अर्थव्यवस्था

यूपी के माइग्रेशन बेल्ट में जारी है असंगठित मजदूरों का प्रवास दंश, लॉकडाउन के बाद चमोली त्रासदी के शिकार

Vivek Mishra

उत्तर प्रदेश में तराई का क्षेत्र अंतरराज्यीय प्रवास की बड़ी पट्टी है। जहां असंगठित क्षेत्र के गुमनाम मजदूर ठेकेदारों को आसानी से मिलते हैं। लॉकडाउन के दौरान यह बात स्पष्ट हो गई थी, जिसे चमोली त्रासदी ने और अधिक स्पष्ट कर दिया है। जोखिम वाली बड़ी परियोजनाओं में खपने वाले प्रवासी श्रमिकों के मूल घरौंदे न सिर्फ इसी तराई क्षेत्र में सिमटे हुए हैं बल्कि यहां की अनुसूचित जनजातियां रोजगार के तलाश में पलायन के जत्थे की अगुवाई करती रहती हैं।    

उत्तर प्रदेश के माइग्रेशन बेल्ट वाले हिस्से में श्रावस्ती और लखीमपुर जिला प्रमुख है। कोविड-19 के दौरान लॉकडाउन में इन दोनों जिलों में एक लाख से ज्यादा असंगठित प्रवासी श्रमिक देश के अलग-अलग हिस्सों से अपने गांव-घर को वापस पहुंचे थे। अब फिर से इस प्रवासी पट्टी में सन्नाटा और मातम लौट आया है।  

"क्या बताऊं सब कैसे हुआ...किस तरह से मैं भागा, शायद मैं ही जानता हूं...जो नहीं भाग पाए वो सब  तपोवन के एनटीपीसी हाइड्रो प्रोजेक्ट साइट के भीतर वाले हिस्से में थे और शायद सब बह गए। हम ऋत्तविक प्रोजेक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में लगाए गए थे। हमारा ठेकेदार टिहरी गढ़वाल का है, जिसमें हम कुल 11 लोग थे।...  घटना के वक्त कुछ मीटर के फासलों पर  हम सभी मौजूद थे। हमें कुछ भी नहीं पता था, मैं और दो अन्य लोग प्रोजेक्ट साइट के थोड़ा किनारे रास्ते पर थे। अचानक गांव वालों ने सीटी बजाई ... कोई 10 -12 फीट का ऊंचा मलबा ऊपर से आ रहा था, अचानक दिखाई दिया।...जो ऊपर थे सब उसी में चले गए...मेरा सगा मझोला भाई भी...।"

हीरालाल अब तक 19 से ज्यादा विकृत शवों को देख चुके हैं लेकिन उन्हें अपना भाई नहीं मिला है। उनके साथ एक अन्य साथी कहते हैं कुछ भी पहचान में नहीं आ रहा कि मृत व्यक्ति कौन है...।

उत्तराखंड में 7 फरवरी, 2021 को चमोली त्रासदी के बाद जीवित बचे 27 वर्षीय हीरालाल और उनके साथी ने डाउन टू अर्थ से यह बात कही। वह त्रासदी के बाद भयंकर दिमागी सदमें में हैं। हीरालाल उत्तर प्रदेश में श्रावस्ती जिले के ग्राम पंचायत मोतीपुरकला में रनियापुर गांव के रहने वाले हैं और थारु जनजाति से हैं। 

हीरालाल और उनके गांव के कई लोग काम की तलाश में घर से उत्तराखंड के चमोली पहुंचे थे, रोजगार और बेहतर जिदंगी के लिए प्रवास का दंश झेलने उत्तराखंड के चमोली में बेहद नाजुक और जोखिम वाले पॉवर प्रजोक्ट पर मजदूरी का काम मिला था, बल्कि उनके अलावा गांव से ही 7 और लोगे थे, जिसमें उसके भाई समेत 5 अब भी लापता हैं जो थारु जनजाति से ही हैं।   

सिर्फ श्रावस्ती ही नहीं, उत्तर प्रदेश के ही तराई में स्थित लखीमपुर जिले के कुल 34 लोग भी तपोवन में एनटीपीसी के निर्माणाधीन हाइड्रो प्रोजेक्ट में काम करने गए थे। इनमें से अब तक 2 का शव मिल पाया है, बाकी लापता हैं। इस जिले के उपजिलाधिकारी रविवार से तपोवन में ही मौजूद हैं जो गांव कंपनी और प्रशासन के बीच एक पुल बने हुए हैं।  

