अर्थव्यवस्था

सरकार ने आर्थिक सर्वेक्षण में कहा लॉकडाउन में मजदूरों के नौकरी जाने और प्रवास की जानकारी नहीं

आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि असंगठित मजदूरों का आंकड़ा तैयार करने के लिए कदम बढ़ाया जा रहा है, इससे उनके लिए बेहतर नीति बनाने में मदद मिलेगी।

Vivek Mishra

केंद्र सरकार ने आर्थिक सर्वेक्षण 2021-22 में कोरोना महामारी को शताब्दी में एक बार होने वाली त्रासदी कहकर पुकारा है। साथ ही विस्तार से यह भी बताया है कि कैसे लॉकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग और बार-बार साबुन से हाथ धुलने के अभ्यास ने कोरोना संक्रमण को काबू किया है। सरकार के मुताबिक लॉकडाउन का आइडिया स्पैनिश फ्लू, सोशल डिस्टेंसिंग का आइडिया एचवनएनवन संक्रमण और बार-बार हाथ धोने का विचार लुई पाश्चर से लिया गया है।हालांकि, सरकार ने आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी कहा है कि लॉकडाउन के दौरान हुए देश के सबसे बड़े अंतर्राज्यीय पलायन के बारे में उनके पास कोई स्पष्ट तस्वीर नहीं है। 

लॉकडाउन पर भले ही सरकार को कड़ी प्रतिक्रियाएं झेलनी पड़ी हों लेकिन आर्थिक सर्वेक्षण में  लॉकडाउन को विन-विन सिचुएशन वाला बताया गया है। कहा गया है कि लॉकडाउन के कारण जिदंगियों को भी बचाया गया और आर्थिक गति को मध्यम से लंबी अवधि में धीरे-धीरे बढ़ाया भी गया है। हालांकि चौंकाने वाला तथ्य यह है कि लंबे लॉकडाउन के कारण अंतर्राज्यीय स्तर पर पलायन को विवश हुए असंगठित मजदूरों, उनके नौकरी जाने या उनके रहने के ठिकानों के खत्म होने की सरकार की जानकारी बहुत ही कम हैं। 

इससे पहले सरकार ने लॉकडाउन के दौरान प्रवासी मजदूरों के पलायन की कुल संख्या एक करोड़ से ज्यादा बताई थी।  साथ ही लॉकडाउन के दौरान मरने वाले मजदूरों की संख्या पर अनभिज्ञता भी जाहिर की थी। आर्थिक सर्वेक्षण में इन तथ्यों पर पर्दा है।    

कोविड-19 ने देशभर में असंगठित मजदूरों को लॉकडाउन ने बुरी तरह से प्रभावित किया। इनकी संख्या अखिल भारतीय स्तर पर शहरी कामगारों में करीब 11.2 फीसदी है। लॉकडाउन के दौरान एक बड़ी संख्या में इन मजदूरों को पलायन के लिए विवश होना पड़ा। 

आर्थिक सर्वेक्षण 2021-2022 के मुताबिक 1 मई 2020 से अगस्त 2020 के बीच 63.19 लाख प्रवासी मजदूरों ने श्रमिक स्पेशल ट्रेन के जरिए  यात्रा की। लॉकडाउन के कारण कितने प्रवासियों की नौकरी गई और उनका सुविधाएं खत्म हुई और उन्हें घर को लौटना पड़ा, इस मुद्दे पर अनभिज्ञता जाहिर की गई है। 

सर्वेक्षण में कहा गया है कि प्रवासी मजदूरों के आंकडो़ं का न होने का प्रमुख कारण अंतरराज्यीय प्रवासी मजूदरों की परिभाषा बहुत ही बंधी हुई और सीमित है। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय ने इस संबंध में कदम बढ़ाना शुरू कर दिया है। साथ ही प्रवासी के साथ असंगठित मजदूरों को डाटाबेस बनाया जा रहा है, जिससे प्रवासी मजदूरों को रोजगार मिलने में आसानी होगी। उनके हुनर को भी आंकड़ों के साथ जोड़ा जा रहा है। इससे असंगठित मजदूरों के लिए बेहतर नीति बनाने में भी मदद मिलेगी।

