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं में बेरोजगारी दर 9.9 फीसदी थी। हालांकि 2017-18 की तुलना में देखें तो इसमें 22 फीसदी की कमी आई है। वहीं पुरुषों में यह आंकड़ा केवल 7.8 फीसदी था। इसी तरह ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली महिलाओं में इस दौरान बेरोजगारी दर 4.5 फीसदी दर्ज की गई, वहीं पुरुषों में यह आंकड़ा महिलाओं से ज्यादा 6.5 फीसदी रहा।

रिपोर्ट बताती है कि समय के साथ महिलाओं और पुरुषों की आय के बीच जो अंतर था वो घट रहा है। आंकड़ों के अनुसार 2004 में, जहां महिलाओं की तनख्वाह पुरुषों के वेतन का केवल 70 फीसदी ही थी। वहीं 2017 में यह अंतर घटकर 76 फीसदी रह गया था। हालांकि तब से लेकर 2021-22 तक यह अंतर जस का तस बना हुआ है।

रिपोर्ट में एक दिलचस्प बात यह देखी गई कि जब पति की आय बढ़ जाती है, तो महिलाओं के काम करने की संभावना घट जाती है। वहीं शहरों में, एक बार जब पति की आय प्रति माह ₹40,000 से अधिक हो जाती है, तो पत्नी के फिर से काम करने की संभावना कहीं ज्यादा बढ़ जाती है।

देखा जाए तो इसके लिए पीढ़ियों से चले आ रहे लिंग मानदंड महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वहीं जिन महिलाओं की सास कार्यरत है, उन परिवारों में बहुओं के ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने की संभावना 50 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में 70 फीसदी तक बढ़ जाती है।

रिपोर्ट में महिलाओं और पुरुषों द्वारा काम पर जाने के लिए परिवहन के जिन साधनों का उपयोग किया जाता है, उनको लेकर एक दिलचस्प बात जो सामने आई वो यह है कि जब यात्रा की दूरी लंबी हो जाती है, तो महिलाएं पुरुषों की तुलना में सार्वजनिक परिवहन का कहीं ज्यादा उपयोग करती हैं।

छह से 10 किलोमीटर की यात्रा के लिए 37 फीसदी महिलाएं जहां सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करती हैं, वहीं इस दूरी की यात्रा के लिए केवल 22 फीसदी पुरुष ऐसा करते हैं। हालांकि, 11 से 20 किलोमीटर के बीच की यात्रा के लिए, सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने वाली महिलाओं का प्रतिशत उल्लेखनीय रूप से बढ़कर 62 फीसदी दर्ज किया गया है, जबकि पुरुषों के लिए, यह केवल 40 फीसदी ही है।