लखीमपुर जिले में प्रवासी श्रमिकों के घरों की स्थिति को जानने के लिए ग्राउंड पर पहुंचे ऋषि कुमार सिंह ने डाउन टू अर्थ से अपनी रिपोर्ट के हिस्से को साझा किया, जनज्वार में 11 फरवरी,2021 को प्रकाशित रिपोर्ट में वह लिखते हैं "चमोली हादसे के बाद लापता लोगों में उत्तर प्रदेश के मजदूरों की संख्या सबसे ज्यादा है। यहां की निघासन तहसील के इच्छानगर, भैरमपुर, बाबू पुरवा, तिकोनिया, मिर्जापुर और सिंगाहरी गांवों में बीते चार दिनों से कोहराम मचा हुआ है। जिला कंट्रोल रुम के मुताबिक, अब तक 34 लोगों के लापता होने और एक शव के मिलने की जानकारी सामने आई है। बाबूपुरवा गांव के पांच लोग लापता हैं। इनमें से चार लोग थारु जनजाति के हैं। वहीं, इच्छानगर के ही एक परिवार के छह लोग गायब हैं। इसमें से अवधेश पुत्र लालता का शव मिल चुका है।"

प्रवासियों में महिलाओं के साथ एससी और एसटी वर्ग सबसे ज्यादा जोखिम में रहता है। आवास एवं शहरी गरीबी उपश्मन मंत्रालय के 18 सदस्यीय विशेषज्ञों ने "रिपोर्ट ऑफ द वर्किंग ग्रुप ऑफ माइग्रेशन-2017" में कहा है कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोग शहरी क्षेत्रों में सबसे ज्यादा असहज हैं। न ही इनके पास शहर में उपयोग लायक कौशल है औ न ही सामाजिक नेटवर्क। ऐसे प्रवासी मजदूर ईंट-भट्ठों और निर्माण क्षेत्र के कार्यों ेमें चले जाते हैं। 

वहीं, चमोली की त्रासदी ने उत्तर प्रदेश सरकार के उस दावे की भी पोल खोली है जिसमें प्रवासी श्रमिकों को स्थानीय स्तर पर कौशल विकास, रोजगार, सुरक्षा व पहचान देने के साथ उनकी बेहतरी के दावे किए गए थे। 

उत्तर प्रदेश सरकार ने लॉकडाउन (25 मार्च - 31 मई 2020 ) के बीच सूबे में 34 लाख से अधिक प्रवासी श्रमिकों की संख्या और जानकारी दर्ज की थी जो मजबूर होकर गांव-घर को लौटे थे। सरकार ने लॉकडाउन के बाद कहा था कि सूबे के असंगठित प्रवासी मजदूरों के पहचान की संकट को खत्म किया जाएगा और उन्हें स्किल ट्रेनिंग देकर गांव-घर के आस-पास रोजगार मुहैया कराया जाएगा।   

श्रावस्ती के ही रनियापुर गांव में प्रवासी श्रमिक और थारु जनजाति के सुरेंद्र ने डाउन टू अर्थ को बातचीत में बताया कि वे लॉकडाउन के बाद से घरेलू कामों के चलते गांव में ही हैं। उनके साथ के कई लोग जो लॉकडाउन के बाद उत्तराखंड के चमोली में काम के लिए गए थे वह हाल ही में गांव लौट आए थे। सिर्फ आठ लोग वहीं एनटीपीसी हाइड्रो परियोजना पर काम कर रहे थे। 

सुरेंद्र ने कहा कि उनका किसी तरह का श्रमिक संबंधी रजिस्ट्रेशन नहीं है। इसी तरह तपोवन के कैंप में मौजूद हीरालाल ने बताया कि पहले वे टिहरी गढ़वाल में गए थे काम करने उस वक्त लॉकडाउन के बाद वह सरकारी बस की सुविधा से घर आ गए थे। हालांकि, 8 नवंबर, 2020 को फिर से गांव के तमाम लोगों के साथ परियोजना साइट पर पहुंचे। उन्होंने बताया कि गांव में रोजगार और धन का संकट था।  

यूपी सरकार की ओर से 16 जून, 2020 को एक शासनादेश में कहा कि प्रवासी श्रमिकों को उनकी योग्यता और कौशल के अनुसार रोजगार के अवसर उपलब्ध कराया जाना शासन की प्राथमिकता में शामिल है। शासनादेश में श्रमिकों के डाटाबैंक को सत्यापित करने और एक ऐसा आयोग बनाने की बात कही थी जिसमें दूसरे प्रदेशों में श्रमिकों को ले जाने के लिए अनुमति की जरुरत पड़ती। हालांकि उत्तर प्रदेश कामगार एवं श्रमिक (सेवायोजन एवं रोजगार) आयोग का गठन किया गया जिसमें अंतरराज्यीय प्रवास की बात न करके एनआरआई प्रवासी श्रमिकों की बात पर ज्यादा बल दिया गया है। 