हालांकि, सर्वेक्षण में कहा गया है कि सरकार ने प्री-लॉकडाउन और लॉकडाउन की अवधि में मजदूरों के कल्याण के लिए कई पहल की हैं। 

मसलन, प्रधानमंत्री गरीब कल्याण पैकेज (पीएमजीकेपी) के तहत वित्तीय सहायता के तौर पर बिल्डिंग एंड अदर कंसट्रक्शन वर्कर्स (बीओसीडब्लयू) उपकर के तहत जो पैसे वसूले गए थे उन्हें भवन व अन्य निर्माण मजदूरों को दिया गया। 31 राज्यों और संघ शासित प्रदेशों की तरफ से कुल 4973.65 करोड़ रुपये 2 करोड़ मजदूरों को बांटे गए। इसके तहत अलग-अलग राज्यों में 1000 रुपये से लेकर 6000 रुपये तक की नगदी सहायता मजदूरों को दी गई थी।

आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत मुफ्त अनाज वितरण आपूर्ति का प्रावधान प्रवासी मजदूरों को पहले मई-जून यानी दो महीनों के लिए किया गया। इसके तहत 2 महीनों में कुल 3500 करोड़ रुपए (0.02 फीसदी जीडीपी के बराबर) की लागत का मुफ्त अनाज दिया गया। बाद में इसे विस्तारित कर दिया गया। 

आत्म निर्भर भारत पैकेज के तहत मई-जून के दौरान प्रत्येक महीने 5 किलो चावल और गेहूं प्रति व्यक्ति को  दिया गया। इससे उन 8 करोड़ प्रवासी मजदूरों को फायदा मिला जो राष्ट्रीय योजना एनएफएसए के दायरे में नहीं हैं।  सर्वेक्षण के मुताबिक वितरण की अवधि को 31 अगस्त, 2020 तक भी बढ़ाया गया। 

आर्थिक सर्वेक्षण में यह स्वीकार किया गया है कि लॉकडाउन के कारण गांव और घर को लौटे प्रवासी मजदूरों के सामने बड़ा रोजगार संकट था। जिसे मनरेगा और ग्रामीण कल्याण रोजगार योजना के तहत पूरा किया गया। 

छह राज्यों में 125 दिनों के लिए ग्रामीण कल्याण रोजगार योजना 20 जून, 2020 को शुरू की गई थी। सर्वेक्षण के मुताबिक सामुदायिक स्तर पर भवन निर्माण और संरचनाओं के निर्माण को लेकर इस योजना में काम की गति दी गई ताकि प्रवासी मजदूरों को आजीविका हासिल हो। 

20 जून से 22 अक्तूबर, 2020 तक कुल 40.34 करोड़ लोगों को काम दिया गया। इसमें बिहार के 32 जिले, झारखंड के 3 जिले, मध्य प्रदेस के 24 जिले, उड़ीसा के 4 जिले, राजस्थान के 22 जिले, उत्तर प्रदेश के 31 जिले शामिल थे। जिन राज्यों के जिलों में 25 हजार से ज्यादा प्रवासी मजदूर लौटे थे उन जिलों का चयन किया गया था। इसमें सबसे ज्यादा 159,697 जल संरक्षण के लिए संरचनाएं बनाई गईं। 

आर्थिक सर्वेक्षण के दावों के इतर, लॉकडाउन के दौरान कई प्रवासी मजदूरों ने हजारो किलोमीटर पैदल यात्राएं की, भयंकर गर्मी के दौरान रास्तों में कई कष्ट उठाने पड़े। वहीं, इस दौरान कई श्रमिकों की मौत भी हो गई।