वहीं देश का सबसे बड़ा अंतरराज्यीय पलायन लॉकडाउन के दौरान हुआ। इस बीच 16 मई से 31 मई, 2020 तक मजदूरों के साथ पैदल यात्रा में पाया गया था कि जब प्रवासी घरों को लौट रहे थे तो उत्तर प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्रों में शामिल बुलंदशहर और हापुड़ जैसे जिलों के बीच कई ठेकेदारों ने मजदूरों को सड़क पर लाकर छोड़ दिया था। यह सारे मजदूर बिना किसी करार और सुरक्षा के मिलों में काम करते थे। 

लॉकडाउन के दौरान मनरेगा के कामों में बढ़ोत्तरी और सरकार की अन्न वितरण व्यवस्था ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था और प्रवासी श्रमिकों को सहारा जरूर दिया लेकिन स्थानीय स्तर पर ऐसा रोजागार जो मजबूती और स्थायित्व दे सके वह काम नहीं हो सका। यहां तक कि मजदूरों के नाम और पतों को भी सही से डाटाबेस में नहीं लिया गया।   

चमोली त्रासदी में भी लापता और मृत हुए मजदूरों की बड़ी संख्या लखीमपुर और श्रावस्ती जैसे जिलों की है, जहां न ही उनके श्रमिक कार्यालयों में रजिस्ट्रेशन हैं और न ही उनकी कोई जानकारी। इस आपदा संकट के बाद उनके नाम सामने आए हैं। 

लखीमपुर के जिलाधिकारी एसके सिंह ने डाउन टू अर्थ से कहा "अक्सर मजदूर बेहतर जिंदगी और ज्यादा मजदूरी की चाहत में महानगरों और दूसरे राज्यों में पलायन करते हैं। लखीमपुर एक ग्रामीण अंचल वाला जिला है, इसलिए यहां पलायन जारी रहता है। लॉकडाउन के दौरान जिन मजदूरों के हुनर और रोजगार को लेकर रजिस्ट्रेशन व डाटाबेस बनाने की तैयारी हुई थी वह 100 फीसदी पूरी नहीं हो सकी।"

यही हाल अन्य जिलों का भी है, लॉकडाउन के दौरान जिलों में सभी श्रमिकों के गांव-घर वापसी के दौरान जुटाए गए आंकड़ों का काम आधा-अधूरा रहा, वहीं रिवर्स पलायन की स्थिति को बिल्कुल भी शासन-प्रशासन की ओर से प्रबंधित नहीं किया गया। जबकि 16 जून, 2020 को शासनादेश में सरकार ने कहा था कि जो श्रमिक वापस अपने कार्यस्थल पर लौटना चाहते हैं उनके लिए जिले में विकास खंड स्तर पर हेल्पडेस्क बनाए जाएंगे। 

बहरहाल, चमोली में आपदा प्रबंधन में जुटी टीमों के मुताबिक रेस्क्यू ऑपरेशन के छठवे दिन तक इस त्रासदी में अब तक 36 शव मिले हैं और 200 से अधिक लोग अब भी लापता हैं। एनटीपीसी हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट के टनेल की खुदाई जारी है।

बिना करार और सुरक्षा के एक राज्य से दूसरे राज्य (इंटर स्टेट) में श्रमिकों के प्रवास की समस्या का मुद्दा ज्वलंत बन गया है। हमारी जनगणना के आंकड़ों में इंटर स्टेट प्रवास की कोई सूचना नहीं मिलती है। आवास एवं शहरी गरीबी उपश्मन मंत्रालय के 18 सदस्यीय विशेषज्ञों ने "रिपोर्ट ऑफ द वर्किंग ग्रुप ऑफ माइग्रेशन-2017" में यह सिफारिश की थी कि जनगणना में सुधार किया जाना चाहिए। 

2011 की जनगणना के मुताबिक दिल्ली में बाहरी राज्यों से आए हुए एसटी वर्ग के प्रवासी श्रमिकों को राज्य के एसटी वर्ग की सूची में अधिसूचित नहीं किया गया है। जबकि नेशनल सैंपल सर्वे  2011-12 की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली में पांच लाख ऐसे लोगों ने खुद को एसटी वर्ग का बताया है जो प्रवासी की परिभाषा में पूरी तरह से फिट हैं। 

लखीमपुर व श्रावस्ती जिलों के जो 42 श्रमिक हैं उनमें थारु जनजाति (एसटी वर्ग) के करीब 11 लोग शामिल हैं। इनमें तीन लोगों के जीवित होने की पुष्टि है और शेष लापता हैं। एसके सिंह ने बताया कि कंपनी से प्रवासी श्रमिकों के घर वालों को क्या मुआवजा दिया जाना है, यह बातचीत अभी जारी है।

त्रासदी से बच गए मजदूर चमोली के कैंप में हैं और लाशों की पहचान और लापता लोगों की तलाश जारी है।